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तबाही के बीच बचा रह गया बाबा केदारनाथ का मंदिर

कुदरत ने उत्तराखंड में भारी तबाही मचाई है. सबसे ज्यादा बर्बादी  केदारनाथ में मची है. पूरे इलाके में मलबा और पानी बिखरा हुआ है. श्रद्धालुओं को ठहराने के लिए बने होटल और लॉज नेस्तनाबूद हो चुके हैं, लेकिन इतनी तबाही के बावजूद बाबा केदारनाथ का मंदिर बचा रह गया है.

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केदारनाथ
केदारनाथ

कुदरत ने उत्तराखंड में भारी तबाही मचाई है. सबसे ज्यादा बर्बादी केदारनाथ में मची है. पूरे इलाके में मलबा और पानी बिखरा हुआ है. श्रद्धालुओं को ठहराने के लिए बने होटल और लॉज नेस्तनाबूद हो चुके हैं, लेकिन इतनी तबाही के बावजूद बाबा केदारनाथ का मंदिर बचा रह गया है. तबाही के इस मंजर के बीच बाबा केदारनाथ के मंदिर को कुछ नुकसान जरूर पहुंचा है पर बाबा का यह धाम अब भी सही सलामत है.

साढ़े 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बाबा केदारनपाथ विराजते हैं. बस अब इसी मंदिर के भरोसे केदारनाथ की पहचान बची है. बादल फटने से यहां ऐसी तबाही मची कि पूरे केदारनाथा मंदिर के आस-पास का मंजर ही बदल गया. भक्ति और आस्था के इस धाम कुदरत का यह कहर देखकर मन सिंहर उठता है. केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है, लेकिन जल प्रलय ने केदारनाथ को पूरी तरह तहस नहस कर दिया. इस बर्बादी के बीच अगर भोले शंकर का मंदिर बचा रह गया है, लेकिन वह भी आधे मलबे में डूबा है. जिस 6 फीट के चबूतरे पर यह मंदिर बना है वो कहीं नजर नहीं आ रहा.

खबर है कि केदारनाथ के पास का रामबाड़ा बाजार पूरी तरह बह चुका है. केदारनाथ मंदिर का मुख्य द्वार भी पानी के तेज बहाव की चपेट में आने से बह गया है. श्रद्धालुओं के रहने के लिए बने लॉज और होटल भी पानी की धार में समा चुके हैं. अब वहां सिवाए मलबे और पत्थरों के और कुछ नजर नहीं आ रहा. इस इलाके में श्रद्धालुओं के लिए बने कई होटल सैलाब में समा गये, हजारों भक्त अभी भी फंसे हुए है, न जाने कितने लापता है. पिछले 48 घंटों से लगातार केदारनाथ में रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है, सेना  के जवान हेलिकॉप्टर से लोगों को बचाने में जुटे हुए है, रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे अफसरों का कहना है कि ऐसी तबाही पहले कभी नहीं देखी गई. अब तक यहां से करीब 500 लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया जा चुका है.

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सिर्फ 6 महीनों के लिए खुलते हैं पट
केदारनाथ के पट साल में केवल 6 महीनों के लिए खुलते हैं. सर्दियों में केदारनाथ के कापट बंद रहते हैं और इसलिए मंदिर के पाट खुले होने के दौरान भक्त बारी संख्या में यहां पहुंच कर पुण्य कमाना चाहते हैं. अपने आराध्य के दर्शनों की लालसा लिए कई यात्री दर्शनों के लिए आए हुए थे. उनमें से कुछ तो मौत की आगोश में समा गए और कई लोग रास्ते में फंसे होने के कारण सही सलामत घर पहुंचने की दुआ मांग रहे हैं.

पुण्‍यदायी होती है एक झलक
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा केदारनाथ के दर्शन की राह आसान नहीं, लेकिन बाबा की एक झलक भी इतनी पुण्यदायी होती है कि भक्त बस खिंचे चले आते हैं. केदारनाथ की यात्रा बेहद कठिन मानी जाती है और इस बार कुदरत के कहर ने इस दुर्गम रास्ते को और कठिन बना दिया. इस धाम के दर्शन करने के लिये गये श्रद्धालुओं को इस बार पूरी यात्रा में कई चुनौतियां मिल रही हैं.

कैसे बना केदारनाथ मंदिर
इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने हजारों वर्ष पहले करवाया था, बाद में आदि गुरू शंकराचार्य ने इस मंदिर का जीर्णोंद्धार करवाया. पंचकेदारों में प्रमुख केदारनाथ मंदिर में भगवान शिव के धड़ रुप के दर्शन होते हैं. कहते हैं द्वापर युग में महाभारत युद्ध के बाद पांडव कुलहत्या का पाप धोना चाहते थे और इसके लिए वो भगवान शिव के दर्शन करना चाहते थे, लेकिन औघड़दानी तो पांडवों से नाराज थे और इसीलिए पांडवों से बचने के लिए जब महादेव ने भैंसे का रूप धारण किया तो उनका धड़ यहीं गिरा था, जिसे अब भक्त केदारनाथ धाम के नाम से पुकारते हैं.

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कहते हैं भगवान केदारनाथ का सिर नेपाल में और उनकी भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई. इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है, जिनकी आराधना समस्त पाप-कष्ट से मुक्ति देती है. भगवान केदारनाथ के कपाट साल में 6 महीने आम भक्तों के लिए खुलते हैं. कपाट खुलने से पहले भगवान भैरवनाथ की पूजा की जाती है और फिर भगवान के द्वार खोले जाते हैं. उसके बाद भुकुंड भैरव की पूजा होती है, जिन्हें क्षेत्रपाल माना जाता है, लेकिन सर्दियों में उनका कपाट बंद हो जाता है. इस दौरान बाबा केदार ऊखीमठ में विराजते हैं. इसके पीछे यह मान्यता काम करती है कि छह महीने तक नारद मुनि भगवान की अकेले में आराधना करते हैं. भगवान केदारनाथ के कपाट खुलते ही हर भक्त के मन में लालसा होती है कि इस दौरान भगवान के दर्शन कर कई जन्मों के पुण्य को प्राप्त कर लिया जाय.

यात्रा की शुरुआत
केदारनाथ की यात्रा गोपेश्वर के गोपीनाथ से आरंभ होती है. गोपेश्वर से 18 किमी दूर माता अनुसुईया का मंदिर है, जिनका आशीर्वाद माताओं की सूनी गोद भर देता है. माता के इस दरबार से होकर भक्त ऊखीमठ पहुंचते हैं, जहां श्रीराम के पूर्वज राजा मंधाता ने कठोर तप किया था. ऊखीमठ ही वो पवित्र धाम है, जहां सर्दियों में बाबा केदारनाथ की पवित्र गद्दी विराजती है. ऊखीमठ से होते हुए श्रद्धा की ये यात्रा फाटा पहुंचती है. फाटा से गौरीकुंड और फिर 14 किलोमीटर पैदल यात्रा कर भक्त केदारनाथ पहुंचते हैं.

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