इस्लाम धर्म के तहत दो ईद मनाई जाती हैं. हिंदुस्तान के साथ दुनिया के तमाम देशों में मुसलमान ईद मनाते हैं. रमजान के बाद ईद-उल फितर मनाई जाती है और उसके 70 दिन बाद ईद-उल जुहा का मौका आता है, जिसे बकरीद भी कहते हैं. बकरीद के मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करते हैं. साथ ही जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.
पैगंबर इब्राहीम के जमाने में हुई शुरूआत
इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, दुनिया में 1 लाख 24 हजार पैगंबर (मैसेंजर) आए. इनमें एक पैगंबर हजरत इब्राहिम हुए. इन्हीं के जमाने में बकरीद की शुरूआत हुई.
ये है पूरा वाकया
इस्लामिक जानकार बताते हैं कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को सपने में अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया. हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुर्ई थी. ऐसे में उनके लिए सबसे प्यारे उनके बेटे हजरत ईस्माइल ही थे. अल्लाह का हुक्म पूरा करना उनके लिए एक कड़ा इम्तिहान था. एक तरफ अल्लाह का हुक्म था तो दूसरी तरफ बेटे की मुहब्बत. ऐसे में उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अमल किया और बेटे को अल्लाह की रजा के लिए कुर्बान करने को राजी हो गए.
इस्लाम के जानकार मौलाना हमीद नोमानी बताते हैं कि हजरत इब्राहिम को लगा कि बेटे की कुर्बानी देते समय उनका प्यार कहीं आड़े ना आ जाए. इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. इसके बाद हजरत इब्राहिम ने जब बेटे ईस्माइल की गर्दन काटने के लिए छुरी चलाई तो अल्लाह के हुक्म से ईस्माइल अलैहिस्सलाम की जगह एक दुंबा (एक जानवर) पेश कर दिया गया.
इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने जब आंख से पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने बेटे को अपने सामने जिंदा खड़ा पाया. अल्लाह को हजरत इब्राहिम का ये अकीदा इतना पसंद आया कि हर साहिबे हैसियत(जिसकी आर्थिक हालत बकरा या दूसरा जानवर खरीदकर कुर्बान करने की हो) पर कुर्बानी करना वाजिब कर दिया.
इस्लामिक धर्मगुरू मुफ्ती शमून क़ासमी कहते हैं कि अल्लाह ने जो पैगाम हजरत इब्राहिम को दिया वो सिर्फ उनकी आजमाइश कर रहे थे. ताकि ये संदेश दिया जा सके कि अल्लाह के फरमान के लिए मुसलमान अपना सब कुछ कुर्बान कर सके.बेटों की नहीं हो सकती कुर्बानी
मौलाना हमीद नोमानी से जब ये सवाल किया गया कि अगर हजरत इब्राहिम की छुरी हजरत ईस्माइल की गर्दन पर चलती तो क्या आज तक बकरीद के मौके पर लड़कों की कुर्बानी देने का रिवाज होता? इस पर मौलाना नोमानी ने जवाब दिया कि नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं होता. उन्होंने बताया कि हजरत इब्राहिम को बेटे की कुर्बानी का ख्वाल सिर्फ इसलिए आया क्योंकि अल्लाह उनकी आजमाइश के जरिए ये संदेश देने चाहते थे कि उसकी राह में हर चीज कुर्बान की जा सकती है. यानी कोई ऐसी सूरत कभी न बन सकती जिसमें लड़कों की कुर्बानी देने का रिवाज शुरू हो.