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'जो तुमको हो नापसंद, वही काम करेंगे...' बिहार में कांग्रेस ने राजद की राह में दुश्‍वारियां खड़ी कर दीं

कानूनी दुश्वारियां अपनी जगह हैं, लेकिन राहुल गांधी ने बिहार में आरजेडी नेतृत्व का जीना हराम कर रखा है - बिहार में कांग्रेस हर वो काम कर रही है जो लालू यादव को बिल्कुल भी पंसद नहीं है.

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कन्हैया कुमार के साथ बेगूसराय में राहुल गांधी का पदयात्रा करना भी लालू यादव पर दबाव बनाने की ही कवायद थी.
कन्हैया कुमार के साथ बेगूसराय में राहुल गांधी का पदयात्रा करना भी लालू यादव पर दबाव बनाने की ही कवायद थी.

कांग्रेस और आरजेडी का विपक्षी खेमे में सबसे लंबा साथ रहा है, और ये रिश्ता सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर लालू यादव के सपोर्ट की मजबूत नींव पर फला-फूला है - लेकिन गुजरते वक्त के साथ रिश्ते में काफी उतार चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं.

राहुल गांधी का दागी नेताओं वाला ऑर्डिनेंस फाड़ देना, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद आरजेडी नेताओं का कांग्रेस नेतृत्व पर हमला और बिहार पहुंच कर कन्हैया कुमार का लालू-राबड़ी और नीतीश शासन से एक साथ हिसाब मांगना - ये सब ऐसे वाकये हैं जिनकी वजह से रिश्तों की नींव पर बुरा असर पड़ा है. कन्हैया कुमार के बिहार दौरे के वक्त लालू यादव के बयान के बाद तो काफी तनावपूर्ण स्थिति बन गई थी, जिसे लालू यादव ने सोनिया गांधी के साथ फोन पर बात करके सब ठीक कर लिया.  

ये सब तभी से होने लगा है जबसे कमान पूरी तरह राहुल के हाथ में आ गई है. कहने को तो तेजस्वी यादव ने दिल्ली आकर राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात भी की है, और मुलाकात अच्छी भी बताई है. लेकिन, तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बनाये जाने के मुद्दे पर कांग्रेस की तरफ से सीधा समर्थन न दिया जाना बता रहा है कि गठबंधन के रास्ते में अभी रोड़े खत्म नहीं हुए हैं. 

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बात बस इतनी ही नहीं है, राहुल गांधी बिहार चुनाव से पहले हर वो काम कर रहे हैं जो लालू यादव को बिल्कुल भी पसंद नहीं है.  

1. कांग्रेस की सवर्ण राजनीति से दिक्कत नहीं

लालू यादव को कांग्रेस की सवर्ण राजनीति से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन कन्हैया कुमार से काफी दिक्कत है. लालू यादव चाहते हैं कि कांग्रेस सवर्णों की राजनीति में जो चाहे जीभर करे, लेकिन उससे बाहर हाथ न फैलाये. 

कन्हैया कुमार आते तो हैं सवर्ण तबके से लेकिन लालू यादव को लगता है कि वो तेजस्वी की राह का रोड़ा बन सकते हैं. ये देखने में भी आया है कि कन्हैया कुमार के मैदान में उतरते ही तेजस्वी यादव की पढ़ाई-लिखाई पर चर्चा शुरू हो जाती है.

वैसे कन्हैया कुमार किसी और भी तबके से होते तो भी तेजस्वी यादव को दिक्कत होती. अगर यादव होते तो और भी ज्यादा होती. दिक्कत तो चिराग पासवान से भी होती है, लेकिन वो एक खास वोट बैंक की ही राजनीति करते हैं. 

2. यादव वोट बैंक से दूर रहे कांग्रेस

लालू यादव शुरू से ही M-Y फैक्टर यानी मुस्लिम-यादव की राजनीति करते रहे हैं, और तेजस्वी यादव भी उसी विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. 

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और, दिक्कत तब शुरू होती है जब राहुल गांधी बिहार में कन्हैया कुमार के साथ साथ पप्पू यादव को भी सपोर्ट कर देते हैं. पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन पहले से ही कांग्रेस में हैं, लेकिन लालू यादव को उनसे कोई दिक्कत नहीं है. 

