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प्रशांत किशोर का फोकस अशोक चौधरी से शिफ्ट होकर सम्राट चौधरी पर जाने का मतलब क्या है?

प्रशांत किशोर ने देश में करीब सभी प्रमुख पार्टियों की चुनाव रणनीति बनाने का काम किया है. जाहिर है कि अपनी पार्टी के लिए वो अपना सर्वश्रेष्ठ दे रहे होंगे. जिस तरह अपना फोकस पर बीजेपी की ओर शिफ्ट कर रहे हैं उससे तो यही लगता है चुनावों के नजदीक आने तक वो मोदी और शाह को भी टार्गेट करेंगे.

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प्रशांत किशोर का डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी सहित नीतीश कुमार के दो मंत्रियों पर जोरदार हमला. (Photo: PTI)
प्रशांत किशोर का डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी सहित नीतीश कुमार के दो मंत्रियों पर जोरदार हमला. (Photo: PTI)

बिहार की राजनीति में खबरनवीसों के लिए प्रशांत किशोर (पीके) हॉट केक बने हुए हैं. पिछले कुछ दिनों अशोक चौधरी को लगातार निशाने पर रखने वाले पीके का फोकस शिफ्ट होकर सम्राट चौधरी पर हो गया है. जाहिर है कि पीके ने बिहार विधान सभा चुनावों का माहौल को गरम कर दिया है. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की वोटर्स अधिकार यात्रा ने वो सनसनी नहीं मचाई जो पीके के भ्रष्टाचार वाले आरोपों ने कर दिखाया है. 

जन सुराज पार्टी के संस्थापक ने जिस तरह एनडीए नेताओं पर भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों के आरोप लगाने का सिलसिला चला रखा है वो बिहार की राजनीति को तोड़ मरोड़ कर रख दिया है. पीके ने जेडीयू मंत्री अशोक चौधरी पर पहले 200 करोड़ की अवैध संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी चौधरी (समस्तीपुर से सांसद) की शादी के बाद परिवार और ट्रस्ट के नाम पर जमीनें खरीदीं, जो बेनामी हैं. पीके ने दस्तावेज दिखाकर कहा कि यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है.

इसके जवाब में 23 सितंबर को चौधरी ने पीके को 100 करोड़ का मानहानि नोटिस भेजा. जिसमें चौधऱी ने किशोर से माफी मांगने या कोर्ट जाने की धमकी दी. उन्होंने आरोपों को राजनीतिक साजिश बताया और कहा कि पीके को पहले ही एक पुराने केस में 17 अक्टूबर को कोर्ट में पेश होना है.
27-28 सितंबर को पीके ने नोटिस को खारिज करते हुए कहा कि यह जनहित का मुद्दा है. उन्होंने चौधरी पर 500 करोड़ तक की भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और इस्तीफे की मांग की. जेडीयू ने चौधरी से सफाई मांगी, लेकिन सीएम नीतीश कुमार ने अभी उनके खिलाफ कुछ नहीं बोला है.

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अब पीके बनाम सम्राट चौधरी

29 सितंबर को विवाद का फोकस बदल गया जब पीके ने उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर 1995 के तरापुर हत्याकांड (मुंगेर) में शामिल होने का बम गिराया। उन्होंने दावा किया. सम्राट (जिनका असली नाम प्रशांत किशोर ने राकेश कुमार उर्फ सम्राट कुमार मौर्य बताया और आरोप लगाया कि मौर्य पर 7 लोगों की हत्या का केस (केस नंबर 44/1995) दर्ज है. सभी पीड़ित कुशवाहा समुदाय के थे.

इसके साथ ही किशोर ने सम्राट पर नाबालिग होने का फर्जी प्रमाण-पत्र (BSEB एडमिट कार्ड, DOB: 1 मई 1981) जमा कर जमानत लेने का आरोप लगाया. किशोर का कहना था कि इस फर्जी सर्टिफिकेट के जरिए सम्राट  जेल से बाहर आए.

सबसे बड़ा आरोप तो किशोर ने ये लगाया कि सम्राट चौधरी का नाम 1999 के शिल्पी-गौतम गैंगरेप-मर्डर केस (जिसकी CBI जांच हुई) में भी शामिल था. जिसका कनेक्शन लालू प्रसाद के साले साधु यादव से था.

पीके ने सम्राट की D-Litt डिग्री पर भी हमला किया, कहा कि BSEB ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 'सम्राट कुमार मौर्य' मैट्रिक में फेल हो गए. 2010 के हलफनामे में सम्राट ने खुद को सातवीं पास बताया, फिर कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से डिग्री कैसे? प्रशांत किशोर सम्राट को तुरंत कैबिनेट से बर्खास्त कर गिरफ्तार करने की डिमांड की है. किशोर ने कहा कि अगर नीतीश सरकार उनकी डिमांड नहीं मानती है तो जन सुराज कोर्ट का सहारा लेगी और राज्यपाल के पास भी जाएगी. पीके ने सीधे-सीधे एनडीए को टार्गेट किया और कहा कि एनडीए अपराध और भ्रष्टाचार का गठबंधन है.

