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Paryushan Mahaparva 2025: कब से शुरू हो रहा पर्युषण पर्व? जानें इस 10 दिवसीय त्योहार का महत्व

Paryushan Mahaparva 2025: इस बार पर्युषण पर्व 21 अगस्त 2025, गुरुवार से शुरू होगा और इसका समापन 28 अगस्त को होगा. वहीं, दिगंबर संप्रदाय के लोग इस पर्व को 28 अगस्त से 6 सितंबर तक मनाएंगे. इन दिनों में लोग उपवास रखते हैं और आत्मिकशुद्धि पर ध्यान देते हैं.

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पर्युषण पर्व 2025 (File Photo: AI Generated)
पर्युषण पर्व 2025 (File Photo: AI Generated)

Paryushan Mahaparva 2025: पर्युषण पर्व जैन धर्म का सबसे बड़ा और पवित्र उत्सव माना जाता है. यह पर्व साल में एक बार आता है और यह भगवान महावीर के मूल सिद्धांत आत्मा की शुद्धि, अहिंसा, और संयम का संदेश देता है. ‘पर्युषण’ शब्द का अर्थ है- अपने अंदर बस जाना, यानी आत्मचिंतन करना है. आमतौर पर पर्युषण पर्व श्वेतांबर संप्रदाय में 8 दिन का पर्व होता है और दिगंबर संप्रदाय के लिए यह पर्व 10 दिन तक चलता है. लेकिन कई जगह इसे पूरे 10 दिन मनाने की परंपरा भी है. 

इस बार पर्युषण पर्व 21 अगस्त 2025, गुरुवार से शुरू होगा और इसका समापन 28 अगस्त को होगा. वहीं, दिगंबर संप्रदाय के लोग इस पर्व को 28 अगस्त से 6 सितंबर तक मनाएंगे. इन दिनों में लोग उपवास रखते हैं और आत्मिकशुद्धि पर ध्यान देते हैं. तो चलिए जानते हैं पर्युषण पर्व के 10 दिनों का महत्व.

- पहला दिन- पहले दिन इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि हम अपने भीतर क्रोध को जन्म न लेने दें. यदि क्रोध का भाव उत्पन्न भी हो, तो उसे धैर्य और शांति से नियंत्रित करना चाहिए. 

- दूसरा दिन- व्यवहार में मधुरता और पवित्रता लाने का प्रयास करना चाहिए. इस दौरान मन में किसी के प्रति द्वेष या घृणा का भाव नहीं रखना चाहिए. 

- तीसरा दिन- इस दिन इस बात पर विचार करें कि अपने वचनों को पूरा करना और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना महत्वपूर्ण है. 

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- चौथा दिन- इस दिन कोशिश करें कि कम बोलें और जो भी बोलें उसमें अपनी वाणी पर संयम रखने का प्रयास करें.

- पांचवें दिन- मन में किसी भी प्रकार की लालच या स्वार्थ नहीं रखना चाहिए, निस्वार्थ भाव से जीना चाहिए. 

- छठा दिन- मन पर नियंत्रण रखते हुए संयम और धैर्य से काम लेना चाहिए. 

- सातवें दिन- इस दिन मन के नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए आत्म-संयम और तपस्या करनी चाहिए. 

- अष्टमी दिन- इस दिन जरूरतमंद लोगों को ज्ञान, भोजन आदि महत्वपूर्ण चीजों दान करना चाहिए. 

- नौवें दिन- किसी भी वस्तु के लिए स्वार्थ नहीं रखना चाहिए, निस्वार्थ भाव से जीवन जीना चाहिए. 

- दसवें दिन- इस दिन अच्छे गुणों को अपनाना और अपने आप को पवित्र और शुद्ध रखना चाहिए.

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