राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं. देश में दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं. जाहिर है कि जब वो बोलते हैं तो पूरा देश उन्हें सुनने की कोशिश करता है. राहुल के समर्थक तो उन्हें सुनते ही हैं बीजेपी भी उन्हें ढंग से सुनती है. क्योंकि बीजेपी को सत्ता में बने रहने के लिए जरूरी है कि वो राहुल गांधी और उनकी पार्टी को लगातार यह साबित करती रहे कि वो जो बोलते हैं, वो जो करते हैं उससे देश का अहित ही होता है. जाहिर है कि मंगलवार को संसद में जब वो ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान वो बोल रहे थे तो देश की निगाहें उनकी तरफ ही थीं. पर उन्होंने बीजेपी को घेरने का एक बेहतरीन मौका जाया कर दिया. उन्होंने अपनी स्पीच में ऐसी हलकी बातें रखीं जिनमें कुछ तो लोगों को पची भी नहीं, बीजेपी को घेरने की बजाए वो खुद उसमें फंसते नजर आए.
1- स्टोरी टेलिंग की नाकाम कोशिश
राहुल गांधी अपने भाषणों में अक्सर किस्सागोई (storytelling) का सहारा लेते हैं ताकि जनता से भावनात्मक जुड़ाव स्थापित कर सकें. जिस तरह राहुल और उनकी बहन प्रियंका ने पहलगाम हमले में मारे गए परिवारों की दास्तान को लेकर अपनी स्पीच को आगे बढ़ाया उससे जाहिर था कि उनकी स्पीच को लिखने वाला कोई एक ही राइटर है. दोनों ही जगहों पर स्टोरी टेलिंग के जरिए अपनी बात बढ़ाने की कोशिश की गई. पर स्टोरी टेलिंग एक कला है. और राहुल उसमें निपुण नहीं हैं.
राहुल गांधी इस शैली का प्रयोग कई बार किया पर हर बार वो फिसड्डी साबित हुए हैं. क्योंकि उनकी कहानियां या तो अस्पष्ट होती हैं या प्रभावी ढंग से निष्कर्ष तक नहीं पहुंचतीं. राहुल ने करनाल में शहीद नरवाल के परिवार से मुलाकात का किस्सा सुनाया. जयपुर में कांग्रेस के अधिवेशन में उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों की कहानी सुनाई थी. राहुल अपने भाषणों में भारत जोड़ों यात्रा के दौरान मिले लोगों के किस्से भी सुनाए हैं. जैसे एक गरीब महिला जो रोज़ 100 रुपये कमाती थी, आदि. पर वो उनके भाषण का नेचुरल अंदाज नहीं है. इससे बेहतर वो तब लगते हैं जब वो आक्रामक होते हैं. उस समय उनका एक्सप्रेशन बेहतर होता है और उनके मुंह से अप्रोप्रिएट शब्द भी निकलते हैं. पर किस्सागोई उनके मुंह से जबरदस्ती वाली लगती है.
2- राहुल भूल गए कि डेमोक्रेसी में शेर (सेना) को खुला छोड़ देंगे तो पाकिस्तान जैसे हालात बन जाएंगे
राहुल गांधी ने बहस के दौरान कहा कि शेर को पिंजरे में नहीं रखा जा सकता. हमारे सैनिक टाइगर हैं, उन्हें ऑपरेशन के लिए पूरी फ्रीडम मिलनी चाहिए. इस बयान का जवाब देते हुए सत्ता पक्ष ने तंज कसा कि डेमोक्रेसी में शेर को खुला छोड़ देंगे तो वह पाकिस्तान बन जाएगा.
जाहिर है कि जनता भी यही समझ रही है.आम भारतीयों को पता है कि 2014 के पहले कांग्रेस ने कभी सेना को खुली छूट नहीं दी. सवाल तो उठेंगे ही कि जब मुंबई पर हमला हुआ तो यूपीए सरकार ने क्यों नहीं सेना को खुली छूट दी.
राहुल का तर्क था कि 1971 के युद्ध में इंदिरा गांधी ने जनरल सैम मानेकशॉ को पूरी छूट दी, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना. उन्होंने पहलगाम हमले (22 अप्रैल 2025) के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर की 22 मिनट की समय सीमा और तत्काल युद्धविराम को सेना की स्वतंत्रता पर अंकुश बताया.
देश का सामान्य आदमी भी आज ये समझ रहा है कि सेना पर लोकतांत्रिक सरकारों का निय़ंत्रण कितना जरूरी है. देश का हर आदमी यह जानता है कि पाकिस्तान में सेना क्यों आए दिन तख्तापलट कर लेती है. कोई भी शख्स यह नहीं चाहता है कि पाकिस्तान की तरह भारत की सरकारें भी सेना के नियंत्रण में आ जाएं. बिना नियंत्रण के सैन्य कार्रवाई अराजकता पैदा कर सकती है, जैसा पाकिस्तान में होता है.
