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आदिवासियों के घर वापसी कार्यक्रम की सराहना के पीछे RSS का प्लान क्‍या है?

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जब भी कुछ बोलते हैं तो उस पर चर्चा होती ही है. पिछले दिनों उन्होंने हर मस्जिद में मंदिर खोजने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की बात की थी. अब उन्होंने आदिवासियों के घर वापसी की चर्चा की है. जाहिर है कि अटकलबाजियां लगाईं जाएंगी.

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 आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत एक बार फिर चर्चा में हैं. उन्होंने 'घर वापसी' कार्यक्रम के पक्ष में हवा बनाने की कोशिश की है. उनका दावा है कि राष्ट्रपति पद पर रहते हुए प्रणब मुखर्जी ने घर वापसी कार्यक्रम की सराहना की थी और कहा था कि अगर संघ का धर्मांतरण पर यह काम न होता, तो आदिवासियों का एक हिस्सा राष्ट्रविरोधी हो गया होता. भागवत ने यह बात सोमवार को इंदौर में एक कार्यक्रम में कही, जहां उन्होंने विहिप नेता चंपत राय को ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान किया. चंपत राय श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव भी हैं. सवाल उठता है कि अचानक घर वापसी कार्यक्रम की चर्चा क्यों हो गई? और उससे बढ़कर घर वापसी को वैलिडिटी दिलवाने के लिए प्रणब मुखर्जी की बातों का क्यों उल्लेख किया गया? जाहिर है कि आरएसएस संघटन हो या उसके प्रमुख मोहन भागवत कोई भी बात यूं ही नहीं कह देते.हर बात के पीछे एक रणनीति होती है, एक दूर दृष्टि होती है.आइये यह समझने की कोशिश करते हैं कि भागवत के ताजे बयान के क्या मायने हो सकत हैं?  

1-भविष्य में घर वापसी कार्यक्रम अन्य धर्मों में फिर शुरू किया जाए या नहीं ?

भागवत कहते हैं कि डॉ. प्रणब कुमार मुखर्जी राष्ट्रपति थे. तब मैं पहली बार उनसे मिलने गया था. संसद में घर वापसी को लेकर बहुत बड़ा हल्ला मचा हुआ था. मैं सोचकर गया कि बहुत सवाल पूछेंगे, बहुत कुछ बताना पड़ेगा. लेकिन उन्होंने कहा कि क्या आप लोगों ने कुछ लोगों को वापस लाया और फिर प्रेस कांफ्रेंस की… आप लोग ऐसा कैसे करते हो? ऐसा करने से हल्ला होता है. क्योंकि यह राजनीति है. मैं भी अगर कांग्रेस पार्टी में होता, राष्ट्रपति नहीं होता, तो मैं भी संसद में यही करता. फिर उन्होंने कहा, लेकिन आप लोगों ने जो यह काम किया है उसके कारण भारत का तीस प्रतिशत आदिवासी… उनके टोन से ही दिख रहा था, तो मुझे बड़ा आनंद लगा… मैंने कहा क्रिश्चियन बन जाता… बोले क्रिश्चियन नहीं, देशद्रोही बन जाता.

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भागवत के पूरे बयान को पढ़ने के बाद यही लगता है कि उन्होंने जनता के बीच यह मुद्दा एक बार फिर से उछाल दिया है. हो सकता है कि आरएसएस ये देखना चाहती हो कि इसे लेकर मीडिया और आम लोगों के बीच क्या चर्चा होती है. अगर संघ को लगता है कि इस संबंध में रुख पॉजिटिव है तो हो सकता है कि इसे और आगे बढ़ाया जाए. घर वापसी का सिलसिला दूसरे धर्मों विशेषकर मुसलमानों में भी शुरू किया जाए.देश के कई हिस्सों से ऐसी खबरें पिछले दिनों आईं हैं जहां के मुसलमान खुद को हिंदू इतिहास से जोड़ने में प्राइड फील करते है. संघ उनकी घर वापसी की कोशिश कर सकती है.

2-कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के लोग भी चाहते हैं कि ये कार्यक्रम चले

देखने वाली बात यह है कि मोहन भागवत घर वापसी कार्यक्रम की वैधता पर मुहर कांग्रेस के प्रमुख नेता रह चुके प्रणब मुखर्जी के बयान से कराई है. जाहिर है कि भागवत चाहते तो किसी दक्षिणपंथ भाजपा नेता का नाम भी ले सकते थे. पर उनकी मंशा यही थी कि आम लोग यह जान सकें कि संघ के इस कार्यक्रम का समर्थन केवल भारतीय जनता पार्टी ही नहीं बल्कि अन्य दलों के उच्च पदों पर बैठे लोग भी अंतर्मन से समर्थन करते हैं. मतलब साफ है कि हर दल के लोग चाहते हैं कि इस तरह की घर वापसी हो. पर कोई खुलकर नहीं बोलता है. 

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जैसे प्रणब मुखर्जी कहते हैं कि आप लोग घर वापसी कराने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों करते हो?  मुखर्जी का आशय था कि यह काम चुपके से होना चाहिए, नहीं तो इस पर राजनीति होगी ही. मुखर्जी कहते हैं कि अगर वो खुद राष्ट्रपति नहीं होते और कांग्रेस नेता होते तो संसद में इसका विरोध कर रहे होते.

आदिवासियों के ईसाई धर्म में धर्मांतरण संघ परिवार के प्रमुख मुद्दों में से एक रहा है, जो दशकों से वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों के माध्यम से इसके खिलाफ आंदोलन करता रहा है. पिछले कुछ वर्षों से संघ से जुड़े कई संगठन आदिवासी बहुल क्षेत्रों में धर्मांतरित आदिवासियों को आरक्षण लाभ से वंचित करने के लिए अभियान चला रहे हैं.

3-जातिगत जनगणना और आदिवासी अधिकारों का मुद्दा चुनावों में गरम है

भागवत का यह बयान संघ के आदिवासियों के धर्मांतरण के खिलाफ लंबे समय से चल रहे अभियान के अनुरूप है. यह बयान उस समय महत्वपूर्ण है जब विपक्ष ने चुनावों के लिए जातिगत जनगणना और आदिवासी अधिकारों को अपना राजनीतिक मुद्दा बनाया हुआ है. कांग्रेस लगातार पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी और संघ को आरक्षण विरोधी और आदिवासी, पिछड़ों और अनुसूचित जातियों का विरोधी करार दे रही है. दिल्ली विधानसभा के चुनावों के बाद बिहार में चुनाव होने हैं. आरएसएस अपनी छवि को लेकर बेहद सतर्क है. यही कारण है कि पिछले दिनों आरएसएस प्रमुख ने हर मस्जिद के अंदर मंदिर ढूंढे जाने की भी आलोचना की थी.

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