भारत और पाकिस्तान के बीच सत्ता का असंतुलन कितना गंभीर और खतरनाक है, इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं. पाकिस्तानी सेना के अफसर और वहां के राजनेता यह स्वीकार करते हैं कि 1999 का कारगिल युद्ध पाकिस्तानी सेना, खासकर जनरल परवेज मुशर्रफ ने, बिना तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को जानकारी दिये शुरू कर दिया था. और जब पाकिस्तानी सेना कारगिल, द्रास और बटालिक की चोटियों पर बुरी तरह परास्त हुई तो बचाव के लिए शरीफ को आगे कर दिया. जो भारत से सुलह कराने के लिए अमेरिका की और दौड़े थे. ऐसे में सवाल उठता है कि जब पाकिस्तान में सभी फैसले सेना ही लेती है तो वह भारत से किस स्तर पर बातचीत की उम्मीद करता है. भारत और पाकिस्तान के बीच सत्ता का यही असंतुलन दोनों देशों के बीच असंतुलित युद्ध की जड़ बना हुआ है.
1-मोदी के बराबर पाक प्रधानमंत्री शरीफ की स्वीकार्यता नहीं
नरेंद्र मोदी भारत में एक करिश्माई और प्रभावशाली नेता के रूप में जाने जाते हैं. उनकी लोकप्रियता का आधार उनकी निर्णायक छवि, राष्ट्रवादी नीतियां, और आर्थिक सुधार हैं. 2014, 2019, और 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने अपनी पार्टी (BJP) को भारी जीत दिलाई. 2019 के पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक ने उन्हें देश में मजबूत नेता के रूप में स्थापित कर दिया. कश्मीर में 370 की समाप्ति के बाद देश उन्हें हीरो की तरह सम्मान देता है. 2025 में ऑपरेशन सिंदूर ने जनता में उनके समर्थन को और बढ़ाया. देश इस ऑपरेशन को आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के रूप में देख रहा है.
मोदी देश में जितने लोकप्रिय हैं उतना ही उन्होंने गलोबल लेवल पर भी अपनी धाक जमाई है. G20, QUAD, और अन्य मंचों पर उनकी सक्रियता ने भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया है. विश्व नेताओं के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध भारत की कूटनीतिक ताकत को बढ़ाते हैं. पाकिस्तानी पत्रकार शहजाद चौधरी खुद लिखते हैं कि मोदी ने भारत की वैश्विक छवि को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुंचाया, जिसका कोई जवाब पाकिस्तान के पास नहीं है.
मोदी के सोशल मीडिया X पर 100 मिलियन+ फॉलोअर्स हैं. जो उन्हें विश्व के सबसे लोकप्रिय नेता होने का सबूत देते हैं. दूसरी तरफ शहबाज शरीफ की लोकप्रियता सीमित है और उनकी सरकार की वैधता पर सवाल उठते रहे हैं. मार्च 2024 में हुए आम चुनावों में उनकी पार्टी (PML-N) से अधिक वोट इमरान खान की पार्टी को मिले. वह गठबंधन सरकार (PPP और अन्य के साथ) के मुखिया बने.
पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली और आतंकवाद से जुड़ी छवि (FATF ग्रे लिस्ट) ने उनकी कूटनीतिक स्थिति को सीमित किया. वह वैश्विक मंचों पर प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाए, और उनकी सरकार को पाक फौज के रहमोकरम पर निर्भर माना जाता है.
2-पाक आर्मी चीफ सर्वेसर्वा है, लेकिन भारत का आर्मी चीफ पोलिटिकल लीडरशिप के अधीन है
दोनों देशों की लोकतांत्रिक और शासकीय व्यवस्थाओं के चलते प्रकृति ही अलग है. पाकिस्तान में सेना प्रमुख (आर्मी चीफ) को अक्सर सर्वेसर्वा माना जाता है, जबकि भारत में सेना प्रमुख पूर्ण रूप से राजनीतिक नेतृत्व के अधीन कार्य करता है. पाकिस्तान में सेना प्रमुख, जैसे वर्तमान में जनरल असीम मुनीर, देश की राजनीति और नीति-निर्माण में असाधारण प्रभाव रखते हैं. सेना को राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, और यहां तक कि आंतरिक शासन में प्रमुख भूमिका प्राप्त है.
