दीपों का त्योहार दीपावली अंधेरे पर उजाले की जीत की गाथा भले सुनाती हो, मगर अंधेरे को हराने के लिए प्राचीन काल से जो जरिया हम अपनाते रहे हैं, अब उसकी रोशनी मद्धिम पड़ती जा रही है. रोशनी के पर्व पर न तेल और न ही बाती, अब तो ड्रैगन लाइटों (चीन निर्मित बल्ब) की रौशनी के बीच धन-धान्य की देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना होने लगी है.
दीपावली पर सजे बाजार में जेल राइस, एलईडी, क्रिस्टल, मटका, पाइप लाइट, रॉकेट एलईडी, उड़हुल फूल और मिर्ची झालर के साथ दर्जनों आइटम हैं. इन बाजारों में दीया और मोमबती भी हैं, लेकिन इनमें तेल और रूई की बाती नहीं है. ये दीये और मोमबती बिजली से रोशन होते हैं. इस चमक-दमक के आगे भारतीय परंपरागत रैशनी के जरिए अब दम तोड़ रहे हैं.
दीये जलाने की परंपरा पर ड्रैगन बाजार के प्रहार के कारण एक खास जाति के रोजीरोटी पर भी आफत आ गई है. उनके लिए पर्व-त्योहार सालभर की कमाई का जरिया होता था, लेकिन अब विदेशी 'घुसपैठ' के कारण त्योहार तो देसी मनाया जा रहा है, मगर तरीका विदेशी हो गया है. मिट्टी के दीयों का कारोबार ठप पड़ गया है.
मिट्टी के दीये का कारोबार करने वाले अब दीपावली पर बहुत ज्यादा दीया नहीं बनाते. पटना के राजा बाजार में दीया के कारोबारी मथुरा प्रजापति कहते हैं कि चार-पांच साल पहले जहां वह 20 हजार दीये आसानी से बेच लेते थे, वहीं अब पांच हजार दीये भी मुश्किल से बिक पाते हैं. उनकी मानें तो दीपावली से ज्यादा दीये शादी-ब्याह के लग्न के दौरान बिक जाते हैं.
झालर के कारोबार से जुड़े पटना के चांदनी मार्केट के व्यवसाई विपिन कुमार कहते हैं कि यूं तो पटना में सालभर ऐसी लाइटों की बिक्री होती ही रहती है, मगर दीपावली में इसकी बिक्री पांच गुना बढ़ जाती है. दीपावली को लेकर बाजार नए आइटमों से भर गया है. इसमें लेजर लाइट से लेकर वाटरप्रूफ लाइट तक शामिल हो गई हैं.
दुकानदार कहते हैं कि भगवान की आकृति वाली लाइट भी लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं. म्यूजिक मंत्र वाली लाइट, शिव-पार्वती और गणेश की प्रतिमा पर लाइट, पान के पत्ते पर गणेश लाइट भी लोग पसंद कर रहे हैं.
कुल मिलाकर अब लोगों के आशियाने भी छोटे होते जा रहे हैं और पर्व मनाने की परंपराएं भी बदल रही हैं.