लोकसभा चुनावों के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इमेज काफी डेंट हुई थी. समाजवादी पार्टी के सामने यूपी में बीजेपी को मिली शिकस्त के चलते उनकी स्थिति पार्टी में कमजोर भी हुई. उनके दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने जिस तरह उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था वो किसी से ढंकी छुपी बात नहीं है. उनके हटाए जाने की चर्चा पर भी फिलहाल अब विराम लग चुका है, पर पार्टी में उनको लेकर सब कुछ ठीक हो गया है यह भी नहीं कहा जा सकता है. गौर करने वाली बात यह है कि इस बीच योगी आदित्यनाथ का अंदाज कुछ बदला-बदला नजर आने लगा है. कुछ दिनों से योगी अपने पुराने तेवर (उग्र हिंदुत्व) में नजर आने लगे हैं. जाहिर है कि राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा हो रही है कि अचानक योगी का यह मेकओवर कैसे और क्यूं हुआ है. क्या पार्टी की अंदरूनी राजनीति में अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए वो अपने पुराने रूप में लौट रहे हैं? या उन्हें लगता है कि यूपी में अगले कुछ हफ्तों में होने वाले उपचुनावों में उनका यह रूप ज्यादा पसंद किया जाएगा. क्योंकि उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर होने वालों उपचुनावों के लिए योगी आदित्यनाथ जिस तरह से तन मन से लगे हुए हैं उससे लगता है कि इन चुनावों में जीत को उन्होंने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है.
क्यों योगी के उग्र हिंदुत्व वाले रूप की हो रही है चर्चा
योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व के फायरब्रांड लीडर रहे हैं. इसके लिए वो भारतीय जनता पार्टी के मोहताज भी नहीं रहे हैं. योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी में आने से पहले गोरखपुर में अपनी हिंदू युवा वाहिनी बनाई हुई थी. इसी दल के चुनाव चिह्न पर वो गोरखपुर के आस पास के इलाकों में अपने लोगों को चुनाव भी लड़वाते रहे हैं. हिंदू युवा वाहिनी का हिंदुत्व बीजेपी से भी ज्यादा आक्रामक हुआ करता था . फिलहाल बीजेपी में शामिल होने के बाद उनके टोन में आक्रामकता कुछ कम हो गई थी. चीफ मिनिस्टर बनने के बाद तो वो बिल्कुल राजधर्म की बात करने लगे थे. पर पिछले कुछ दिनों से योगी में ड्रॉस्टिक चेंज देखने को मिला है. राजनीतिक विश्लेषक उनमें योगी का पुराना रूप दिख रहा है.पिछले दिनों योगी के 3 कदम ऐसे रहे जिनमें उनका पुराना अंदाज और रूप देखा जा सकता है.
जुलाई के अंत में, राज्य सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश किया, जिससे उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 को और अधिक सख्त बना दिया गया. यूपी विधानसभा ने 30 जुलाई को संशोधन विधेयक पारित किया, जिसमें लव जिहाद को खत्म करने के अपने इरादे को फिर से रेखांकित किया गया.
दूसरा उदाहरण कावड़ यात्रा मार्ग पर सड़क किनारे विक्रेताओं और दुकानदारों को अपने प्रतिष्ठानों के बाहर अपना नाम प्रदर्शित करने का आदेश पारित करना था. पिछले महीने मुज़फ़्फ़रनगर जिले में पुलिस द्वारा पहली बार घोषित किए गए इस निर्देश को मुसलमानों के खिलाफ माना गया.
पिछले सप्ताह आदित्यनाथ ने बांग्लादेश संकट और पड़ोसी देशों में हिंदुओं की स्थिति पर भी चर्चा की. उन्होंने आरोप लगाया कि वोट-बैंक की राजनीति के कारण विपक्ष उनके बारे में चुप्पी साधे हुए है. योगी ने कहा कि,बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा करना और संकट के समय में उनका समर्थन करना हमारा कर्तव्य है और हम हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे. परिस्थितियां कैसी भी हों, हमारे मूल्य अटल रहते हैं. बांग्लादेश में हिंदू होना कोई गलती नहीं बल्कि एक आशीर्वाद है. ये ही नहीं और भी कई घटनाएं और बयान इस बीच आएं हैं जिससे लगता है कि अब मुख्यमंत्री पुराने फॉर्म में लौट रहे हैं.
