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हार नहीं 'आत्मसमर्पण...', भारतीय क्रिकेट को हिला गया ‘गंभीर’ दौर

विराट कोहली, रोहित शर्मा और अन्य अनुभवी खिलाड़ियों के जाने के बाद टीम की रीढ़ टूटती दिखी. नई लीडरशिप स्पष्ट दिशा नहीं दे पा रही और युवा खिलाड़ी दबाव में जूझ रहे हैं. गौतम गंभीर की कोचिंग में भारत का टेस्ट प्रदर्शन लगातार गिरा है- 19 में से केवल 7 जीत, दो घरेलू क्लीन स्वीप हार.... और पिछले छह दशकों का सबसे खराब घरेलू रिकॉर्ड.

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स्पिन मास्टर्स ही स्पिन के आगे नतमस्तक... (Photo, PTI)
स्पिन मास्टर्स ही स्पिन के आगे नतमस्तक... (Photo, PTI)

भारतीय क्रिकेट को घर में कभी अभेद्य माना जाता था, लेकिन अब वही किला दरारों से जूझ रहा है. पहली बार 66 वर्षों में ऐसा हुआ कि भारत ने सात घरेलू टेस्ट मैचों में पांच हार झेली. यह हार केवल स्कोरबोर्ड तक सीमित नहीं, बल्कि उस गौरव और आत्मविश्वास का संहार है, जिसने दशकों तक टीम इंडिया को दुनिया में सम्मान दिलाया.

दक्षिण अफ्रीका ने बुधवार को दूसरे और अंतिम टेस्ट में भारत को 408 रनों से रौंद डाला, जो रनों के अंतर से भारत के क्रिकेट इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी हार है. इसके साथ ही दक्षिण अफ्रीका ने सीरीज 2-0 से अपने नाम कर ली और यह उनके लिए पिछले 25 वर्षों में भारत में टेस्ट सीरीज में पहली जीत भी रही.

घर की पिच, पर स्पिन के आगे बेबस

भारतीय क्रिकेट जिस दौर से गुजर रहा है, उसे लेकर जो आशंकाएं थीं, वे अब वास्तविकता बन गई हैं. जिस पिच पर भारतीय स्पिनर्स ने वर्षों तक जादू बिखेरा, वहां दक्षिण अफ्रीका के गेंदबाजों ने कहर ढाया. यह वही भारत है, जिसकी बल्लेबाजी परंपरा दुनिया को सिखाती रही है कि स्पिन को कैसे खेला जाता है, लेकिन इस बार अपने ही घर में कहानी उलट गई.

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इस करारी हार को केवल हार कहना सही नहीं होगा. यह आत्मसमर्पण था. मैदान पर योजना का अभाव, तकनीक की कमी और आत्मविश्वास का टूटना... हर पहलू ने टीम की कमजोरियों को उजागर किया. टीम की रीढ़ मानो अचानक ही कमजोर पड़ गई, जिससे घरेलू किला अब पहले जैसा मजबूत नहीं रहा.

विराट-रोहित के जाते ही टीम का पस्त हाल

विराट कोहली, रोहित शर्मा, चेतेश्वर पुजारा जैसे स्तंभों के जाने के बाद टीम पस्त दिखी. नई लीडरशिप और नए संयोजन में वह धार और आत्मविश्वास नहीं नजर आए, जिसकी इंटरनेशनल टेस्ट क्रिकेट में हमेशा जरूरत होती है. युवा खिलाड़ी अनुभवियों के मार्गदर्शन के बिना संघर्ष करते रहे और विपक्ष ने इस कमजोरी का पूरा फायदा उठाया.

गौतम गंभीर के कार्यकाल में संकट और गहरा गया है. भारत अब अपने घरेलू मैदान पर लगातार दो क्लीन स्वीप हार झेल चुका है- 2024 में न्यूजीलैंड से 0–3 और अब दक्षिण अफ्रीका से 0–2. पिछले छह दशकों में पहली बार ऐसा हुआ कि भारत ने घरेलू मैदान पर अपने सात में से पांच टेस्ट गंवा दिए. यह आंकड़ा केवल खराब फॉर्म नहीं, बल्कि गहरे भरोसे और मानसिक मजबूती के संकट की तरफ इशारा करता है.