पाकिस्तान में फौज के महत्वपूर्ण भूमिका में होने का कारण यहां का अस्थिर लोकतांत्रिक इतिहास है. जिसमें चार सैन्य तख्तापलट (1958, 1977, 1999, और 2014 में अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप) और कई सरकारों का सैन्य समर्थन पर निर्भर रहना शामिल है. सेना प्रमुख को स्थिरता का प्रतीक माना जाता है, और वह अक्सर निर्वाचित सरकारों पर हावी रहते हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद शहबाज शरीफ ने जिस तरह के बयान दिए हैं वो स्पष्ट लगता है कि उनकी नीतियां सेना के दबाव में हैं. The Express Tribune (2023) में पत्रकार हुसैन हक्कानी ने लिखते हैं कि पाकिस्तान में सेना ही राजनीतिक स्थिरता और नीति तय करती है.
दूसरी तरफ भारत में सेना पूरी तरह से निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व के अधीन कार्य करती है. भारत का संविधान और लोकतांत्रिक ढांचा रक्षा मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को सैन्य नीतियों का नियंत्रण देता है. ऑपरेशन सिंदूर में नरेंद्र मोदी ने सशस्त्र बलों को पूर्ण स्वतंत्रता दी, लेकिन यह निर्णय PMO और कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) के तहत था.
3-इसीलिए यूएस ने पाक में नियुक्त करवाया है NSA ताकि कोई तो हो, जिससे हॉटलाइन पर बात हो सके
2022 के बाद पाकिस्तान में एनएसए (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ) जैसी कोई पोस्ट नहीं थी. अमेरिका ने पाकिस्तान में NSA की नियुक्ति करवाई ताकि हॉटलाइन पर बात करने के लिए कोई विश्वसनीय व्यक्ति हो. हालांकि, यह दावा कि यूएस ने सीधे तौर पर पाकिस्तान में NSA की नियुक्ति करवाई है यह कितना सही है इसका दावा नहीं किया जा सकता . पर अचानक ऐसी नियुक्ति से ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है. पाकिस्तान ने 29 अप्रैल 2025 को लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद आसिम मलिक, जो ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) के प्रमुख हैं, को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) नियुक्त किया. यह पहली बार है कि एक सक्रिय ISI प्रमुख को NSA की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है.
यूएस ने भारत-पाक तनावों को कम करने के लिए सक्रिय कूटनीतिक भूमिका निभाई. यूएस के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से फोन पर बात की, जिसमें तनाव कम करने और प्रत्यक्ष संचार बहाल करने की अपील की गई. इसके अलावा, भारत और पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों (DGMOs) ने 6 मई 2025 को हॉटलाइन पर बात की. भारत और पाकिस्तान, दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश, कश्मीर जैसे मुद्दों पर बार-बार तनाव का सामना करते हैं.
यूएस, एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में, इन तनावों को नियंत्रित करने में रुचि रखता है, जैसा कि पूर्व NSA मोईद यूसुफ ने कहा कि यूएस अक्सर मध्यस्थता करता है.असीम मलिक की नियुक्ति से यूएस को एक ऐसा व्यक्ति मिल सकता है, जो सैन्य और खुफिया मामलों में सीधा नियंत्रण रखता हो, जिससे हॉटलाइन संचार प्रभावी हो. उदाहरण के लिए, भारत के NSA अजित डोभाल ने पहले पाकिस्तानी NSAs (जैसे नासिर खान जंजुआ, 2016) के साथ बैकचैनल बातचीत की थी.
