बिहार की राजनीति में हर दिन सुबह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में कुछ अटकलें लगाई जाती हैं जो शाम होने तक मिर्च मसाले के साथ फैलती हैं. फिर दूसरे दिन सुबह के साथ रात गई बात गई वाली बात हो जाती है. दिन चढ़ने तक एक और शिगूफा हाजिर हो जाता है. यही नीतीश कुमार के बिहार की राजनीति का सबसे मजबूत खिलाड़ी होने का राज है. उनको समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.सवाल उठता है कि क्या यह नीतीश कुमार की रणनीति है कि उनके विरोधी हों या उनके अपने समर्थखक उनको लेकर हमेशा कन्फ्यूज रहें.
कुमार ने इस हफ्ते 2 मौकों पर अपने विरोधियों के लिए संदेह के आधार पर एनडीए पर हमले करने का मौकै दे दिया है. पहले चरण के चुनाव में बस अब 3 दिन बचे हैं. जाहिर है कि यह मौका बहुत निर्णायक है. अंतिम समय का प्रचार सच हो झूठ हो बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है.
31 अक्टूबर के दिन पटना के एक होटल में एनडीए ने अपना 69 पेज का 'संकल्प पत्र' जारी किया. मंच पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी जैसे दिग्गज थे. लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस महज 26 सेकंड में समाप्त हो गई. बड़े नेता मैनिफेस्टो की कॉपी दिखाकर फोटो खिंचवाए और चले गए. कोई भाषण नहीं, कोई सवाल-जवाब नहीं. सिर्फ सम्राट चौधरी ने बाद में मीडिया को संबोधित किया. नीतीश कुमार ने एक शब्द नहीं बोला.
दूसरी घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पटना रोड शो में नजर आई. रविवार को पीएम मोदी के रोड शो में जब उनकी गाड़ी पर सीएम नीतीश कुमार नहीं नजर आए तो बहुत से लोगों के मन में सवाल उठा कि कुछ गड़बड़ है क्या? लेकिन,सब कुछ सामान्य बताया जा रहा है. कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव की अधिसूचना के बाद पर्व-त्योहार के कारण चुनाव प्रचार के लिए समय नहीं मिला था. अब पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार सभाएं भी अलग-अलग कर रहे हैं.
मोदी के साथ रोड शो में नजर न आने के पीछे क्या?
पीएम मोदी के रोड शो में नीतीश कुमार अगर होते तो उनके बाएं-दाएं ही होते.नीतीश समर्थकों का तर्क है कि यह लोकसभा नहीं, विधानसभा चुनाव है और उसमें वही प्रमुख चेहरा हैं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के. इसी को ध्यान में रखते हुए यह योजना बनाई गई थी कि नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दाएं-बाएं नहीं दिखे.
वह फ्रंट पर रखे जा रहे हैं तो उनका दाएं-बाएं रहना गलत संदेश देगा. हालांकि इस तर्क में दम नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं.इसके साथ ही तीन चुनावों का नेतृत्व करने और एनडीए को सत्ता में लाने का श्रेय भी उन्हें जाता है. इसलिए अगर मोदी के दाएं या बाएं नीतीश खड़े होते हैं उससे उनका कद नहीं कम होता है. वैसे भी अगर कोई तीसरा नेता उनके साथ मौजूद होता तो यह बात समझ में आती. पर जब दो ही लोग होते हैं तो दोनों ही केंद्र में होते हैं.
बताया जा रहा है कि जनता दल यूनाइटेड ने इस निर्णय की जानकारी पहले ही भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को दे दी थी. कहा गया था कि सीएम नीतीश कुमार लगातार सड़क मार्ग से भी बिहार के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं, इसलिए भी उन्हें इस रोड शो से दूर रखा जाए. ये बात सही हो सकती है पर ये सवाल तो वाजिब ही है कि क्या दूरी जानबूझकर बनाई गई?
जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संजय झा के पास है. लेकिन, जब बात पीएम मोदी के साथ रोड शो वाली गाड़ी पर जाने की हुई, तो निर्णय हुआ कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में पीएम मोदी के मंत्री और जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मौका दिया गया.
