सुबह की हल्की धूप, ठंडी हवा और रणजी ट्रॉफी का एक आम-सा दिन. लेकिन उस दिन चंडीगढ़ के सेक्टर-16 स्टेडियम में कुछ असाधारण हुआ. वहां एक करियर फिर से जन्म ले रहा था- एक खिलाड़ी, जिसे दुनिया ने लगभग भुला दिया था, खुद को फिर से पहचान दिलाने उतरा था.
पृथ्वी शॉ, वह नाम जो कभी भारतीय क्रिकेट का भविष्य कहा जाता था, लंबे समय से गुमनामी के अंधेरे में था. फिटनेस पर सवाल उठे, अनुशासन पर चर्चा हुई, फॉर्म बिगड़ी... और फिर सब कुछ धीरे-धीरे छिनता चला गया. मुंबई टीम से बाहर होना, आईपीएल 2025 की नीलामी में कोई खरीदार न मिलना, सोशल मीडिया पर आलोचनाओं की बाढ़- सबने मिलकर ऐसा लगा मानो उसकी कहानी अब खत्म हो चुकी है.
लेकिन सोमवार की सुबह, उसी रणजी ट्रॉफी में, उसी बल्ले से पृथ्वी शॉ ने सबको याद दिला दिया कि आग अभी बाकी है. राख के नीचे दबा यह सूरज अब फिर से चमकने को तैयार था.
महाराष्ट्र की ओर से खेलते हुए पृथ्वी शॉ ने जो किया, वह सिर्फ रन नहीं थे- वह आत्मविश्वास और पुनर्जन्म की गाथा थी. चंडीगढ़ के खिलाफ पहली पारी में सिर्फ 8 रन पर आउट होने के बाद सबको लगा कि कहानी फिर उसी ढर्रे पर जाएगी. लेकिन वह दूसरी पारी में बल्लेबाजी के लिए उतरा, तो उसकी आंखों में एक अलग चमक थी. वह बल्लेबाज नहीं, एक मिशन लेकर मैदान में उतरा था.
करीब 20 महीने बाद ऐसी पारी आई जिसने सबको याद दिला दिया कि यह नाम अभी खत्म नहीं हुआ है. फरवरी 2024 में मुंबई के लिए आखिरी शतक के बाद चुप रहे पृथ्वी शॉ ने ऐसी डबल सेंचुरी जड़ी कि उनके प्रशंसको की उम्मीदों का ग्राफ फिर ऊपर चढ़ आया है. तो क्या पृथ्वी शॉ वापसी की तैयारी में हैं..? उनकी हालिया पारी ने पुराने दिनों की याद दिला दी- वही आक्रामक अंदाज, वही बिंदास शॉट्स, और वही ‘सहवाग वाला टच’. अब सवाल यही है कि क्या यह पारी पृथ्वी शॉ की टीम इंडिया में वापसी का दरवाजा खोल सकती है?
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— BCCI Domestic (@BCCIdomestic) October 28, 2025
Maharashtra's Prithvi Shaw smashed a 141-ball double hundred which is the third fastest in Ranji Trophy history 👏
His marathon knock of 222(156) came against Chandigarh 🙌@IDFCFIRSTBank | #RanjiTrophy | @PrithviShaw pic.twitter.com/Uz8styZBVz
पृथ्वी शॉ की करियर-रिवाइविंग पारी
25 साल के शॉ ने अपनी पारी की शुरुआत से ही चंडीगढ़ के गेंदबाजों पर हमला बोल दिया. पहली 55 गेंदों में ही उसने 13 चौकों की मदद से 80 रन बना लिए थे. इसके बाद उनकी गति और बढ़ गई. तीसरे दिन केवल 72 गेंदों में उन्होंने अपना शतक पूरा कर लिया- महाराष्ट्र के लिए यह उनका पहला शतक था. पारी में उस आत्मविश्वास की झलक थी जो कभी उनकी पहचान हुआ करती थी.
लेकिन शॉ वहीं नहीं रुके. उन्होंने हर रन के साथ यह संदेश दिया कि उनके अंदर की आग बुझी नहीं है. वह हर गेंद पर मानो यह कह रहा थे- 'मुझे खत्म मत समझो, मैं अभी जिंदा हूं.'
फिर आया वह पल जिसने सबको रोमांचित कर दिया. पृथ्वी शॉ ने सिर्फ 141 गेंदों में अपना दोहरा शतक पूरा किया. रणजी ट्रॉफी के इतिहास में, अगर प्लेट ग्रुप के मैचों को छोड़ दिया जाए, तो यह दूसरा सबसे तेज दोहरा शतक है. इससे पहले केवल रवि शास्त्री ने 1984-85 सीजन में बड़ौदा के खिलाफ 123 गेंदों में यह कमाल किया था.
(2023-24 सीजन में हैदराबाद के तन्मय अग्रवाल ने प्लेट ग्रुप के मैच में 119 गेंदों में डबल सेंचुरी लगाई थी- जो पूरे रणजी इतिहास में सबसे तेज दोहरा शतक है. चूंकि प्लेट ग्रुप में क्वालिटी ऑफ बॉलिंग और मुकाबले का स्तर अपेक्षाकृत कमजोर माना जाता है)
अब भी इंडिया के सबसे विस्फोटक ओपनर
शॉ अब ऐसे दूसरे भारतीय बल्लेबाज बन गए हैं जिन्होंने 200 गेंदों से कम में दो से अधिक बार प्रथम श्रेणी क्रिकेट में दोहरा शतक जमाया है. यह उपलब्धि उनसे पहले सिर्फ वीरेंद्र सहवाग के नाम थी, जिन्होंने भारत के लिए तीन बार ऐसा किया था.
पृथ्वी शॉ की पारी 156 गेंदों में 222 रनों पर समाप्त हुई. इस दौरान उनके बल्ले से 29 चौके और 5 छक्के निकले. मैदान में हर तरफ तालियां गूंज उठीं. यह सिर्फ एक पारी की सराहना नहीं थी, बल्कि एक खोए हुए खिलाड़ी की वापसी पर दर्शकों का स्वागत था.
यह वही पृथ्वी हैं, जिसने 18 साल की उम्र में भारत को अंडर-19 वर्ल्ड कप जिताया था. वही जिसने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तूफानी शुरुआत की थी. लेकिन फिर… सबकुछ बिखर गया. अब उन्होंने टीम बदली- मुंबई छोड़कर महाराष्ट्र चले गए. कहा था, 'मुझे नए माहौल की जरूरत है.'
अपनी जिद से करियर की कहानी दोबारा लिख रहे
मुंबई से महाराष्ट्र का सफर, आलोचनाओं से आत्मविश्वास तक की यात्रा, और असफलताओं से आत्म-खोज तक का रास्ता- पृथ्वी शॉ की यह पारी इन सबका प्रतीक बन गई. उसने न सिर्फ क्रिकेट में रन बनाए, बल्कि अपनी पहचान, अपनी जिद और अपने अस्तित्व को फिर से साबित किया.
पृथ्वी शॉ ने उस दिन सिर्फ दोहरा शतक नहीं लगाया, उसने अपने करियर की कहानी दोबारा लिखी. हर चौका एक जवाब था, हर छक्का एक बयान, और हर रन एक उम्मीद. चंडीगढ़ की उस सुबह क्रिकेट ने एक पुराना सूरज फिर से उगते देखा- एक खिलाड़ी जो गिरा था, लेकिन फिर उठ खड़ा हुआ.