छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार से 14 किलोमीटर दूर डमरू गांव में चल रही पुरातात्विक खुदाई के दौरान भगवान बुद्ध के पैरों के चिह्न मिले हैं. पुरातत्व विभाग के सूत्रों की मानें तो बौद्ध धर्म 'हीनयान समुदाय' के लोग इस तरह के पदचिह्न की पूजा पांचवीं सदी के बीच किया करते थे.
संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर डॉ. राकेश चतुर्वेदी का कहना है, 'डमरू में मिला भगवान बुद्ध का पदचिह्न छत्तीसगढ़ के इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ियां जोड़ने में सहायक होगा.'
डमरू में पिछले दो सालों से पुरातत्व विभाग डॉ. शिवाकांत वाजपेयी और राहुल सिंह की देखरेख में खुदाई करवा रहा है.
डॉ. वाजपेयी के मुताबिक, बौद्ध धर्म दो शाखाओं 'हीनयान' और 'महायान' में बंटा हुआ था. बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद हीनयान समुदाय की शुरुआत हुई थी. इस समुदाय के लोग बुद्ध की प्रतिमा नहीं बनाते थे, बल्कि उनके स्थान पर भगवान बुद्ध से संबंधित प्रतीक चिह्न, स्तूप, त्रिरत्न और पदचिह्नों का निर्माण कर उनकी पूजा करते थे. 'हीनयान' की इस परंपरा को मानने वाले भारत के अलावा श्रीलंका में भी हैं.
पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि बलौदाबाजार जिले का डमरू गांव पांचवीं सदी में ' हीनयान समुदाय' का प्रमुख केंद्र रहा होगा. बिहार के बोधगया में स्थित बुद्ध मंदिर में पदचिह्नों को बनाने की परंपरा दूसरी सदी ईसा पूर्व से पांचवीं शताब्दी तक रही. इस लिहाज से डमरू में भगवान बुद्ध का पदचिह्न मिलना इस स्थान को पहली शताब्दी से पांचवीं शताब्दी के बीच 'हीनयान' बौद्ध धर्म के बड़े केंद्र के रूप में प्रमाणित करता है.
डमरू में मिला भगवान बुद्ध का पदचिह्न अब तक मिले पदचिह्नें में सबसे छोटा है. इसके छोटे आकार को देखकर अनुमान लगाया जा रहा है कि इस पदचिह्न् का उपयोग बौद्ध भिक्षुओं द्वारा धार्मिक यात्रा के दौरान उपासना के लिए किया जाता रहा होगा.
डॉ. चतुर्वेदी का कहना है कि डमरू में मिले भगवान के पदचिह्न रिसर्चर्स और विषय एक्सपर्टस् के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसके पहले मध्य भारत में अलग से इस तरह के पदचिह्न कहीं नहीं मिले.
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सिरपुर को बौद्ध सर्किट में शामिल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. सिरपुर से बलौदाबाजार का डमरू गांव ज्यादा दूर नहीं है.
इनपुट: IANS