3-सारा फोकस ट्रंप और सीजफायर पर क्यों किया
राहुल का भाषण मुख्य रूप से डोनाल्ड ट्रंप के युद्ध विराम दावे और सीजफायर की रणनीति पर केंद्रित हो गया. जनता को राहुल से राहुल से उम्मीदें थीं कि वो ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जो कमिया उभर कर सामने आईं हैं उनकी चर्चा करेंगे. पर राहुल वही घिसा पिटा पुराना डिमांड रखते नजर आए .राहुल ने अपने भाषण में ट्रंप के दावे की बात की जो कांग्रेस पार्टी के कई नेता और वो खुद बार बार उठाते रहे हैं. उन्होंने कहा कि ट्रंप ने 29 बार कहा कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराया. अगर पीएम में इंदिरा गांधी का 50% साहस होता, तो वे इसे झूठ कहते.
लेकिन जनता के लिए यह कोई मुद्दा नहीं था. सभी को पता है कि अगर राहुल सही भी बोल रहे हैं तो अमेरिका का नाम लेकर भारत अपनी भद क्यों पिटवायेगा. भारत की जनता यह मानकर चलती है किृ अमेरिका का कुछ भी बिगाड़ने की स्थिति में होने में अभी कई दशक लगेंगे. राहुल का ट्रंप पर फोकस विदेश नीति की जटिलताओं पर अटक गया, जो सामान्य जनता की रोजमर्रा की चिंताओं, जैसे सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई से नहीं जुड़ सका.
4-बुनियादी चूक के मुद्दे पर घेरने का मौका था
राहुल गांधी को सुरक्षा चूक, खुफिया विफलता, और रणनीतिक कमियों पर घेरने का सुनहरा मौका था. जनता को कनेक्ट करने के लिए ये मुद्दे ज्यादा अप्रोप्रिएट थे. राहुल ने पहलगाम हमले (22 अप्रैल 2025) में सुरक्षा चूक को उठाया, पूछा कि आतंकवादी संवेदनशील क्षेत्र में कैसे घुसे. यह एक बड़ा मुद्दा था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल ने पहले ही खुफिया विफलता स्वीकार की थी. लेकिन राहुल गांधी इस बात को मुद्दा बनाने के बजाए सीजफायर और ट्रंप के सामने मोदी के झुकने को मुद्दा बनाते रहे.
एक्स पर मलाल नाम के एक हैंडल ने बहुत सुंदर ढंग से लिखा है कि विपक्ष या राहुल गांधी क्या कर सकते थे...
विपक्ष के नेता में अगर दम होता और वह विजनरी होता तो सरकार को घेरता कि यह युद्ध अनुत्तरित रह गया है. इसके लिए एक युद्ध पेंडिंग है. उसके लिए हमारी तैयारी क्या है ?
जियो-इकोनॉमिक वारफेयर पर हमारी तैयारी क्या है? ट्रेड सैंक्शनस से निपटने के लिए हम क्या कर रहे हैं? AI पावर्ड रोबोटिक वारफेयर के लिए हमारी क्या योजना है, साइबर, इनफार्मेशन, स्पेस, बायो थ्रेट्स, इन सब मुद्दों पर सरकार क्या कर रही है?
पूरे युद्ध के दौरान हम प्रॉपगैंडा वॉर में क्यों पिछड़े रहे? इसको तैयारी में क्या कमी हुई? अगले युद्ध के लिए सरकार इसपे क्या कर रही है.
5-फिर विरोधाभासी ऐतराज कि आतंकी हमलों को एक्ट ऑफ वॉर क्यों मान लिया
राहुल गांधी ऑपरेशन सिंदूर पर बहस के दौरान यह ऐतराज उठाते हैं कि पहलगाम आतंकी हमले को सरकार ने युद्ध की कार्रवाई (Act of War) क्यों मान लिया. राहुल ने तर्क दिया कि आतंकी हमले को युद्ध करार देना सरकार की रणनीतिक गलती थी, क्योंकि यह पाकिस्तान को कूटनीतिक लाभ देता है. राहुल का यह कहना है कि यह पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर कहने का मौका देता है कि भारत ने युद्ध शुरू किया.
राहुल का आतंकी हमलों को एक्ट ऑफ वॉर नहीं मानना भी बहुत से लोगों को बुरा लगा होगा.दरअसल पाकिस्तान जिस तरह के क्रूर हमले करता रहा है उसे भारतीय युद्ध ही समझते रहे हैं. अगर भारत सरकार पहलगाम की घटना को युद्ध की तरह से नहीं लेती तो कभी भी 100 किलोमीटर अंदर जाकर आतंकियों के ठिकानों को नष्ट नहीं कर पाती.
सत्ता पक्ष ने पलटवार करते हुए कहा कि पहलगाम हमले को पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रायोजित माना गया, जिसे पीएम मोदी ने पाकिस्तान की सैन्य कार्रवाई करार दिया.