अरविंद केजरीवाल का निशाना कुछ दिनों से थोड़ा शिफ्ट हो गया है. पहले वो हमेशा ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टार्गेट करते रहते थे, लेकिन हाल फिलहाल ये देखने को मिला है कि वो अमित शाह पर ताबड़तोड़ हमले बोल रहे हैं - और दिल्ली न संभाल पाने का इल्जाम लगाते हुए इस्तीफा तक मांग चुके हैं.
2020 के चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी की तरफ से अमित शाह ही ज्यादा हमलावर नजर आ रहे थे, और उनके साथ अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा तो जैसे कहर ही ढा रहे थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल बड़े आराम से बचते बचाते निकल गये, और चुनाव भी जीत गये.
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान अरविंद केजरीवाल का चुनाव कैंपेन प्रशांत किशोर संभाल रहे थे, लेकिन इस बार वो खुद ही बिहार की चुनावी राजनीति के मैदान में उतरे हुए हैं. पिछले चुनाव में शाहीन बाग धरने को लेकर बीजेपी की तरफ से अरविंद केजरीवाल को उकसाने की खूब कोशिश हुई, लेकिन अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम ने पूरे धैर्य से काम लिया - और उसमें प्रशांत किशोर की बड़ी भूमिका समझी गई थी.
आने वाले दिल्ली चुनाव के लिए एक बार फिर अरविंद केजरीवाल ने चुनाव प्रबंधन कंपनी आई-पैक से ही करार किया है, लेकिन लगता नहीं कि प्रशांत किशोर अब मैदान में नजर आएंगे. आई-पैक के संस्थापक प्रशांत किशोर ही हैं, लेकिन अब बताते हैं कि वो संस्था से अलग हो चुके हैं.
अब ये समझना जरूरी हो गया है कि अरविंद केजरीवाल ने आई-पैक यानी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी के साथ करार चुनाव कैंपेन की सामान्य प्रक्रिया भर के लिए ही किया है या इस बार फोकस अमित शाह को काउंटर करने पर ज्यादा होगा?
अमित शाह के खिलाफ आक्रामक हैं केजरीवाल
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राजधानी में हो रही आपराधिक गतिविधियों को लेकर अमित शाह को हर रोज ही टार्गेट कर रहे हैं. कभी मीडिया के सामने आकर तो कभी सोशल मीडिया के जरिये - और फिर यहां तक कह डालते हैं कि अगर अमित शाह से दिल्ली नहीं संभल रही है तो उनको इस्तीफा दे देना चाहिये.
ऐसा कम ही मौका आता है जब विपक्ष का कोई नेता अमित शाह का इस्तीफा मांगता हो. 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का बेहद सख्त रूख जरूर सामने आया था, और अपनी शिकायत लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ राष्ट्रपति भवन तक पहुंच गई थीं. तब कांग्रेस की तरफ से अमित शाह का इस्तीफा मांगा गया था, और तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से कार्रवाई की मांग भी की गई थी.
दिल्ली की घटना का जिक्र करते हुए अरविंद केजरीवाल कहते हैं, शालीमार बाग में कुछ दिन पहले दिल दहलाने वाली वारदात हुई... दो लड़के हिमांशु और मनीष जागरण से रात में लौट रहे थे, उसी दौरान कुछ लड़कों ने हमला किया... चाकुओं से इतना मारा गया कि मनीष की मौत हो गई... हिमांशु बच गया. मनीष को पुलिस समय पर अस्पताल लेकर नहीं गई. चश्मदीद गवाह हिमांशु का बयान अब तक नहीं लिया गया है. एफआईआर में बयान हिमांशु का नहीं है. क्या पुलिस को ऊपर से दबाव आ रहा है?
और फिर अरविंद केजरीवाल असल मुद्दे पर आते हैं, अगर अमित शाह से दिल्ली की स्थिति नहीं संभल रही है... घूम घूम कर राजनीति ही करनी है, तो दिल्ली की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी छोड़ दें, और इस्तीफा दे दें. पुलिस सुरक्षा देने के बजाय धमकी दे रही है... शिकायत की तो छोड़ेंगे नहीं. अमित शाह ने पूरी दिल्ली को क्या बना रखा है?
दिल्ली के लोगों के साथ मुसीबत की घड़ी में खड़ा रहने की बात करते हुए अरविंद केजरीवाल कहते हैं, मैं जब से लोगों के बीच जाने लगा हूं, लोगों के फोन आ रहे हैं कि हमारे यहां भी बुरी हालत है... मैं दिल्ली के कोने कोने में जाऊंगा... दिल्लीवालों के साथ केजरीवाल खड़ा मिलेगा.
अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि बीजेपी इस बार और भी ज्यादा आक्रामक कैंपेन करने वाली है, इसीलिए अमित शाह के खिलाफ पहले से ही माहौल बनाने लगे हैं - बाकी का काम तो आई-पैक की टीम संभाल ही लेगी. बताते हैं कि आई-पैक की एक छोटी टीम पहले से ही मिशन दिल्ली शुरू कर चुकी है.
कैंपेन क्या अमित शाह के खिलाफ फोकस रहेगा
अरविंद केजरीवाल ने मोदी का नाम लेना पहले ही छोड़ दिया है, और ये उनकी रणनीति का हिस्सा है. वो किसी भी सूरत में मोदी समर्थकों की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहते. ऐसा वो पहले भी कर चुके हैं - और इसीलिए अमित शाह के रूप में पहले से ही अपना टार्गेट चुन लिया है.
1. अरविंद केजरीवाल जानते हैं कि दिल्ली उनकी बराबरी का कोई बीजेपी नेता तो है नहीं, जो सामने से उनको मुश्किल में डाल सके. ऐसे में अगर अगर अमित शाह के हमलों को संभाल लिया जाये तो बाकी यूं ही बेअसर हो जाएंगे.
2. दिल्ली शराब नीति केस में जेल जाने के बाद से अरविंद केजरीवाल थोड़े बचाव की मुद्रा में तो हैं ही, आगे की लड़ाई ज्यादा चुनौतीपूर्ण है. अरविंद केजरीवाल के पक्ष में बस एक ही बात हुई है कि उनके सारे साथी जेल से बाहर आ चुके हैं.
3. अमित शाह की आक्रामक कैंपेन स्टाइल तो जगजाहिर है ही, मुकाबले के लिए अरविंद केजरीवाल भी अपनी तरफ से उपयुक्त मोर्चेबंदी और जरूरी बंदोबस्त कर रहे हैं.
4. अरविंद केजरीवाल का इस बार बूथ मैनेजमेंट पर भी ज्यादा जोर देखा जा रहा है. अमित शाह का चुनाव जीतने का तो ये आजमाया हुआ नुस्खा है ही, आई-पैक की टीम को इस काम में भी अरविंद केजरीवाल की मदद करनी होगी.
5. आने वाला दिल्ली विधानसभा का चुनाव अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक अस्तित्व से सीधे सीधे जुड़ा है. दिल्ली से ही अरविंद केजरीवाल की राजनीति आगे बढ़ी है, और दिल्ली पर ही टिकी हुई है - पंजाब में सरकार जरूर है, लेकिन असली पहचान तो दिल्ली से ही है. हरियाणा में अरविंद केजरीवाल की पार्टी का हाल देखा ही जा चुका है - दिल्ली हाथ से फिसली, तो खड़ा होना मुश्किल हो जाएगा.