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ये है वो गांव जहाँ द्रौपदी ने की थी छठ पूजा

रांची में छठ पूजा का ख़ास महत्व है. यहाँ के नगड़ी गावँ में छठव्रती ना तो नदी और ना ही तालाब में अर्घ्य देते है बल्कि एक कुएं में छठ पूजा होती है.

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represtational photo
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उत्तर भारत का महापर्व छठ आज देश के कोने कोने में धूम-धाम से मनाया जाता है. लेकिन रांची में छठ पूजा का ख़ास महत्व है. यहाँ के नगड़ी गांव में छठव्रती ना तो नदी और ना ही तालाब में अर्घ्य देते है बल्कि एक कुएं में छठ पूजा होती है.

दरअसल मान्यता है कि इसी कुंए के पास द्रौपदी सूर्योपासना करने के साथ सूर्य को अर्घ्य भी दिया करती थी. ऐसा माना जाता है कि वनवास के दौरान पांडव झारखंड के इस इलाके में काफी दिनों तक ठहरे थे.

कहते है कि एक बार जब पांडवों को प्यास लगी और दूर-दूर तक पानी नहीं मिला तब द्रौपदी के कहने पर अर्जुन ने जमीन में तीर मार कर पानी निकाला था.

मान्यता यह भी है कि इसी जल के पास से द्रोपदी सूर्य को अर्घ्य दिया करती थी. सूर्य की उपासना कि वजह से पांडवो पर हमेशा सूर्य का आशीर्वाद बना रहा. इसी मान्यता कि वजह से आज भी यहाँ छठ काफी धूम धाम से मनाया जाता है.

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ये हैं गांव से जुड़ी किवदंतियां:

मान्यता है कि इस गांव में भीम का ससुराल था. भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच का जन्म भी यहीं हुआ था. एक दूसरी मान्यता के मुताबिक महाभारत में वर्णित एकचक्रा नगरी नाम ही अपभ्रंश होकर अब नगड़ी हो गया है.

झारखण्ड की दो बड़ी नदियों का भी उदगम स्थल है यह स्थान:

स्वर्ण रेखा नदी दक्षिणी छोटानागपुर के इसी पठारी भू-भाग से निकलती है. इसी गाँव के एक छोर से दक्षिणी कोयल तो दूसरे छोर से स्वर्ण रेखा नदी का उदगम होता है.

स्वर्णरेखा झारखंड के इस छोटे से गांव से निकलकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल होती हुई गंगा में मिले बिना ही सीधी समुद्र में जाकर मिल जाती है.

इस नदी का सोने से भी संबंध है. जिसकी वजह से इसका नाम स्वर्णरेखा पड़ा है. बता दें कि स्वर्ण रेखा नदी की कुल लंबाई 395 किलोमीटर से अधिक है.

इसके साथ ही कोयल भी झारखंड की एक अहम और पलामू इलाके की जीवन रेखा मानी जाने वाली नदी है. यहाँ के बुजुर्ग दोनों नदियों का आपस में जुड़ा हुआ बताते है.

इस कुआं से पूरब की ओर जो धार फूट जाती है, वह स्वर्णरेखा का रूप ले लेती है और इस कुएं से जो उत्तर की ओर धार फूटती है, वह कोयल नदी का रूप ले लेती है.

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