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Bhadrapad Purnima 2021: जानें कब है भाद्रपद पूर्णिमा, जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और व्रत का महत्व

Bhadrapad Purnima 2021 शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा कहते हैं. इस दिन उमा माहेश्वर व्रत किया जाता है. इसी दिन से पितृपक्ष (Pitrupaksha 2021) यानी श्राद्ध (Shradh 2021) शुरू हो जाते हैं.

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भाद्रपद पूर्णिमा
भाद्रपद पूर्णिमा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सत्य नारायण की पूजा से होता है बड़ा लाभ
  • चंद्रमा की विशेष उपासना का भी है महत्व

Bhadrapad Purnima 2021 शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा कहते हैं. इस दिन उमा माहेश्वर व्रत किया जाता है. इसी दिन से पितृपक्ष (Pitrupaksha 2021) यानी श्राद्ध (Shradh 2021) शुरू हो जाते हैं. इस बार भाद्रपद पूर्णिमा सोमवार, 20 सितंबर को है. 20 सितंबर से 06 अक्टूबर तक श्राद्ध रहेगा.

भगवान सत्य नारायण की करें पूजा
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि भाद्रपद पूर्णिमा के दिन भगवान सत्य नारायण की पूजा करने से बड़ा लाभ होता है. इस दिन व्रत करने से लोगों के हर प्रकार कष्ट से मुक्ति मिलती है. जीवन में सुख-समृद्धि आती है और सत्यनारायण भगवान की कृपा होती है. भादो पूर्णिमा पर नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करने से भी विशेष लाभ ​मिलता है. 

पूजन का शुभ मुहूर्त 
भाद्रपद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है. इस दिन व्रत रखकर चंद्रमा की विशेष उपासना की जाती है. पूर्णिमा तिथि सुबह 05 बजकर 28 मिनट से आरंभ होगी, जिसका समापन 21 सितंबर 2021 को सुबह 05 बजकर 24 मिनट पर होगा.


ये है व्रत कथा
इस व्रत का उल्लेख मत्स्य पुराण में मिलता है. कथा के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के दर्शन करके लौट रहे थे. रास्ते में उनकी भेंट भगवान विष्णु से हो गई. महर्षि ने शंकर जी द्वारा दी गई विल्व पत्र की माला भगवान विष्णु को दे दी. भगवान विष्णु ने उस माला को स्वयं न पहनकर गरुड़ के गले में डाल दी. इससे महर्षि दुर्वासा क्रोधित हो गए और विष्णु जी को श्राप दिया, कि लक्ष्मी जी उनसे दूर हो जाएंगी, क्षीर सागर छिन जाएगा, शेषनाग भी सहायता नहीं कर सकेंगे. इसके बाद विष्णु जी ने महर्षि दुर्वासा को प्रणाम कर मुक्त होने का उपाय पूछा. इस पर महर्षि दुर्वासा ने बताया कि उमा-महेश्वर का व्रत करो, तभी मुक्ति मिलेगी. तब भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और इसके प्रभाव से लक्ष्मी जी समेत समस्त शक्तियां भगवान विष्णु को पुनः मिल गईं.

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