मिल्कीपुर उपचुनाव और अयोध्या रेप केस
लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में यूं तो भारतीय जनता पार्टी ने बहुत सी सीटें हारी हैं पर अयोध्या की सीट गंवाने का दुख पूरी पार्टी को है. योगी आदित्यनाथ को भी अयोध्या गंवाने का चोट जरूर गहरा होगा. सीएम बनने के बाद वो लगातार राम मंदिर निर्माण और अयोध्या में होने वाले विकास कार्यों की खुद मॉनिटरिंग करते रहे. इसके बावजूद जनता ने बीजेपी को यहां से नकार दिया. अब योगी ने अयोध्या संसदीय सीट के अंदर आने वाली मिल्कीपुर सीट को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है. अयोध्या के वर्तमान सांसद अवधेश प्रसाद मिल्कीपुर से विधायक होते थे. सांसद बनने के बाद उनको यह सीट छोड़नी पड़ी है. शायद यही कारण है कि मिल्की पुर उपचुनाव जीतकर बीजेपी विपक्षी अपनी अहमियत साबित करना चाहती है. यही कारण है कि अयोध्या रेप केस को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुद्दा बनाया. उत्तर प्रदेश विधानसभा में योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि रेप केस का आरोपी मोईद ख़ान का नाता समाजवादी पार्टी से है और 12 साल की बच्ची के बलात्कार मामले में शामिल हैं.
इस मामले में उत्तर प्रदेश के भदरसा से ताल्लुक रखने वाले मोईद ख़ान और उनके सहयोगी राजू ख़ान को उन्होंने 30 जुलाई को पुरा कलंदर इलाक़े से पकड़ा गया.अयोध्या के एसएसपी राज करण नय्यर ने मीडिया को बताया था कि वीडियो रिकॉर्डिंग के ज़रिए आरोपी ने पीड़िता को डराया-धमकाया.
बाद में सीएम योगी ने पीड़िता के परिवार से मुलाक़ात भी की. आरोपी मोईद के घर और प्रतिष्ठानों पर बुलडोजर वाली कार्रवाई भी हुई. जाहिर है कि मिल्कीपुर उपचुनाव में जनता के बीच योगी का पुराना रूप उन्हें यह सीट जिताने में मददगार साबित हो सकता है. योगी ने कुछ दिन पहले ही अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के ध्वजवाहक परमहंस रामचन्द्र दास की प्रतिमा का अनावरण भी किया है.
इस बीच, एक और सीट जिसे भाजपा सपा से छीनना चाह रही है वह है करहल सीट.इस सीट पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव विधायक रह चुके हैं. कन्नौज लोकसभा सीट जीतने के बाद यादव ने को करहल विधानसभा से त्यागपत्र देना पड़ा था. करहल से समाजवादी पार्टी को हराकर बीजेपी अयोध्या का बदला लेना चाहती है.भारतीय जनता पार्टी ने इस क्षेत्र की जिम्मेदारी प्रदेश उपाध्यक्ष बृज बहादुर भारद्वाज के साथ जयवीर सिंह, योगेन्द्र उपाध्याय और अजीत पाल को सौंपी है. बीजेपी यहां लगातार बैठकें कर रही है.रविवार को यहां प्रदेश के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी आए हुए थे. यह सीट समाजवादी पार्टी और मुलायम सिंह यादव फैमिली का गढ़ है. उपचुनावों में अगर योगी आदित्यनाथ जोर लगाते हैं तो बड़ी संख्या में बघेल, शाक्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण मतदाता भाजपा का समर्थन कर सकते हैं. चूंकि विकास कार्यों और कानून व्यवस्था का मुद्दा कमजोर पड़ चुका है इसलिए बीजेपी को अपने वोटर्स को इकट्ठा करने के लिए योगी का पुराना रूप ही काम का दिखता है.
योगी जानते हैं कि उग्र हिंदुत्व की रणनीति से वो पार्टी में उनके विरोधी चित हो जाएंगे
योगी आदित्यनाथ का विरोध पार्टी में विरोध अभी कम नहीं हुआ है. नजूल भूमि विधेयक को विधानपरिषद में जिस तरीके से रोका गया वो सबसे बड़ा उदाहरण माना जा सकता है. विधेयक को रोकने के लिए पार्टी में आपसी विचार विमर्श हो सकता था पर ऐसा नहीं हुआ. योगी आदित्यनाथ समझ रहे हैं कि अगर बीजेपी में लंबी पारी खेलनी है तो कुछ ऐसा करना होगा जो और कोई कर न सके. जाहिर है कि हिंदुत्व के पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ ही है. यही कारण है कि पूरे देश में चुनाव प्रचार के लिए उनकी सभाओं की डिमांड रहती है. लोकसभा चुनावों में भी उन्होंने 207 रैलियां की थीं. जो पीएम मोदी से कुछ ही कम थीं. देश का दक्षिणी हिस्सा हो या पूर्वी हिस्सा, गुजरात हो पंजाब योगी आदित्यनाथ की डिमांड हर जगह रहती है. यह डिमांड केवल इसलिए रहती है क्योंकि हिंदुओं को उनकी फायरब्रांड इमेज पसंद है. योगी समझ गए हैं कि उनको अपने मूल पर ही काम करना है. शायद यही कारण है कि वो फिर से पुरानी पिच पर खेलने लगे हैं.