हर साल कुल 24 एकादशी आती हैं. इनमें से एक फाल्गुन शुक्ल में आने वाली आमलकी एकादशी भी है. इसे आमलक्य एकादशी भी कहा जाता है. आमलकी का अर्थ आंवला होता है. आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है. कहते हैं कि आंवले के वृक्ष में स्वयं भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का वास होता है. इसलिए आमलकी एकादशी पर श्री हरि के पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि इस दिन आंवले का उबटन, आंवले के जल से स्नान, आंवला पूजन, आंवले का भोजन और आंवले का दान करना चाहिए. आमलकी एकादशी आज है.
आमलकी एकादशी की तिथि और मुहूर्त
आमलकी एकादशी तिथि 20 मार्च को रात 12 बजकर 21 मिनट से प्रारंभ होगी और इसका समापन 21 मार्च को देर रात 02 बजकर 22 मिनट पर होगा. ऐसे में रंगभरी एकादशी व्रत 20 मार्च को रखा जाएगा. रंगभरी एकादशी पर पूजा का शुभ मुहूर्त 20 मार्च को सुबह 6.25 बजे से सुबह 9.27 बजे तक रहेगा.
आमलकी एकादशी की पूजन विधि
आमलकी एकादशी के दिन पूजन से लेकर भोजन तक हर कार्य में आंवले का उपयोग होता है. इस दिन सुबह स्नानादि के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा करें. भगवान के सामने घी का दीपक जलकार विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें. पूजा के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करना न भूलें. यदि आंवले का वृक्ष उपलब्ध न हो तो श्री हरि को आंवला अर्पित कर दें.
इस दिन आंवले के वृक्ष को धूप, दीप, चंदन, रोली, पुष्प, अक्षत आदि अर्पित करें. फिर उसके नीचे किसी गरीब या जरूरतमंद को भोजन कराएं. अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को स्नानादि के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें और किसी गरीब को कलश, वस्त्र और आंवला आदि दान करें.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, चित्रसेन नामक राजा हुआ करता था. उसके राज्य में एकादशी के व्रत का बहुत महत्व था. राज्य का हर नागरिक यह उपवास करता था. राजा की आमलकी एकादशी के प्रति बहुत श्रद्धा थी.
एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गए. तभी कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को घेर लिया. इसके बाद डाकुओं ने शस्त्रों से राजा पर हमला कर दिया. मगर देव कृपा से राजा पर जो भी शस्त्र चलाए जाते वो पुष्प में बदल जाते.
डाकुओं की संख्या अधिक होने से राजा संज्ञाहीन होकर धरती पर गिर गए. तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और समस्त राक्षसों को मारकर अदृश्य हो गई. जब राजा की चेतना लौटी तो उसने सभी राक्षसों का मरा हुआ देखा. राजा आश्चर्य में पड़ गया कि इन डाकुओं को आखिर किसने मारा. तभी आकाशवाणी हुई- हे राजन! यह सब राक्षस तुम्हारे आमलकी एकादशी का व्रत करने के प्रभाव से मारे गए हैं. तुम्हारी देह से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है. इन्हें मारकर वहां पुन: तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई. तब अमालकी एकादशी के व्रत को लेकर श्रद्धा और भी बढ़ गई.