माह-ए-रमजान लोगों को नेकी की तरफ बुलाता है और कुरआन जिंदगी गुजारने का बेहतरीन तरीका बताता है, अल्लाह ने कुरआन को रमजान माह में नाजिल कर यही पैगाम दिया है. कुरआन की बातों को जानकार उसे दूसरों तक पहुंचाना भी रोजे का मकसद है.
रमजान में ये भी है जरूरी
इस्लाम के विद्वानों के मुताबिक, पहले रमजान से शुरू होने वाली कुरआन की तिलावत और तरावीह की नमाज भी पूरे महीने पढ़नी चाहिए. रोजेदारों को कुरआन का एहतमाम भी ज्यादा से ज्यादा इस माह में करना चाहिए. रमजान के रोजे के दौरान आंख, नाक, कान व जुबान का रोजा भी होना चाहिए और हर तरह के गुनाहों से बचना चाहिए.
माह-ए-रमजान के मकसद पर रोजेदारों से बात की गई, जिस पर रोजेदारों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दीं.
सुल्तान अहमद व मो. इस्लाम ने कहा कि रोजा अल्लाह तआला को राजी करने के लिए रखा जाता है. भूखा-प्यासा भी उसी के लिए रहते हैं. उन्होंने कहा कि यह माह रहमत, बरकत और मगफिरत का महीना है. आखिरी अशरा मगफिरत में तीन रातें शबे कदर की होती हैं, जिनमें रातभर जागकर तिलावत की जाती हैं.
नेकी का कई गुना सवाब
हाफिज सैय्यद मो. अहमद ने कहा कि रमजान में अल्लाह तआला मुसलमानों का दिल नेकियों की तरफ झुका देता है, इसलिए कुरआन को ध्यान से सुनना चाहिए और उसकी बातों पर अमल करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कुरआन के मुताबिक, जिंदगी गुजारने पर कामयाबी मिलती है. अहमद ने कहा कि जकात, सदका व फितरा निकालने से बरकत होती है और गरीब भी खुशियों के साथ ईद मनाते हैं.
वहीं, सिराजुल हसन और उसमान खान ने कहा कि माहे रमजान इबादत का महीना है. हर बालिग शख्स के लिए रोजा फर्ज है. बिना किसी शरई मजबूरी के जो भी इन रोजों को छोड़ेगा, वह गुनहगार है. उन्होंने कहा कि बीमारों और मुसाफिरों को रोजे में छूट दी गई है. लेकिन बीमारी दूर हो जाने व सफर से लौटने के बाद छूटे हुए रोजे रखना जरूरी है.
- इनपुट IANS