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धर्म

क्या लार निगलने से टूट जाता है रोजा? रमजान से जुड़े 7 बड़े मिथक

क्या लार निगलने से टूट जाता है रोजा? रमजान से जुड़े 7 बड़े मिथक
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अल्लाह की इबादत वैसे तो कभी भी की जा सकती है, लेकिन रमजान का पवित्र महीना बेहद खास होता है. इस हफ्ते से रमजान का महीना शुरू हो रहा है. रमजान के पीछे का मकसद एकता, शांति और अखंडता को बढ़ावा देना है.
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इस्लामिक मान्यता के अनुसार, दिन के पहले पहर (सहरी) से रोजा शुरू होता है और सूर्यास्त (इफ्तार) पर खत्म होता है. इस बीच रोजेदार अन्न-जल ग्रहण नहीं करते हैं. रोजा 30 दिनों तक चलता है.
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रोजा को लेकर कई तरह के भ्रम सामने आते रहते हैं. हालांकि सच्चाई अलग है. रोजा को लेकर कई ऐसे मिथक और धारणाएं हैं जिन पर लोगों की राय अलग-अलग नजर आती है. इस्लामिक साइंसेज ऐंड शरीया के छात्र और कुरान के हफीद शब्बीर हसन ने ऐसी ही तमाम धारणाओं पर बीबीसी से बातचीत में अपनी व्याख्या दी है. हालांकि अधिकतर मामलों में विचारधारा मायने रखती है और हर बिंदु पर बहस की जा सकती है. आइए जानते हैं धारणाओं और उस पर शब्बीर हसन और मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन (MCB) की राय...
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क्या लार निगलने से टूट जाता है रोजा? रमजान से जुड़े 7 बड़े मिथक
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1.ब्रश करने से टूटता है रोजा: हसन के मुताबिक, रोजेदार को लगता है कि हल्के से मिंट वाला टूथपेस्ट से रोजा टूट जाता है. हालांकि कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि रोजा में ब्रश करना बिल्कुल गलत नहीं होता है. वहीं हसन, रोजा को लेकर बेहद सतर्क रहने वाले लोगों के लिए अलग तरह का सुझाव देते हैं. वह कहते हैं, टूथपेस्ट से रोजा नहीं टूटता लेकिन सबसे बढ़िया विकल्प यह है कि आप कम से कम टूथपेस्ट का इस्तेमाल करें.  दांतों को साफ करने के लिए ऐसा कुछ इस्तेमाल करें जो बहुत मिन्टी और नमकीन ना हो. वह दांतों को साफ करने के लिए मिसवाक का इस्तेमाल करने का सुझाव देते हैं. यह सलवादोरा पर्सिका ट्री से बनता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ओरल हाइजीन के लिए इसका परामर्श दिया है.

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2. स्लाइवा (लार) निगलना: रोजा में लार घूंटने की पूरी अनुमति है बल्कि ऐसा करने को प्रोत्साहित भी किया जाता है.  हसन कहते हैं, इस धारणा का कोई आधार नहीं है, सलाइवा निगलना बिल्कुल स्वाभाविक क्रिया है. इससे रोजा नहीं टूटता है. रोजा इस बात से जरूर टूटता है जब आप दूसरों का सलाइवा लेते हैं. हसन कहते हैं, रोजा के दौरान अपने पार्टनर को किस नहीं करना चाहिए और शारीरिक संबंध भी नहीं बनाना चाहिए. रोजा रखने का सबसे बड़ा मकसद यही है कि आप अपनी इच्छाओं जिसमें खाना, पानी और शारीरिक संबंध पर नियंत्रण रखें.
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3. रोजा सिर्फ खाने-पीने का परहेज नहीं: रोजा सिर्फ शरीर से नहीं मन से भी होता है. अक्सर लोग रोजा को सिर्फ खाने-पीने से जोड़कर देखते हैं. लोगों का मानना होता है कि सिर्फ खाने-पीने का परहेज करने से रोजा की नेकी हासिल कर लेंगे. रोजे का मकसद जुबान, मन, बुद्धि से शुद्ध होकर अल्लाह की इबादत करना है. यह एक बेहतर इंसान बनने का अभ्यास है.
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4.भूलकर कुछ भी खाया तो टूट गया रोजा: कभी-कभी आपके दिमाग से उतर जाता है कि आपका रोजा है और ऐसे में आप गलती से कुछ खा लेते हैं. ऐसे में आपको लगता है कि आपका रोजा टूट गया. लेकिन ऐसा नहीं होता भूलकर कुछ खाने के बाद अगर आप उसे खाना बंद कर देते हैं तो आपका रोजा नहीं टूटता. हसन बताते हैं कि जब आप स्नान करते हैं, तब हो सकता है कभी पानी आपके मुंह में भी चला जाता हो, तो ऐसे में आप उसे थूक देते हैं ना कि अपना रोजा तोड़ देते हैं.
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5. रोजा के दौरान आई ड्रॉप और इन्जेक्शन नहीं ले सकते: मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन (एमसीबी) ने लोगों से रोजा के दौरान आई ड्रॉप जैसी दवाइयों का इस्तेमाल जारी रखने के लिए चेतावनी जारी की है. एमसीबी ने रमजान महीने के लिए हेल्थ फैक्ट शीट भी जारी की है जिसमें कहा गया है कि आई ड्रॉप, ईयर ड्रॉप, इन्जेक्शन जैसी दवाइयों से रोजा नहीं टूटता है. हालांकि दवाई निगलने से रोजा की वैधता खत्म हो जाएगी. दवाई आपको रोजा से पहले या रोजा के बाद ही खानी चाहिए. हसन के मुताबिक, 'अगर आप पूरी तरह से स्वस्थ नहीं है तो सबसे पहले आपको खुद से पूछना चाहिए कि मुझे रोजा क्यों रखना चाहिए. कुरान में स्पष्ट है कि आपको हमेशा अपने डॉक्टर की सलाह माननी चाहिए.'
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6.हर किसी के लिए रोजा रखना अनिवार्य: इस्लाम धर्म में रोजा रखना एक फर्ज है. लेकिन इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, जो परिपक्व अवस्था (सामान्यत: 15 वर्ष की उम्र) के हैं और पूरी तरह स्वस्थ हैं, उन्हें ही रोजा रखना चाहिए. MCB के मुताबिक, शारीरिक या मानसिक रूप से अस्वस्थ, यात्रा, प्रेग्नेंट और बच्चों को स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इससे छूट है. हसन कहते हैं, जो लोग रोजा रखने में किसी तरह अक्षम हैं, वे फिदाया ( प्रतिदिन किसी गरीब परिवार के भरण-पोषण के लिए किया जाने वाला छोटा सा दान) कर सकते हैं.
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7-रोजेदारों के सामने नहीं खाना चाहिए-
लोगों के बीच एक मिथक ये भी है कि रोजेदार के सामने खाना नहीं खाना चाहिए. सामान्यत: इससे मुस्लिमों को कोई परेशानी नहीं होती है. हालांकि, यह व्यक्ति-व्यक्ति की अपनी पसंद पर निर्भर करता है.
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