गौतम गंभीर की कोचिंग में गहराता संकट

गंभीर की कोचिंग में भारत ने अब तक 19 टेस्ट खेले हैं, जिनमें से 7 जीते, 10 हारे और 2 ड्रॉ हुए. जीत का प्रतिशत सिर्फ 36.82% रह गया है, जो स्पष्ट करता है कि टीम सही दिशा की तलाश में भटक रही है. छह पूरी हुई सीरीज में केवल दो ही जीत भारत के नाम रही. यह आंकड़ा दिखाता है कि टीम योजना और तकनीक के मामले में कमजोर पड़ गई है.

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खिलाड़ियों की व्यक्तिगत क्षमता अब टीम के प्रदर्शन में पर्याप्त असर नहीं दिखा पा रही. पिच की स्थिति, रणनीति की कमी और मानसिक दबाव ने मिलकर घरेलू किले को कमजोर कर दिया. भारत की बल्लेबाजी, जो हमेशा स्पिन के खिलाफ दुनिया में मिसाल रही, इस बार घर में ही गिर गई.

भारतीय क्रिकेट इस समय अजीब मोड़ पर खड़ा है. सवाल सिर्फ पिच या खिलाड़ी चयन का नहीं, बल्कि उस मानसिकता का है, जिसने वर्षों तक दुनिया को मात दी और अब खुद घर में बिखरती दिख रही है. अगर यह दौर बदला नहीं गया, तो आने वाले समय में संकट और गहरा सकता है.

पूर्व खिलाड़ियों के निशाने पर गंभीर

अनिल कुंबले -

'भारतीय टीम को सोच-समझ कर निर्णय लेने की जरूरत है. इन नतीजों को भूल नहीं सकते. आपको आपस में बात करनी होगी कि भारतीय टेस्ट क्रिकेट को आगे कैसे ले जाना है. पिछले छह-आठ महीनों में दिग्गज रिटायर हुए हैं और ऐसा होने पर आपको आत्ममंथन करना चाहिए.'

वेंकटेश प्रसाद - 

‘टेस्ट क्रिकेट में भारत के रवैये से निराश हूं. हरफनमौलाओं पर इतना जोर देना समझ से परे है, खासकर जब आप उनसे गेंदबाजी नहीं करा रहे. खराब रणनीति, कमजोर कौशल और हावभाव से हम दो सीरीज में सूपड़ा साफ करवा चुके हैं.’

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इरफान पठान - 

'भारतीय बल्लेबाज न स्पिन खेल पाए, न धैर्य दिखा पाए. साउथ अफ्रीका ने हर विभाग में हमें मात दी.’

केविन पीटरसन -

'भारत कभी अपनी धरती पर हारता नहीं है, बशर्ते कुछ बहुत अच्छे खिलाड़ी आकर कोई खास पारी न खेल लें. पिछले कुछ साल में टेस्ट क्रिकेट में भारत को क्या हो गया है?'

दिनेश कार्तिक - 

'टीमें कभी भारत दौरे से डरती थीं, लेकिन गंभीर के दौर में अब कोई टीम हमसे नहीं डरती. भारतीय टेस्ट क्रिकेट को बचाने के लिए बड़े और कड़े फैसले जरूरी हैं.'

... क्या कर सकता है कोच?

अनुभवी ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन गंभीर के समर्थन में सामने आए हैं. अश्विन का कहना है कि जब खिलाड़ी खुद पर्याप्त जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे, तब कोच को हटाने की मांग करना उचित नहीं है. 2027 तक अनुबंधित गंभीर को हटाने की बात सही नहीं. उनके मुताबिक, 'कोच पर उंगली उठाने से पहले खिलाड़ियों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए.'

बदलाव और चेतावनी की जरूरत

भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के लिए यह समय केवल चिंता और निराशा का नहीं, बल्कि चेतावनी और बदलाव की अपील का भी है. टीम को चाहिए कि वह अनुभवियों और युवाओं के बीच संतुलन बनाकर, रणनीति, तकनीक और आत्मविश्वास के साथ अपने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुनः प्रभुत्व स्थापित करे. केवल तभी भारत का घरेलू किला फिर से अभेद्य और गर्व से भरा हुआ दिखेगा.

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