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पहलगाम हमले का जवाब धर्म और जाति की राजनीति से ऊपर उठकर ही देना होगा

पहलगाम हमले की पूरी दुनिया भर्त्सना कर रही है, लेकिन देश के अंदर ही कुछ ऐसे तत्व भी हैं जो आतंकियों के धर्म पूछकर गोली मारने के मुद्दे पर हिंदू और मुस्लिम नैरेटिव को अब भी आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं.

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पहलगाम हमले के खिलाफ चंडीगढ़ में बीजेपी कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन.
पहलगाम हमले के खिलाफ चंडीगढ़ में बीजेपी कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन.

पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ केंद्र सरकार के कई सख्त कदम उठाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवादियों को कल्पना से भी बड़ी सजा देने का ऐलान किया है - और कहा है कि उनकी बची खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का वक्त आ गया है. 

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आतंकवाद की रीढ़ तोड़ने के लिए बहुत सारे कदम उठाने जरूरी हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग थलग करना और ऐसी कोशिश करना भी जरूरी है ताकि पड़ोसी मुल्क पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाया जा सके - लेकिन भारतीयों के लिए सबसे जरूरी है धर्म और जाति की राजनिति से ऊपर उठकर देश के बारे में सोचना, और जरूरत के हिसाब से व्यवहार करना.

पहलगाम हमले को लेकर चश्मदीद की जुबानी एक ही कहानी सुनने को मिली है, 'पहले तो धर्म पूछा, फिर कलमा पढ़ने को कहा और फिर गोली मार दी.'

कहते हैं कि असम यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर की जान इसलिए बच गई क्योंकि आतंकवादियों को देखकर वो कलमा पढ़ने लगे. जो बगल में लेटे थे, आतंकवादियों ने उनको सीधे गोली मार दी. 

देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष सहित दुनिया भर के देशों के साथ साथ, यूएई और ईरान जैसे मुस्लिम मुल्कों ने भी पहलगाम हमले की निंदा और पीड़ितों के परिवारों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना और सहानुभूति जाहिर की है - लेकिन देश में कुछ ऐसे तत्व भी हैं जिनके चेहरे से हिंदू-मुस्लिम का चश्मा नहीं उतर सका है. 

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हर आपदा में अवसर क्यों ढूंढते हैं?

कुछ दिन पहले आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुत्व की राजनीति करने वालों को एक लाइन की नसीहत दी थी, हर मस्जिद के नीचे मंदिर क्यों ढूंढना है? 

मोहन भागवत के बयान पर तब तो काफी प्रतिक्रिया हुई थी, अब बीजेपी के ही सोशल मीडिया के जरिये ऐसी सोच सामने आई है, जिसमें पहलगाम हमले को भी राजनीतिक चश्मे से देखने की कोशिश की जा रही है.

पहलगाम हमले के बाद घटनास्थल से नेवी अफसर लेफ्टिनेंट विनय नरवाल और उनकी पत्नी हिमांशी की आई एक तस्वीर से छत्तीसगढ़ बीजेपी ने एक पोस्टर बनाया था. तस्वीर में हिमांशी पति के शव के पास बैठी हैं, जिनकी आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी है. 

छत्तीसगढ़ बीजेपी ने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है, 'धर्म पूछा, जाति नहीं… याद रखेंगे' - और यही बात पोस्ट पर भी लिखी है. 

बीजेपी के पोस्टर पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने गहरी नाराजगी जताई है, लेकिन करीब करीब ऐसी ही बातें कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा भी कर रहे है. 

न्यूज एजेंसी एएनआई से बातचीत में रॉबर्ट वाड्रा कहते हैं, 'अगर आप इस आतंकवादी घटना को देखें... अगर वे लोगों की पहचान देख रहे हैं, तो वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्योंकि हमारे देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक विभाजन आ गया है...'

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रॉबर्ट वाड्रा का कहना है, ‘पहचान देखकर और फिर किसी को मारना, ये प्रधानमंत्री को एक संदेश है... क्योंकि मुसलमान कमजोर महसूस कर रहे हैं.'

और इसी बीच बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है, केवल वोट बैंक के लिए अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमानों को ज्यादा अधिकार देकर हिंदुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने वालों को आज पहलगाम की घटना पर बताना चाहिये कि आज की हत्या धर्म के आधार पर की गई या नहीं? लानत है सेकुलरवादी नेताओं पर… संविधान का आर्टिकल 26 से 29 तक खत्म करने का समय है.

सोशल साइट एक्स पर शेयर की गई छत्तीसगढ़ बीजेपी की वो पोस्ट तो डिलीट कर दी गई है, लेकिन उसके स्क्रीनशॉट अब भी सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं. और, जिसे कुछ बीजेपी नेताओं ने शेयर किया था, वो अब भी मौजूद है. 

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव सोशल मीडिया पर एक लंबी पोस्ट में अपनी प्रतिक्रिया दी है, ‘भाजपा ये विज्ञापन हटवा भी देगी तो भी उसका ये पाप उसके कट्टर समर्थक तक माफ नहीं करेंगे… भाजपा हमेशा आपदा में अपनी सत्ता और सियासत के लिए अवसर ढूंढती है… भाजपा अपनी सत्ता के सिवा किसी की सगी नहीं है… घोर निंदनीय!’

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अखिलेश यादव ने लिखा है, जब जम्मू-कश्मीर में भाजपा सरकार ने सब कुछ अपने मन मुताबिक किया है तो वो इतने अधिक लोगों की असामयिक मौत के लिए अपनी ज़िम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती… ये कोई पहली बार नहीं हुआ है… भाजपा सरकार ने अगर पिछले हमलों से सबक लिया होता तो वो पहले से ही सचेत-सजग रहती और ऐसे हमलों को रोका जा सकता था.

धर्म और जाति की राजनीति रुकने वाली नहीं है

संघ प्रमुुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज से जात-पात से ऊपर उठने की अपील की है. और संघ का पुराना मंत्र भी दोहराया है, सभी के लिए एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान घाट.
 
साथ में, मोहन भागवत का कहना है, एक ही स्थान पर होलिका स्थान भी हो. लेकिन, मौजूदा राजनीतिक मिजाज के हिसाब से ये सब बहुत ही बेमानी लगता है. 

बिहार में इसी साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के लिए चुनाव होने जा रहे हैं. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी हर मौके पर वादा कर रहे हैं कि सत्ता में आने पर कांग्रेस देश में जातिगत गणना कराएगी, और तेजस्वी यादव की तो पूरी राजनीति ही जाति और धर्म पर टिकी है - यादव और मुस्लिम. 

ऐसे माहौल में धर्म और जाति की राजनीति से मुंह मोड़ना नेताओं के लिए तो नामुमकिन लगता है, लेकिन आम लोगों के लिए नहीं. थोड़ा मुश्किल हो सकता है - लेकिन फिलहाल देश को ऐसी ही जरूरत आ पड़ी है.

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