देश के सबसे सनसनीखेज और चर्चित मामलों में से एक, अजमेर ब्लैकमेल कांड को भले ही 33 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन इस जघन्य अपराध की पीड़िताएं आज भी न्याय की पूरी राहत नहीं पा सकी हैं. वर्ष 1992 में अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से जुड़े कुछ लोगों द्वारा दर्जनों स्कूली छात्राओं और युवतियों को ब्लैकमेल कर यौन शोषण किए जाने का यह मामला वर्षों तक दबाया गया. मामला जब उजागर हुआ, तो पूरे देश में खलबली मच गई थी.
करीब 31 वर्षों तक मुकदमा कोर्ट में चलने के बाद 20 अगस्त 2024 को इस केस में छह आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. साथ ही अदालत ने आदेश दिया कि सभी पीड़िताओं को 7-7 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति राशि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के माध्यम से 30 दिन के भीतर दी जाए. लेकिन इस आदेश को जारी हुए 10 महीने बीतने के बाद भी अब तक सिर्फ दो पीड़िताओं को ही राशि मिल पाई है.
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दरअसल, पीड़िताओं की सबसे बड़ी समस्या अब उनकी बदली हुई पहचान बन गई है. उस समय समाजिक अपमान और कलंक से बचने के लिए कई पीड़िताओं ने अपना नाम और पहचान बदल ली थी. अब जब उन्हें सहायता राशि लेने के लिए आवेदन करना होता है, तो पहचान से जुड़े दस्तावेजों में मेल नहीं होने के कारण उन्हें बार-बार प्राधिकरण के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.
ऐसे ही एक मामले में, एक पीड़िता को जब DLSA ने पहचान से संबंधित आपत्ति जताई, तो उसे कोर्ट से विशेष आदेश लाकर अपनी पहचान सत्यापित करानी पड़ी, तब जाकर उसे मुआवजा मिल पाया.
अब तक दो पीड़िताएं को मिला है मुआवजा
DLSA के सहायक निदेशक अभियोजन वीरेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि कोर्ट के आदेश के अनुसार सभी पीड़िताओं को सहायता राशि दिलवाने का प्रयास किया जा रहा है. अब तक दो पीड़िताएं सामने आई हैं जिन्हें भुगतान किया गया है. अन्य पीड़िताओं को खोजने और उनसे संपर्क साधने की कोशिश की जा रही है, लेकिन वे सामने नहीं आ रही हैं.
राठौड़ ने कहा कि पीड़िताएं अब अपनी बदली हुई पहचान में ही जीवन व्यतीत कर रही हैं. संभवतः वे फिर से सामाजिक प्रताड़ना से बचने के लिए सामने आने से हिचक रही हैं. हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि सहायता राशि की प्रक्रिया पूरी तरह गोपनीय है और किसी भी स्थिति में उनकी पहचान उजागर नहीं की जाएगी.
राठौड़ ने यह भी कहा कि कुछ पीड़िताओं को यह भ्रम हो सकता है कि पहचान बदलने के बाद वे अब पात्र नहीं हैं या उनकी पहचान स्वीकार नहीं की जाएगी, जबकि ऐसा नहीं है. वे न्यायालय से आदेश प्राप्त कर अपने पुराने पहचान प्रमाणों को सत्यापित कर सकती हैं. इस मामले में एक पीड़िता के बार-बार चक्कर लगाने की स्थिति पर राठौड़ ने कहा कि पहचान बदलने के कारण दस्तावेजों में गड़बड़ी थी, जिसे कोर्ट से पुष्टि के बाद ही ठीक किया गया और तब राशि प्रदान की गई.