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राहुल गांधी के लिए शकील अहमद के इस्तीफे का क्या संदेश है

बिहार चुनाव के नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस की चुनाव समिति के प्रमुख सदस्य शकील अहमद ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. वंशवाद की राजनीति पर सवाल उठाते हुए शकील अहमद ने बिहार कांग्रेस के नेताओं के बहाने राहुल गांधी पर भी सवाल उठाया है.

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शकील अहमद का इस्तीफा कांग्रेस के झटका हो न हो, राहुल गांधी के लिए बड़ा सबक जरूर है. (Photo: ITG/File)
शकील अहमद का इस्तीफा कांग्रेस के झटका हो न हो, राहुल गांधी के लिए बड़ा सबक जरूर है. (Photo: ITG/File)

शकील अहमद का कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा, राहुल गांधी को सीधा संदेश है. बिहार चुनाव में राहुल गांधी ने अपनी मेहनत पर खुद जो पानी फेरा है, ये उसकी अंतिम किस्त है. देखा जाए, तो बिहार में जो कुछ हुआ या हो रहा है, शकील अहमद ने कांग्रेस नेतृत्व को अपनी तरफ से और अपने तरीके से आईना दिखाने की कोशिश की है.  

बिहार में कांग्रेस उम्मीदवारों को टिकट दिए जाने के लिए बनी चुनाव समिति में शकील अहमद को भी शामिल किया गया था. बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम के साथ ही शकील अहमद भी प्रमुख भूमिका में थे, अब अपनी भूमिका वो किस हद तक निभा पाए ये अलग सवाल है. चुनाव समिति के प्रमुख चेहरों में शकील अहमद के अलावा पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मदन मोहन झा भी हैं. शकील अहमद भी बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष (2000-2003) रह चुके हैं - अपने इस्तीफे में शकील अहमद ने नाराजगी तो राहुल गांधी से ही जाहिर की है, लेकिन ठीकरा स्थानीय नेताओं पर फोड़ा है. 

69 साल के शकील अहमद बीते कुछ समय से कांग्रेस में अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहे थे, लेकिन चुप थे. कहा भी है, 'मैंने 15 दिन पहले ही फैसला कर लिया था, लेकिन मैं चुनाव के बीच में इस्तीफा देकर गलत संदेश नहीं देना चाहता था... मैं नहीं चाहता था कि मेरी वजह से पार्टी को 5 वोट भी गंवाने पड़े, इसलिए मैंने पहले इस्तीफा नहीं दिया... चुनाव शाम 6 बजे खत्म हुए, और मैंने शाम के 6:05-6:10 बजे कांग्रेस अध्यक्ष को इस्तीफा भेज दिया.'

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वंशवाद की राजनीति पर भी शकील अहमद का प्रहार

शकील अहमद ने इस्तीफा तो मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा है, लेकिन सवाल राहुल गांधी पर ही उठाया है. तकनीकी तौर पर इस्तीफा तो कांग्रेस अध्यक्ष के पास ही भेजना होता है. राहुल गांधी पर सवाल भी बहाने से ही उठाया है. शकील अहमद कांग्रेस की जमीन खोदने के लिए जिम्मेदार तो बिहार के नेताओं को ठहरा रहे हैं, लेकिन ऐन उसी वक्त ये याद दिलाना भी नहीं भूलते कि उन नेताओं को मोर्चे पर तैनात तो राहुल गांधी ने ही किया था. 

न्यूज एजेंसी PTI से बात करते हुए शकील अहमद ने इस्तीफे को भारी मन से लिया गया फैसला बताया है, लेकिन लगे हाथ इस्तीफे में अपनी तरफ से आगाह भी कर दिया है, मेरे इस्तीफे का मतलब ये नहीं है कि मैं किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाऊंगा... मेरे पूर्वजों की तरह, मुझे भी कांग्रेस की विचारधारा और सिद्धांतों में पक्का यकीन है... और मैं हमेशा विचारधारा और सिद्धांतों का समर्थक रहूंगा... मेरी जिंदगी का आखिरी वोट भी कांग्रेस को ही जाएगा.

शकील अहमद ने साफ तौर पर स्वीकार किया है कि वो दुखी हैं, नाराज हैं. कहते हैं, इसका कारण ये है कि मैं नाराज हूं... चुनावों में जो हुआ, खासकर टिकट वितरण में, वो निराशाजनक था... मैंने तीन साल पहले ही घोषणा कर दी थी कि मैं चुनाव नहीं लडूंगा.