पप्पू यादव भी कभी आरजेडी में ही हुआ करते थे, लेकिन धीरे धीरे वो आरजेडी पर काबिज होने की कोशिश करने लगे, और खुद को लालू यादव का उत्तराधिकारी मानने लगे थे. जैसे ही लालू यादव को भनक लगी, पप्पू यादव को महत्व दिया जाना बंद हो गया, और उनको नई राह पकड़नी पड़ी. 

यहां तक कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पप्पू यादव को हराने के लिए लालू यादव ने कम प्रयास नहीं किये. तेजस्वी यादव तो पूर्णियां में डेरा ही डाल दिये थे, लेकिन पप्पू यादव को हरा नहीं पाये. 
 
लेकिन, राहुल गांधी बिहार में कन्हैया कुमार और पप्पू यादव दोनो को प्रमोट कर रहे हैं. 

3. कांग्रेस की दलित राजनीति भी नापसंद

लालू यादव कतई नहीं चाहते कि कांग्रेस बिहार की दलित राजनीति में दखल दे - जब तक अखिलेश प्रसाद सिंह के हाथ में कांग्रेस की कमान थी, सब ठीक था. लेकिन, राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाना भी उनको पसंद नहीं हैं, और मिलना भी नहीं चाहते. 

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बिहार में चुनावी गठबंधन को लेकर हाल ही में राजेश कुमार ने तेजस्वी यादव से, और कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने लालू यादव से मुलाकात की थी. 

बताते हैं कि जब भक्त चरण दास (लालू यादव के ‘भकचोन्हर दास’ बोल देने पर तब काफी बवाल हुआ था.) बिहार कांग्रेस के प्रभारी थे तब ही वो राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन लालू यादव की आपत्ति के कारण मामला रुक गया. और फिर अखिलेश सिंह को अध्यक्ष बनाया गया, जो लालू यादव के करीबी भी माने जाते हैं. 

लेकिन, राहुल गांधी ने चुनाव से पहले राजेश कुमार को ही कमान सौंप दी. बिहार के दलितों में पासवान के बाद रविदास वोटर का नंबर आता है, और राजेश कुमार भी उसी समाज से आते हैं - अब राजेश राम के जरिये राहुल गांधी गांधी की कोशिश दलित वोट बैंक में सेंध लगाने की है. 

4. मुस्लिम वोट बैंक का भी बंटवारा नहीं चाहते

लालू यादव कतई नहीं चाहते कि कांग्रेस मुस्लिम वोट बैंक में हिस्सेदार बने, और वोटों का बंटवारा हो, लेकिन वो मन मसोसकर रह जाते हैं. 

2019 के लोकसभा चुनाव में जब आरजेडी अपना खाता नहीं खोल पाई तो कांग्रेस के मोहम्मद जावेद किशनगंज से लोकसभा पहुंच गये थे. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बेशक सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक आरजेडी के ही थे, लेकिन 19 विधायकों में 4 कांग्रेस के थे, और 5 असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के - लेकिन लालू यादव की कोशिश यही है कि कांग्रेस ज्यादा हिस्सेदारी न ले पाये.  

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5. जातिगत जनगणना अभियान भी परेशान करता है

जातिगत जनगणना पर भी राहुल गांधी की हद से ज्यादा सक्रियता लालू यादव को पसंद नहीं है - और जब राहुल गांधी ने बिहार में हुई जातिगत गणना को फर्जी बता दिया था, तब तो बर्दाश्त करना भी काफी मुश्किल हुआ होगा. 

लालू यादव, असल में, कास्ट सेंसस के सबसे बड़े पैरोकार हैं. ये लालू यादव ही हैं जो महिला आरक्षण बिल में पिछड़ी महिलाओं के लिए कोटे की मांग पर अड़े हुए थे. 

लालू यादव तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर राष्ट्रीय जनगणना में कास्ट सेंसस नहीं हुआ तो पिछड़े वर्ग के लोग जनगणना का ही बहिष्कार करेंगे - और राहुल गांधी हैं कि इस मामले में भी लालू यादव के चैलेंज कर रहे हैं.

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