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अगहन के बचे दिनों में करें श्रीकृष्ण के इस स्त्रोत का पाठ, बन जाते हैं संतान प्राप्ति के योग

मार्गशीर्ष मास को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है. इस महीने दामोदर अष्टकम् का पाठ संतान प्राप्ति के लिए विशेष फलदायी होता है. कथा के अनुसार बाल श्रीकृष्ण ने माता यशोदा द्वारा पेट में रस्सी से बंधे जाने के बाद कुबेर के पुत्रों को मोक्ष दिलाया था.

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भगवान श्रीकृष्ण (Photo Credit: AI Generated)
भगवान श्रीकृष्ण (Photo Credit: AI Generated)

अगहन मास अपनी समाप्ति की ओर है. पुराणों में इस हिंदी महीने को मार्गशीर्ष कहा गया है और माना जाता है कि यह महीना साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप है. इसलिए इस महीने की मान्यता श्रीकृष्ण के रूप में ही की जाती है. गीता में भी जब भगवान कृष्ण अर्जुन से सृष्टि में मौजूद अपने सभी स्वरूपों का वर्णन करते हैं तो वह कहते हैं मासों में मैं मार्गशीर्ष मास हूं. इस महीने में भगवान श्रीकृष्ण की अलग-अलग लीलाओं से जुड़े स्त्रोत के पाठ को अपनी दैनिक पूजा में शामिल करना चाहिए.

संतान प्राप्ति का खास उपाय

संतान प्राप्ति के इच्छुक दंपती को इस महीने श्रीकृष्ण के विशेष दामोदर अष्टक स्त्रोत का पाठ करना चाहिए. यह आठ श्लोकों की एक शृंखला है. जिसमें श्रीकृष्ण के बालपन की उस लीला का वर्णन है, जब वह माता के यशोदा के माखन से भरे कई घड़ों को फोड़ डालते हैं और उन्हें परेशान करते हैं. तब माता उन्हें एक भारी ओखली से बांध देती हैं.

क्या है दामोदर स्वरूप की कथा

तब बाल श्रीकृष्ण खुद को उस ओखल समेत घसीट कर आंगन में ले जाते हैं, जहां पर बहुत प्राचीन काल से दो यमलार्जुन के पेड़ खड़े थे. बाल कृष्ण उन दोनों पेड़ों के बीच ऊखल फंसा कर जोर की टक्कर मारते हैं. जिससे दोनों पेड़ गिर गए और तभी एक चमत्कार हुआ. वहां पर दो दिव्य देव पुरुष प्रकट हो गए. असल में ये दोनों धन के स्वामी और देवताओं की सभा में स्थान पाने वाले यक्षों के अधिपति कुबेर के पुत्र था. इनका नाम मणिग्रीव और नलकुवर था. एक बार दोनों ने ही देवर्षि नारद के साथ अशिष्टता की थी. जब बहुत समझाने पर भी दोनों नहीं माने तब नारद मुनि ने उन्हें शाप देकर वृक्ष में बदल दिया था.

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कुबेर के पुत्रों को क्यों मिला था शाप?

कई युगों से वृक्ष बने कुबेर के पुत्र इसी पल की प्रतीक्षा में थे कि कब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें बालरूप में आकर दैवलीला के जरिए इस शाप से मुक्ति दिलाएं. श्रीकृष्ण ने अपने इसी दामोदर स्वरूप में जिसमें उनकी अवस्था तीन वर्ष की होने को है. वह घुंघराले धूल में सने बालों के साथ आंगन में घुटवन चलते हुए ओखल को खींचते हुए ले जाते हैं, ब्रह्मा ने इसे दृश्य को देखा तो प्रेम से उनके आंखो से आंसू बहने लगे. उन्होंने श्रीकृष्ण के इस रूप को दामोदर कहा और उनकी ही प्रेरणा से दामोदर भगवान का देवताओं ने स्तवन किया.

क्यों पड़ा श्रीकृष्ण का दामोदर नाम?

श्रीकृष्ण का नाम दामोदर इसलिए पड़ा क्योंकि माता यशोदा ने बचपन में उन्हें शरारत के कारण पेट में रस्सी से बांध दिया था. 'दाम' का अर्थ है रस्सी और 'उदर' का अर्थ है पेट, इसलिए 'दामोदर' का अर्थ हुआ 'वह जो पेट के चारों ओर रस्सी से बंधा हो'. इस अष्टकम का स्त्रोत पद्म पुराण है, जहां श्रीकृष्ण के इस बाल स्वरूप की स्तुति की गई है और ब्रह्माजी ने इस स्त्रोत के साथ वरदान जोड़ा है कि इस स्त्रोत का पाठ करते हुए संतान की मनोकामना लेकर निसंतान दंपती श्रीकृष्ण का ध्यान करेगा तो उसे जरूर शुभ चिह्न वाली संतान की प्राप्ति होगी.

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अगर आप इसके संस्कृत वर्तनी का पाठ या उच्चारण न कर पाएं तो आप पूर्ण मनोयोग से धीरे-धीरे इसके हिंदी अर्थ का पाठ करें. यह भी आपके लिए उतना ही फलदायी होगा.