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वंशवाद की राजनीति पर भी शकील अहमद ने चोट किया है. कहा है, लोग परिवार के लिए भी पार्टी में रहते हैं, लेकिन मेरा कोई बेटा पार्टी में नहीं आना चाहता... लोग सम्मान और पहचान के लिए भी पार्टी में रहते हैं, और अगर वो भी नहीं मिलता, तो कोई क्यों रहेगा?

सवाल तो वाजिब है. शकील अहमद ने परिवारवाद की राजनीति पर भी कांग्रेस नेतृत्व को आईना दिखा दिया है. हाल ही में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने एक लेख के माध्यम से राहुल गांधी को वंशवाद की राजनीति के कठघरे में खड़ा कर दिया था. और, साथ ही, राहुल गांधी के गठबंधन सहयोगी तेजस्वी यादव को भी. 

दुखी होकर शकील अहमद ने अब जाकर कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है, लेकिन 2019 में गुस्से में बागी हो गए थे. बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मधुबनी से चुनाव लड़े और 1.31 वोट भी पाए थे, लेकिन तीसरे पायदान पर रह गए. बगावत के लिए एक्शन भी हुआ, छह साल के लिए कांग्रेस से निकाल भी दिए गए थे. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में उनकी वापसी भी हो गई. 

शकील अहमद के इस्तीफे का संदेश

कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को राहुल गांधी डरपोक करार देते रहे हैं, लेकिन शकील अहमद ने उनकी धारणा बदल देने की पूरी कोशिश की है. प्रियंका गांधी ने भी पार्टी छोड़ने वालों को लेकर एक बार कहा था कि लड़ाई आसान नहीं है, और कांग्रेस की लड़ाई में टिके रहना सभी के वश की बात भी नहीं है. लेकिन, शकील अहमद ऐसे दावों को पूरी तरह झुठला देते हैं. 

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शकील अहमद बताते हैं, 'ये कहना इतना आसान नहीं है कि राहुल गांधी का नेतृत्व विफल हो रहा है... अगर वरिष्ठ नेता, यहां तक कि वे भी जो कह चुके हैं कि वे सांसद या विधायक नहीं बनना चाहते, और न ही अपने बच्चों को बनाना चाहते हैं... अब भी पार्टी में हैं, तो ये सम्मान और पहचान के लिए है.'

दिल्ली चुनाव का कैंपेन छोड़कर राहुल गांधी बिहार दौरे पर निकल जा रहे थे. बिहार दौरे के कारण कुछ दिन तक दिल्ली का कैंपेन भी प्रभावित हुआ था. दिल्ली में राहुल गांधी का रोड शो रद्द करना पड़ा था - लेकिन, हासिल क्या हुआ?

शुरुआती दौर से ही राहुल गांधी के कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करने वाले बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु को एक दिन अचानक खामोश कर दिया गया. महागठबंधन की उस विशेष प्रेस कांफ्रेंस में कृष्णा अल्लावरु कोने में चुपचाप बैठे देखे गए थे. 

पटना एयरपोर्ट पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का विरोध झेलने वालों में कृष्णा अल्लावरू के साथ शकील अहमद भी मौजूद थे. बिहार में कांग्रेस महागठबंधन में तेजस्वी यादव की आरजेडी से भी लड़ाई लड़ रही थी, और अंदर नेता भी आपस में भिड़े हुए थे. एक वायरल ऑडियो में, जिसकी पुष्टि हम नहीं करते, बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम एक विधायक से बातचीत में अपनी मजबूरी समझा रहे थे. बातचीत में वो पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव की तरफ उंगली उठा रहे थे. 

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ये तो साफ देखा गया कि कैसे कन्हैया कुमार और पप्पू यादव के लिए राहुल गांधी चुनाव के काफी पहले से ही लालू यादव और तेजस्वी यादव से दो-दो हाथ करते रहे, लेकिन कांग्रेस के अंदर ही सब गड़बड़ चल रहा था और उसका कोई रास्ता नहीं निकाला जा सका. ऐसे में राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा और पटना में CWC की एक्सटेंडेड बैठक कराने से क्या फायदा हुआ?

बिहार चुनाव में तो कांग्रेस के लिए वैसे भी बहुत कुछ अपेक्षित नहीं था, और एग्जिट पोल देखकर भी कोई उम्मीद नहीं नजर आ रही है - फिर भी, बिहार चुनाव के नतीजे आने से पहले शकील अहमद का इस्तीफा राहुल गांधी के लिए बड़ा सबक है, बशर्ते उसे गंभीर होकर समझने की कोशिश की जाए.

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