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Rangbhari Ekadashi 2022: कब है रंगभरी एकादशी? माता गौरी पहली बार आईं थी ससुराल, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

Rangbhari Ekadashi 2022: होली से पहले पड़ने वाली एकादशी को रंगभरी एकादशी कहते हैं. वैसे तो एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा का विधान है, लेकिन रंगभरी एकादशी का संबंध शिवजी और माता गौरी से है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती को विवाह के बाद पहली बार काशी लेकर आए थे. रंगभरी एकादशी पर आंवले के पेड़ की भी उपासना की जाती है. इसलिए इस एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है.

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शिवजी और माता पार्वती
शिवजी और माता पार्वती
स्टोरी हाइलाइट्स
  • शिवजी और माता पार्वती का करें पूजन
  • आंवले के पेड़ की उपासना का भी महत्व

Rangbhari Ekadashi 2022 Date: फाल्गुन माह के शुक्ल की एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है. होली से 6 दिन पहले यानि 13 मार्च 2022 दिन रविवार को रंगभरी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा. काशी में इस पर्व को शिव भक्त बड़ी ही धूम धाम के साथ मनाते हैं.  मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव माता गौरी का गौना कराकर काशी लाए थे. इसलिए ये दिन काशी में मां पावर्ती के स्वागत के रूप में मनाया जाता है.  इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है.  साथ ही काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है, जो लगातार 6 दिनों तक चलता है. 


पूजा का शुभ मुहूर्त (Rangbhari Ekadashi 2022 Shubh Muhurat)
रंगभरी एकादशी तिथि आरंभ- 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 21 मिनट से
रंगभरी एकादशी तिथि समापन- 14 मार्च सुबह 12 बजकर 05 मिनट तक.
शुभ मुहूर्त- 13 मार्च को दोपहर 12 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक 
सर्वार्थ सिद्धि योग-  13 मार्च को प्रात: 06 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ होगा, जो रात 10 बजकर 08 मिनट तक रहेगा. 
पुष्य नक्षत्र- रात 10 बजकर 08 मिनट तक होगा. 


रंगभरी एकादशी पर कैसे करें पूजा? (Rangbhari Ekadashi 2022 Puja)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती को विवाह के बाद पहली बार काशी लेकर आए थे. इस दिन सुबह नहाकर पूजा का संकल्प लें. घर से एक पात्र में जल भरकर शिव मंदिर जाएं. अबीर, गुलाल, चन्दन और बेलपत्र भी साथ ले जाएं. पहले शिव लिंग पर चन्दन लगाएं फिर बेल पत्र और जल अर्पित करें. इसके बाद अबीर और गुलाल अर्पित करें. भोलेनाथ से अपनी सभी परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें. 

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रंगभरी एकादशी और आंवले का संबंध 
पुराणों के अनुसार रंगभरी एकादशी पर आंवले के पेड़ की भी उपासना की जाती है. इसलिए इस एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन आंवले के पूजन के साथ ही अन्नपूर्णा की सोने या चांदी की मूर्ति के दर्शन करने की भी परंपरा है. रंगभरी आमलकी एकादशी महादेव और श्रीहरि की कृपा देने वाला संयुक्त पर्व है. मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ से अच्छी सेहत और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

 

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