यह है दामोदर अष्टकम्

नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्‌.
यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥ 1

अर्थ: मैं सर्वेश्वर सच्चिदानंद स्वरूप को अपनी श्रद्धा अर्पित करता हूँ, जिनके गालों को छूते हुए कुंडल यानी बालियां हैं, जो गोकुल नाम के दिव्य धाम में परम शोभायमान हैं, जिसने गोपियों द्वारा छिपाए गए मक्खन के बर्तन को तोड़ दिया और मां यशोदा के डर से दूर भाग गया, लेकिन आखिर में पकड़ा गया, ऐसे भगवान दामोदर को मैं अपना विनम्र प्रणाम अर्पित करता हूं.

 

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्.
मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥ 2

अर्थ: मां के हाथ में लाठी देख जो रोते-रोते बार-बार अपने दोनों हाथों से आंखों को मसल रहे हैं, उनकी आंखों में डर है, वे तेज तेज सिसकियां ले रहे हैं, जिस कारण उनके त्रिरेखा युक्त गर्दन में पड़ी मोतियों की माला हिल रही है, जिनका पेट रस्सी से नहीं बल्कि मां यशोदा के वात्सल्य प्रेम से बंधा है, मैं उन परमेश्वर भगवान दामोदर को नमन करता हूं.

 

इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्.
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥ 3

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अर्थ: जो ऐसी बाल्य-लीलाओं से गोकुल वासियों को आनंद व सरोवरों में डुबोते रहते हैं, जो अपने ऐश्वर्य-ज्ञान में मग्न अपने भावों के प्रति यह तथ्य प्रकाशित करते हैं कि उन्हें भय-आदर की धारणाओं से मुक्त अंतरंग प्रेमी भक्तों द्वारा ही जीता जा सकता है, मैं उन भगवान दामोदर को कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं.

 

वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह.
इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः॥ 4

अर्थ: हे प्रभु, अगर आप सभी प्रकार के वरदान दे सकते हैं तो मैं आपसे न तो सांसारिक जीवन से मुक्ति की आशा करता हूं, न ही मुझे आपके स्वर्गीय बैकुंठ में कोई स्थान चाहिए और न ही भक्ति द्वारा कोई अन्य वरदान मांगता हूं. हे प्रभु, मेरी तो बस इतनी ही इच्छा है कि आपका यह बाल गोपाल रूप मेरे दिल में हमेशा प्रकाशित रहे, इसके अलावा मुझे किसी अन्य वरदान की इच्छा नहीं है.

 

इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै- र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या.
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥ 5

अर्थ: हे प्रभु! आपका घुंघराले बालों से घिरा हुआ श्याम रंग का मुखकमल जो मां यशोदा द्वारा बार बार चुम्बन किया जा रहा है और आपके होंठ बिम्बफल की तरह लाल हैं, आपका ये अत्यंत सुंदर कमल रूपी मुख मेरे दिल में हमेशा विराजित रहे. इसके अतिरिक्त मुझे लाखों प्रकार के दूसरे लाभों (वरदानों) की कोई आवश्यकता नहीं.

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नमो देव दामोदरानन्त विष्णो! प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्.
कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥ 6

अर्थ: हे भगवान, मैं आपको नमन करता हूं, हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, हे नाथ, मेरे प्रभु, मुझ पर प्रसन्न हो जाइए, मैं दुखों के सागर में डूबा जा रहा हूं. मेरे ऊपर अपनी कृपा दृष्टि बरसाकर मुझ दीन-हीन शरणागत का उद्धार कीजिए और अपनी अमृतमय दृष्टि से मेरी रक्षा कीजिए.

 

कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्‌ त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च.
तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥ 7

अर्थ: हे भगवान दामोदर, जिस प्रकार आपने माता यशोदा द्वारा ओखल में बंधने के बाद भी कुबेर के पुत्रों (मणिग्रीव तथा नलकुवर) को मोक्ष दिया, वे एक पेड़ होने के अभिशाप से मुक्त हो गए और आपकी प्रेमपूर्ण भक्ति के लिए आपकी शरण में आ गए, उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी प्रेम भक्ति प्रदान कर दीजिए, यही मेरा एकमात्र आग्रह है, मुझे किसी भी प्रकार के मोक्ष की इच्छा नहीं है.

 

नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने.
नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥ 8

अर्थ: हे भगवान दामोदर, मैं सबसे पहले उस दीप्तिमान रस्सी को प्रणाम करता हूं जिसने आपके पेट (उदर) को बांध दिया था, जहां से भगवान ब्रह्मा जी ने पूरे ब्रह्मांड का निर्माण किया था, आपकी प्रिय राधा रानी के चरण कमलों को मैं कई बार नमन करता हूं और अनंत लीलाएं करने वाले आप परमेश्वर को मेरा प्रणाम है.

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दामोदर अष्टकम् पाठ के लाभ

शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक और अगहन मास में दामोदर अष्टक का पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. दामोदर अष्टक के जाप के साथ रोजाना तुलसी जी के समक्ष दीप दान करने से मनोकामना पूर्ण हो जाती है. दामोदर अष्टकम का जाप करने से जीवनसाथी के साथ प्रेम संबंधों में मधुरता आती है और संतान प्राप्ति के योग बनते हैं.

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