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प्रशांत किशोर की इस शिफ्टिंग का मकसद क्या है

प्रशांत किशोर को नजदीक से देखने वाले जानते हैं कि वे अपना हर कदम सोच समझकर और बिना किसी उद्दैश्य के नहीं रखते हैं. उन्हें देश के हर राजनीतिक दलों का पैंतरा पता है. जाहिर है कि प्रशांत किशोर (पीके) की इस शिफ्टिंग (अशोक चौधरी से सम्राट चौधरी पर हमले) का मकसद बहुआयामी और रणनीतिक है. जो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और जन सुराज पार्टी की स्थिति को मजबूत करने से जुड़ा है.

-एनडीए की विश्वसनीयता पर हमला

किशोर पर आरोप लगता रहा है कि वो केवल तेजस्वी के पीछे ही पड़े हुए हैं बीजेपी और जेडीयू के खिलाफ नहीं बोलते हैं. जेडीयू नेता पर अशोक चौधरी को निशाने पर लेने के बाद उन पर आरोप लगा कि वे बीजेपी नेताओं के खिलाफ कुछ नहीं बोलते हैं .अब  पीके का प्राथमिक लक्ष्य सत्तारूढ़ एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) को भ्रष्टाचार और आपराधिक छवि के मुद्दे पर घेरना हो गया है. जाहिर है कि एनडीए को घेरने के बाद उनकी विश्वसनीयता और बढ़ेगी. दूसरे इससे गठबंधन की एकता और जनता में एनडीए नेताओं की छवि को कमजोर करने की भी रणनीति है.

सम्राट चौधरी, उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के बड़े ओबीसी चेहरों में से एक हैं. उन पर हत्या और गैंगरेप जैसे पुराने केसों को उठाकर वो कुशवाहा और अन्य ओबीसी समुदायों में असंतोष पैदा करना चाहते हैं, जो बीजेपी का वोटबैंक है.

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-जन सुराज को तीसरे विकल्प के रूप में स्थापित करना

अभी तक जनसुराज को वोटकटवा के रूप में ही देखा जा रहा था. पर बीजेपी नेताओं को टार्गेट करके पीके बिहार की जनता को यह संदेश देना चाहते हैं कि एनडीए और विपक्ष (आरजेडी) दोनों भ्रष्ट और अपराध से जुड़े हैं. सम्राट और अशोक पर हमले इस नैरेटिव को मजबूत करते हैं कि सभी पुराने दल एक जैसे हैं. जन सुराज देश में नई राजनीति की शुरूआत करने वाली है. यही कारण है कि पीके पुराने नेताओं के कथित काले कारनामों को उजागर कर रहे हैं. जाहिर है कि इससे युवा और मध्यम वर्ग के वोटर्स जनसुराज की ओर आकर्षित होंगे.

-मीडिया और सोशल मीडिया में प्रासंगिकता बनाए रखना

प्रशांत किशोर मीडिया और कम्युनिकेशन के महत्व को समझते हैं. वो जानते हैं कि खबरों में किस तरह बना रहना है. इसी के तहत वो धीरे-धीरे एक-एक करके एक्सपोज सीरीज चला रहे हैं. इसी के तहत अशोक चौधरी पर तीसरी किश्त का वादा किया है. सम्राट पर हमला, खासकर पुराने हत्याकांड और डिग्री विवाद जैसे सनसनीखेज मुद्दों को उठाकर लगातार चर्चा में बने रहना चाहते हैं.यह जन सुराज को कम संसाधनों में भी ज्यादा प्रचार देता है. 

-नीतीश और बीजेपी के बीच तनाव बढ़ाना

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अशोक चौधरी (जेडीयू) और सम्राट चौधरी (बीजेपी) पर एक के बाद एक हमले एनडीए गठबंधन में दरार डालने की कोशिश भी हो सकती है. जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने अशोक चौधरी से सफाई मांगी जबकि बीजेपी ने सम्राट पर चुप्पी साध रखी है. जाहिर है कि यह गठबंधन में असहजता पैदा कर सकता है. नीतीश कुमार और बीजेपी के साथ हर समय कोई न कोई ऐसा मामला जरूर रहता है जो उनके रिश्तों को तनावपूर्ण बनाए रखता है. पीके इस बात को समझते हैं. जाहिर है कि किशोर चाहेंगे कि दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में भ्रम और असंतोष की स्थिति फैले और उसका सीधा लाभ जन सुराज को मिले.

- खुद चुनाव लड़ने की जमीन तैयार करना

पीके ने संकेत दिया है कि वे 4-5 दिनों में खुद चुनाव लड़ने का फैसला लेंगे. सम्राट चौधरी और अशोक चौधरी जैसे बड़े नेताओं पर हमले उनकी अपनी उम्मीदवारी को मजबूत करने का हिस्सा हो सकते हैं. यह दिखाता है कि वे बड़े मगरमच्छों से टकराने से नहीं डरते. ग्रामीण और युवा वोटरों के बीच उनकी इस तरह की इमेज बहुत प्रभावित कर सकती है.खासकर सम्राट पर हत्या और गैंगरेप केस जैसे गंभीर आरोपों को उठाकर पीके ने अपने लिए नरेटिव सेट कर लिया है कि वे किसी भी नेता से नहीं डरते हैं.

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यह भी हो सकता है कि पीके चुनावों के नजदीक आते-आते बीजेपी के बड़े नेताओं के खिलाफ भी बयानबाजी शुरू करें. क्योंकि अभी तक वो नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ उस तरह की बयानबाजी नहीं करते हैं जिस तरह अरविंद केजरीवाल करते रहे हैं.

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