scorecardresearch
 

Pitru Paksha 2025: दुनिया का इकलौता मंदिर जहां जीवित लोग खुद करते हैं अपना श्राद्ध, जानें क्या है वजह

Pitru Paksha 2025: इस साल पितृपक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है और इसका समापन 21 सितंबर को होगा. इस विशेष काल में पूर्वजों के श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व है.

Advertisement
X
पितृपक्ष 2025
पितृपक्ष 2025

अगले महीने से पितृपक्ष की शुरुआत होने वाली है. पितृपक्ष में हिन्दू धर्म से जुड़े लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं. पितृपक्ष हर साल भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलता है. इस विशेष काल में पूर्वजों के श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दौरान किया गया श्राद्ध पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करता है. आमतौर पर यह कर्म मृतकों के लिए होता है. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कोई व्यक्ति जीवित रहते हुए भी अपना ही श्राद्ध कर सकता है. बिहार के गया जी में एक ऐसा ही अद्भुत मंदिर है, जहां आत्मश्राद्ध यानी जीते जी स्वयं का पिंडदान किया जाता है.

गया जी का महत्व

मान्यता है कि गया जी में पिंडदान करने के बाद पितृऋण से मुक्ति मिल जाती है. भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता ने भी त्रेता युग में यहां की फल्गु नदी के तट पर राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान किया था. यही वजह है कि आज भी गया जी को पितृश्राद्ध का सबसे बड़ा तीर्थस्थल माना जाता है. 

कहां होता है आत्मश्राद्ध ?

गया जी में लगभग 54 पिंडवेदी और 53 पवित्र स्थल हैं, जहां पितरों का पिंडदान किया जाता है. लेकिन जनार्दन मंदिर वेदी पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां जीवित व्यक्ति अपना ही श्राद्ध करता है. यह मंदिर भस्मकूट पर्वत पर मां मंगला गौरी मंदिर के उत्तर में स्थित है. मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु स्वयं जनार्दन स्वामी के रूप में पिंड ग्रहण करते हैं. 

Advertisement

आमतौर पर यहां वे लोग आत्मश्राद्ध करने आते हैं. जिन लोगों की संतान नहीं है. या परिवार में उनके बाद पिंडदान करने वाला कोई नहीं है. या फिर संत-वैराग्य भाव से घर-परिवार से दूर हो चुके लोग अपना पिंडदान करने यहां आते हैं.

आत्मश्राद्ध की प्रक्रिया

आत्मश्राद्ध तीन दिनों में पूर्ण होता है. सबसे पहले गया जी तीर्थस्थल आने पर वैष्णव सिद्धि का संकल्प लिया जाता है और पापों का प्रायश्चित किया जाता है. इसके बाद भगवान जनार्दन स्वामी के मंदिर में विधिवत पूजा-अर्चना और जाप किया जाता है. फिर दही और चावल से बने तीन पिंड भगवान को अर्पित किए जाते हैं. खास बात यह है कि इसमें तिल का इस्तेमाल नहीं होता. जबकि मृतकों के श्राद्ध में तिल आवश्यक माना जाता है. पिंड अर्पण करते समय श्रद्धालु भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान! जीवित रहते हुए मैं स्वयं के लिए यह पिंड अर्पित कर रहा हूं. जब मेरी आत्मा इस शरीर का त्याग करेगी, तब आपके आशीर्वाद से मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो".
 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement