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अब अरविंद केजरीवाल की तिहाड़ स्ट्रेटजी भी समझ लीजिये

अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल पहुंच चुके हैं, और वहां से भी अपनी चालें चल रहे हैं. ध्यान से देखें तो पाएंगे कि अरविंद केजरीवाल की तरफ से किताबों की डिमांड, जेल जाने से पहले आतिशी और सौरभ भारद्वाज का नाम लेना, और जेल से सरकार चलाने की जिद - एक खास रणनीति का हिस्सा हैं.

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आतिशी और सौरभ भारद्वाज भी अरविंद केजरीवाल की यूज-एंड-थ्रो पॉलिसी के शिकार हो चुके लगते हैं.
आतिशी और सौरभ भारद्वाज भी अरविंद केजरीवाल की यूज-एंड-थ्रो पॉलिसी के शिकार हो चुके लगते हैं.

अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल पहुंच चुके हैं. फिलहाल 15 दिन की न्यायिक हिरासत में हैं. अगर उसके बाद जमानत नहीं मिलती तो ये अवधि वैसे ही बढ़ती जाएगी, जैसे मनीष सिसोदिया और संजय सिंह के मामलों में देखने को मिल रही है. 

जेल से सरकार चलाने की तैयारी तो अरविंद केजरीवाल गिरफ्तारी से भी बहुत पहले ही कर चुके थे, अब तो उस पर अमल भी होने लगा है. जेल जाने से पहले कोर्ट में अरविंद केजरीवाल के एक बयान  का जिक्र आया है - और जेल में समय बिताने के लिए उनकी डिमांड भी सामने आई है. 

अरविंद केजरीवाल की तुलना अभी उन राजनीतिज्ञों से तो नहीं की जाती, जिन्हें भारतीय राजनीति में चाणक्य माने जाने का तमगा हासिल है - लेकिन राजनीति का कम अनुभव होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल काफी सधी हुई चालें भी चलते रहे हैं. 

जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल ने अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन समारोह में न जाने को लेकर बयान जारी किया था, वो राजनीतिक रूप से बिलकुल दुरूस्त माना गया था. अयोध्या गये तो वो भी नहीं, लेकिन न तो ममता बनर्जी की तरह बहिष्कार का स्टैंड लिया था, न ही अखिलेश यादव की तरह ढुलमुल बातें की थी. बड़े ही सहज भाव से कह दिया था कि सिक्योरिटी वजहों से न्योते के हिसाब से उनको अकेले जाना पड़ेगा, लेकिन वो अपने पूरे परिवार और माता-पिता के साथ जाना चाहते हैं - और गये भी. 

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लेकिन राजनीति कुछ बयानों और कुछेक एक्शन के बूते तो होती नहीं, हर फैसला सोच समझ कर लेना होता है, हर चाल ठोक बजाकर चलनी पड़ती है - और बस जरा सी गफलत होती है, और लेने के देने पड़ जाते हैं. 

ईडी का समन मिलने के बाद अपने तरीके से अरविंद केजरीवाल ने गिरफ्तारी को जितना संभव था टाला भी, लेकिन आखिरकार गिरफ्तार भी होना पड़ा, और फिर जेल. अब जेल से अरविंद केजरीवाल अपनी राजनीति को कैसे आगे बढ़ा रहे हैं वो समझना भी काफी दिलचस्प है. 

केजरीवाल की बुक पॉलिटिक्स

ईडी को रिमांड की जरूरत नहीं होने पर अरविंद केजरीवाल को न्यायिक हिरासत में जेल भेजे जाने का फैसला हुआ. तब अरविंद केजरीवाल ने कुछ किताबों की डिमांड की. चुन चुन कर जिन किताबों की अरविंद केजरीवाल ने मांग की, उससे तो यही लगता है कि ये चीजें भी वो पहले से ही तय कर रखे थे - तिहाड़ जेल में पढ़ने के लिए अरविंद केजरीवाल ने वही किताबें मांगी हैं, जिनकी खास राजनीतिक अहमियत है. 

1. रामायण के जरिये अरविंद केजरीवाल हर हाल में अयोध्या और राम मंदिर के मुद्दे से जुड़े रहना चाहते हैं. वादे के मुताबिक अरविंद केजरीवाल अपने पूरे परिवार के साथ गये थे, ताकि ये संदेश दे सकें कि वो भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तरह एक आदर्श पुत्र, पिता और पति की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहे हैं - और जेल में रहते हुए भी वो रामायण पढ़ कर ही वक्त बिताना चाहते हैं. 

