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साहिल जोशी ने बताए वो 10 फैक्टर... जिससे महाराष्ट्र में महायुति बनी महाबली, महाअघाड़ी निपटी

बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी वाली महायुति जहां अपनी योजनाओं और बातों को जनता तक पहुंचाने में सफल रही तो दूसरी तरफ महाविकास अघाड़ी में कई बार आपस में खींचतान देखने को मिली. यहां तक कि चुनाव के बीच में ही सीएम पद को लेकर लगातार बयानबाजी होती रही.

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महाराष्ट्र चुनाव में महायुति की बंपर जीत
महाराष्ट्र चुनाव में महायुति की बंपर जीत

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के जो रुझान आए हैं, उससे साफ है कि राज्य में एक बार फिर से महायुति की सरकार बनेगी. इस बार महायुति ने जिस तरह का प्रदर्शन किया है उसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. अधिकांश एग्जिट पोल्स राज्य में महायुति की सरकार तो बना रहे थे लेकिन इतना बड़ा मैंडेट मिलने की भविष्यवाणी किसी ने भी नहीं की थी.

बीजेपी, शिंदे की शिवसेना और अजित पवार ने इस चुनाव को जिस तरह एकजुट होकर लड़ा था उसकी कमी विपक्ष की महाविकास अघाड़ी (MVA) में साफ दिखाई दी. बीजेपी, शिवसेना और एनसीपी वाली महायुति जहां अपनी योजनाओं और बातों को जनता तक पहुंचाने में सफल रही तो दूसरी तरफ महाविकास अघाडी में कई बार आपस में खींचतान देखने को मिली. यहां तक कि चुनाव के बीच में ही सीएम पद को लेकर लगातार बयानबाजी होती रही.

इस चुनाव की 10 वो बड़ी बातें जो महायुति की सफलता की वजह बने और एमवीए की हार कारण- 

1. एमवीए नहीं सेट कर पाई नैरेटिव: महाविकास अघाड़ी के पास एकजुटता वाले चुनावी संदेश का अभाव दिखा, क्योंकि उसके सहयोगी दल अलग-अलग मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे.

2. महाराष्ट्र प्राइड को भुनाने में विफल: गठबंधन "महाराष्ट्र के स्वाभिमान" की भावना को भुनाने में विफल रहा.

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3. कमज़ोर घोषणापत्र: अघाड़ी के घोषणापत्र में महायुति की नीतियों की झलक थी, जिसमें कोई अलग दृष्टिकोण नहीं दिखा.

4. कृषि मुद्दों की उपेक्षा: सोयाबीन, कपास और प्याज़ को लेकर किसानों की परेशानी पर पर्याप्त ध्यान नहीं देने से ग्रामीण इलाकों में गुस्सा.

5. लाडकी बहन योजना का प्रभाव: महायुति की लक्षित योजना ने महिला मतदाताओं को काफी प्रभावित किया.

6. प्रभावी महायुति अभियान: विज्ञापनों और भाषणों की एकजुटता ने आरोपों का खंडन किया और महायुति की छवि को मज़बूत किया.

7. मुख्य मुद्दों की अनदेखी: अघाड़ी मालवान मूर्ति विवाद और बदलापुर बलात्कार मामले जैसे मुद्दों को प्रभावी ढंग से जनता के सामने रखने में विफल रहा.

8. अस्थिरता की धारणा: मतदाताओं ने संभावित गठबंधन अस्थिरता के मुकाबले मौजूदा सरकार को प्राथमिकता दी.

9. भाजपा पर हमला करने में चूक: भाजपा की अभियान संबंधी गलतियों और फर्जी विज्ञापनों के प्रति कांग्रेस की उदासीन प्रतिक्रिया ने एमवीए की स्थिति को कमजोर किया.

10. उद्धव के प्रति कमजोर सहानुभूति: उद्धव ठाकरे की डिफेंसिव रणनीति की वजह से उनकी पार्टी के प्रति जनता की सहानुभूति कम हो गई.

इसके अलावा महाविकास अघाड़ी अपने आदिवासी, दलित, मुस्लिम और कुनबी सामाजिक संयोजन को बनाए रखने में विफल रहा, जो छोटे दलों और बागी उम्मीदवारों की वजह से बिखर गया.

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