4-लेकिन, भारत का एनएसए प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है, जबकि पाकिस्तान का एनएसए ISI चीफ होने के नाते आर्मी चीफ का रिपोर्ट करता है
भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSA) की भूमिकाएं दोनों देशों की संरचना में मौलिक अंतर होने के चलते बदल जाती हैं. यह अंतर दोनों देशों की शासकीय संरचनाओं, सैन्य-नागरिक संबंधों, और लोकतांत्रिक परंपराओं को दर्शाता है. विशेष रूप से, भारत के NSA अजित डोभाल सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रिपोर्ट करते हैं. जबकि पाकिस्तान के NSA लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद आसीम मलिक, जो ISI प्रमुख भी हैं, सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को प्राथमिक रूप से जवाबदेह हैं.
भारत में NSA राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) का नेतृत्व करता है और सीधे प्रधानमंत्री को सलाह देता है. अजित डोभाल, 2014 से NSA, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति, और खुफिया समन्वय पर नरेंद्र मोदी को सीधे रिपोर्ट करते हैं. यह संरचना भारत के मजबूत लोकतांत्रिक ढांचे का हिस्सा है, जहां सैन्य और खुफिया तंत्र नागरिक नियंत्रण के अधीन हैं. NSA का कार्य रक्षा, आंतरिक सुरक्षा, और कूटनीति से संबंधित नीतियों को समन्वयित करना है, लेकिन अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री और कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) लेते हैं.
पाकिस्तान में NSA की भूमिका सैन्य प्रभाव के अधीन है, विशेष रूप से जब NSA एक सक्रिय सैन्य अधिकारी या ISI प्रमुख हो.सेना प्रमुख असीम मुनीर को प्राथमिक रूप से जवाबदेह हैं. यह नियुक्ति पाकिस्तान की सैन्य-प्रधान शासकीय संरचना को दर्शाती है, जहाँ सेना राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति पर हावी है. मलिक की दोहरी भूमिका (ISI प्रमुख और NSA) सुनिश्चित करती है कि उनकी प्राथमिक निष्ठा सेना के प्रति है, न कि निर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के प्रति.
5-कुल मिलाकर भारत में जहां सर्वाधिकार प्रधानमंत्री मोदी के पास सुरक्षित हैं, वहीं पाकिस्तान में जेहादी आर्मी चीफ के हाथ है कमान
भारत में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास संवैधानिक और लोकतांत्रिक रूप से सर्वोच्च अधिकार सुरक्षित हैं, जबकि पाकिस्तान में सेना प्रमुख को देश का वास्तविक नेता माना जाता है. वर्तमान में पाकिस्तान में जनरल असीम मुनीर, को वास्तविक कमान माना जाता है. भारत में, संविधान के तहत सर्वोच्च कार्यकारी अधिकार प्रधानमंत्री के पास होता है, जो लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार का नेतृत्व करता है. नरेंद्र मोदी, 2014 से प्रधानमंत्री, मजबूत जन समर्थन (2019 और 2024 के चुनावों में NDA की जीत) और करिश्माई नेतृत्व के कारण सत्ता के केंद्र में हैं. पाकिस्तान में, सेना प्रमुख वास्तविक सत्ता का केंद्र होता है. यह स्थिति पाकिस्तान के कमजोर लोकतंत्र, चार सैन्य तख्तापलट (1958, 1977, 1999, 2014 में अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप), और चुनी गई सरकारों की सैन्य निर्भरता से उपजी है.
भारत में, मोदी की सर्वोच्चता लोकतांत्रिक जनादेश, मजबूत संस्थाओं, और नागरिक नियंत्रण से पैदा होती है, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर में उनकी पारदर्शी और निर्णायक कार्रवाई से दिखा. पाकिस्तान में, सेना प्रमुख की कमान सैन्य वर्चस्व, कमजोर लोकतंत्र, और आतंकवाद से ऐतिहासिक संबंधों से प्रेरित है, जिसे शहबाज की रक्षात्मक और झूठी बयानबाजी दर्शाती है. यह अंतर भारत की लोकतांत्रिक ताकत और पाकिस्तान की सैन्य-प्रधान कमजोरी को उजागर करता है.