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2. रामायण के साथ साथ अरविंद केजरीवाल ने श्रीमद्भागवत गीता भी उपलब्ध कराये जाने की मांग की है. गीता के जरिये वो ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि वो धर्मयुद्ध लड़ रहे हैं, और जैसे अर्जुन महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण के बताये रास्ते पर चले और जीत हासिल की, वो भी बिलकुल वही काम कर रहे हैं. 

मुश्किल तो ये है कि कलियुग के महाभारत में अरविंद केजरीवाल खुद ही अर्जुन का किरदार भी निभा रहे हैं, और श्रीकृष्ण की भूमिका भी वो अपने पास ही रखे हुए हैं. 

3. अरविंद केजरीवाल ने पत्रकार नीरजा चौधरी की किताब How Prime Ministers Decide भी जेल में पढ़ने के लिए मांगी है. ऐसा लगता है इस किताब के जरिये अरविंद केजरीवाल फिलहाल ये अध्ययन करने जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री किन परिस्थितियों में कैसे फैसले लेते हैं - मतलब, प्रधानमंत्री पद पर अपनी दावेदारी वो जेल में भी नहीं छोड़ रहे हैं, ऐसा लगता है जैसे अभी से थ्योरी की प्रैक्टिस कर रहे हैं.

केजरीवाल की बयान पॉलिटिक्स

1. विजय नायर के प्रसंग में आतिशी और सौरभ भारद्वाज का नाम लेकर अरविंद केजरीवाल ने एक नई चाल चल दी है. वैसे तो इस बात का जिक्र पहले भी कोर्ट में उनके वकील कर चुके हैं, लेकिन ईडी की पूछताछ में उनके इस बयान का अलग ही मतलब होता है. 

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सरकारी गवाह बन चुके विजय नायर से कोई सीधा संपर्क न होने की बात कर अरविंद केजरीवाल ने बचाव का रास्ता अख्तियार किया है. ऐसा करके वो अपने साथ साथ मनीष सिसोदिया को भी बचाने की कोशिश कर रहे हैं - और इसीलिए आतिशी और सौरभ भारद्वाज को कुर्बानी के लिए तैयार कर रहे हैं.

हालांकि, अरविंद केजरीवाल का ये बयान काफी अजीब लगता है. क्योंकि विजय नायर और अरविंद केजरीवाल को लेकर ईडी की तरफ से पहले जो बात बताई गई थी, वो अभी वाली से अलग है - और दोनों बातों को एक साथ लेकर जिरह हो तो बात कुछ और भी निकल सकती है.

पहले ईडी ने बताया था कि अरविंद केजरीवाल ने शराब कारोबारी समीर महेंद्रू से फेसटाइम कॉल के दौरान विजय नायर को 'हमारा लड़का' कह कर भरोसा दिलाने की कोशिश की थी, लेकिन अब वो उसे आतिशी और सौरभ भारद्वाज से जोड़ कर नई चाल चल रहे हैं. 

2. अब तो ऐसा लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल खुद ही आतिशी और सौरभ भारद्वाज को फंसाने की कोशिश कर रहे हों. देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल आतिशी और सौरभ भारद्वाज के साथ भी वैसी ही यूज-एंड-थ्रो पॉलिसी अपना रहे हैं, जैसी नीति योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण सहित तमाम पुराने साथियों के साथ अपनाया था. 

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केजरीवाल की जेल पॉलिटिक्स

1. अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने और इस्तीफा न दिये जाने की सूरत में सरकार के कामकाज का मामला काफी उलझने वाला है. ये तो पहले से ही चर्चा है कि संविधान भले ऐसी चीजों पर पाबंदी न लगाता हो, लेकिन व्यावहारिक मुश्किलें तो खड़ी होंगी ही. 

2. सवाल ये है कि तब क्या होगा जब आतिशी और सौरभ भारद्वाज को भी ईडी हिरासत में ले ले, और बाद के घटनाक्रम में उनको भी जेल भेज दिया जाये तो उनकी जगह कौन लेगा? और जो उनकी जगह लेगा उस विधायक को मंत्री बनाने की उपराज्यपाल से सिफारिश कौन करेगा? 

3. और ऐसा संभव नहीं हुआ तो आगे का फैसला तो दिल्ली सरकार के बारे में भी दिल्ली उपराज्यपाल ही लेंगे, और जो फैसला लेंगे उसमें राष्ट्रपति शासन की ही सूरत बनती है - क्या केजरीवाल यही चाहते हैं?

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