राहुल गांधी आज कल अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए नेताओं को टार्गेट करते हैं. कुछ महीने पहले गुजरात गए तो वहां पर उन्होंने 2 तरह के घोड़ों की कहानी सुनाई. और अपनी पार्टी के नेताओं पर तंज कसते हुए कहा कि पार्टी में बारात के घोड़ों को रेस में भेज दिया जा रहा है. उन्होंने गुजरात में ऐसे नेताओं को पार्टी से बाहर करने का वादा किया था. अब राहुल गांधी मध्य प्रदेश पहुंचे हैं और अब उन्होंने तीन तरह के घोड़ों की कहानी सुनाई है. रेस के घोड़े, और बारात वाले घोड़ों के साथ अब लंगड़ा घोड़ा भी आ गया है. 3 जून, 2025 को भोपाल में मध्य प्रदेश कांग्रेस के 'संगठन सृजन अभियान' के दौरान उन्होंने कहा कि लंगड़े घोड़ों को रिटायर करना है. राहुल गांधी का उद्देश्य पार्टी के संगठन में अनुशासन, योग्यता के आधार पर जिम्मेदारी, और आंतरिक सुधारों को लागू करना है. घोड़ों का उदाहरण देकर मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की आंतरिक गतिशीलता, नेतृत्व की कमजोरियों, और बीजेपी के प्रति ऐसे घोड़ों (नेताओं) के रुख पर सवाल उठाए. हालांकि राहुल गांधी जितना कहते हैं उतना कर पाते हैं या नहीं ये सभी जानते ही हैं. आइये देखते हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टा का लंगड़ा घोड़ा कौन है?
मध्य प्रदेश में कांग्रेस का लंगड़ा घोड़ा कौन
राहुल गांधी ने भोपाल में कहा कि रेस का घोड़ा रेस में जाएगा, बारात का घोड़ा बारात में, और लंगड़े घोड़े को रिटायर करना है. अगर वह परेशानी खड़ी करता है, तो कार्रवाई होगी.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की लगातार हार (2023 विधानसभा में 66 सीटें, 2024 लोकसभा में शून्य) ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं पर सवाल उठाये थे. कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ की छिंदवाड़ा में हार और बीजेपी नेताओं के साथ उनकी कथित मुलाकातों की अफवाहों ने संदेह को बढ़ाया. इसी तरह दिग्विजय सिंह की रणनीतियों को भी 2023 और 2024 की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया.
कुछ लोगों का मानना है कि राहुल ने बीजेपी के लिए काम करने वाले नेताओं पर तंज कसा है, जिसे कमलनाथ पर इशारा माना गया, विशेष रूप से 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल के बाद.
राहुल गांधी का 'संगठन सृजन अभियान' 55 नए जिला अध्यक्षों को नियुक्त करने और युवा नेताओं को बढ़ावा देने पर केंद्रित था. यह बयान पुराने, निष्क्रिय नेताओं को रिटायर करने की चेतावनी भी था.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वी.डी. शर्मा ने जवाब में कहा, "गधों की महफिल में घोड़ों की चर्चा कैसे आ गई? यह कांग्रेस की आंतरिक कमजोरी को उजागर करने की रणनीति थी.
गुजरात में बारात के घोड़ों पर क्या एक्शन ले पाए राहुल गांधी
राहुल गांधी ने 8 मार्च, 2025 को अहमदाबाद में और 16 अप्रैल, 2025 को मोडासा में गुजरात कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए रेस का घोड़ा और बारात के घोड़े का अंतर बताया था. उन्होंने कहा कि कांग्रेस रेस के घोड़े को बारात में भेज देती है और बारात के घोड़े को रेस में. कुछ लोग बीजेपी से मिले हुए हैं, उन्हें निकाल देना चाहिए. यह बयान गुजरात में पार्टी की कमजोरी और 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए संगठन को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा था.राहुल गांधी ने गुजरात में कम से कम 30 से 40 ऐसे लोगों को निकालने की आवश्यकता पर जोर दिया था. हालांकि, किसी नेता विशेष का नाम नहीं लिया गया, और यह बयान संगठनात्मक सुधारों और जिला स्तर पर नेतृत्व को मजबूत करने पर केंद्रित था.
राहुल गांधी के बयान (मार्च और अप्रैल, 2025) के बाद से, गुजरात कांग्रेस में किसी बड़े नेता को हटाने या निष्कासित करने की कोई पुष्ट खबर नहीं है. गुजरात में शक्ति सिंह गोहिल, भरत सोलंकी, और अमित चावड़ा जैसे नेताओं की रणनीतियां 2022 के विधानसभा चुनावों (17 सीटें) और 2024 के लोकसभा चुनावों (0 सीटें) में असफल रहीं. समझा जाता है कि राहुल का बारात का घोड़ा वाला बयान इन नेताओं के लिए ही था. लेकिन इन्हें हटाने या इन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की कोई खबर नहीं है.
मध्य प्रदेश में भी कुछ नहीं होगा, लंगड़े घोड़ों पर एक्शन मुश्किल
मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने कहा कि लंगड़े घोड़े को रिटायर करना है. अगर वे परेशानी खड़ी करें, तो कार्रवाई होगी. कांग्रेस बीट देखते रहे पत्रकारों की मानें तो राहुल गांधी का इशारा कमलनाथ और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के लिए था. जिनकी रणनीतियों के चलते 2023 के विधानसभा चुनावों (66 सीटें) और 2024 के लोकसभा चुनावों (0 सीटें) में कांग्रेस की किरकिरी हुई.
मध्य प्रदेश में 'संगठन सृजन अभियान' के तहत 61 AICC पर्यवेक्षक और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन कमलनाथ या दिग्विजय जैसे वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने बताया कि जिला और ब्लॉक स्तर पर नए नेतृत्व की सूची तैयार हो रही है, लेकिन यह प्रक्रिया धीमी है. दरअसल ये सचाई है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की गुटबाजी कांग्रेस के मजबूत होने में एक बड़ी बाधा है. 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल ने संगठन को कमजोर किया, और कमलनाथ की छिंदवाड़ा में हार ने उनके प्रभाव को घटाया. हालांकि मध्य प्रदेश में संगठनात्मक ढांचा गुजरात से बेहतर है.