मेनिफेस्टो वाला विवाद
विपक्ष ने इसे मुद्दा बना लिया है हालांकि उनके तर्क बहुत कमजोर हैं. कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा कि 26 सेकंड की प्रेस कॉन्फ्रेंस और नीतीश को बोलने नहीं दिया गया. यह बिहार और बिहारियों का अपमान है. कांग्रेस सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने तंज कसा, मैनिफेस्टो रिलीज पर सीएम चुप, जैसे वे खुद इसे पढ़े ही न हों. जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि नीतीश एक शब्द नहीं बोले, शायद मैनिफेस्टो पढ़ा ही न हो. आरजेडी के तेजस्वी यादव ने इसे 'जुमला पत्र' बताया, सीएम को बोलने नहीं दिया जाता, शायद उन्हें पता ही न हो क्या लिखा है. पवन खेड़ा ने सवाल उठाया, नीतीश को अपमानित क्यों किया जा रहा? क्या रिपोर्ट कार्ड दिखाने से डर लग रहा?
विपक्ष का दावा है कि यह एनडीए की आंतरिक कलह का सबूत है. नीतीश कमजोर पड़ गए हैं, भाजपा उन्हें कठपुतली बना रही है. हालांकि विपक्ष के तर्क इसलिए कमजोर साबित हो रहे हैं क्योंकि संकल्प-पत्र में मोदी की फोटो अगर 14 बार है तो नीतीश की 19 बार है. शायद यही कारण है कि 26 सेकंड की नीतीश की चुप्पी को रणनीति कहा जा रहा है.
नीतीश का विजन ही एनडीए का संकल्प है
प्रदेश के डिप्टी सीएम और बीजेपी नेता सम्राट चौधरी ने कहा कि एनडीए का संकल्प पत्र नीतीश कुमार का ही विजन है. चौधरी के इस कथन में दम है.दरअसल पूरा का पूरा संकल्प पत्र नीतीश की योजनाओं का विस्तार है. 2004 से 2025 के बीच बिहार ने 8.5 लाख सरकारी नौकरियां दीं. 2 लाख सिर्फ 2024-25 में ही दी गईं हैं. 1.18 करोड़ महिलाओं के खाते में DBT से 2.1 लाख करोड़ पहुंचे. संकल्प-पत्र में 1 करोड़ रोजगार का टारगेट 2020 के 50 लाख रोजगार का सीधा अपग्रेडेशन है.
नीतीश-स्कीम्स की री-ब्रांडिंग लखपति दीदी जैसी योजनाएं हैं. जीविका SHG (10 लाख ग्रुप, 1.25 करोड़ महिलाएँ) को 1 करोड़ तक ले जाना, 50 प्रतिशत महिला आरक्षण से अब 33% पंचायत फंड सीधे महिला मुखियाओं को, 2006 की साइकिल योजना से 2025 में 10वीं-12वीं की लड़कियों को ई-स्कूटी का वादा नीतीश की पुरानी फाइल का नया कवर है.
ईबीसी के 36% वोटबैंक पर नीतीश का पेटेंट है. 112 अति-पिछड़ी जातियों को 10 लाख तक लोन नीतीश की योजनाओं का ही विस्तार है. सुशासन शब्द तो नीतीश के कॉपीराइट जैसा हो गया है. 2005 के जंगलराज से सुशासन का नारा आज भी ग्रामीण महिला वोटर दोहराती हैं.
नीतीश की चुप्पी: हकीकत या साजिश?
नीतीश 74 साल के हो चुके हैं. स्वास्थ्य पर सवाल पुराने हैं . भूलक्कड़पन, अटपटे बयान आदि को लेकर विपक्ष आरोप लगाता है कि सिंडिकेट चला रहा है बिहार सरकार. दूसरी तरफ एनडीए का कहना है कि रोज 250 किमी यात्रा, 5 रैलियां नीतीश कर रहे हैं. जद यू के समर्थक कहते हैं कि यह सब रणनीति के तहत है. बड़े नेता भाषण से बचते हैं, मोदी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कम करते हैं.इस बीच गृहमंत्री अमित शाह और बिहार बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेद्र प्रधान भी बार बार कह रह हैं कि नीतीश ही चेहरा हैं.वैसे भी नीतीश हमेशा कम बोलते रहे हैं. देश में जितने विवादास्पद मुद्दे रहे जैसे वक्फ बिल, आंबेडकर विवाद आदि पर उन्होंने कभी मुंह नहीं खोला.