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क्यों कहा जा रहा कि कर्नाटक का ये कानून पुलिस को हिटलर बना देगा?

कोई भी कानून जो सरकार को बिना वारंट गिरफ्तारी का अधिकार देता है उसका दुरुपयोग होना तय होता है. इसके साथ ही अगर वह कानून नॉन बेलेबल है तो अत्याचार होना शा‍मिल हो जाता है. कर्नाटक सरकार द्वारा पारित किए गए एंटी-हेट बिल से ऐसी आशंकाओं के बारे में विपक्षी दल आगाह कर रहे हैं.

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कर्नाटक विधानसभा के दोनो सदनों ने एंटी हेट बिल को पास कर दिया है.
कर्नाटक विधानसभा के दोनो सदनों ने एंटी हेट बिल को पास कर दिया है.

कर्नाटक में कांग्रेस सरकार द्वारा हाल ही में विधानसभा के दोनों सदनों में पेश किए गए कर्नाटक हेट स्पीच एंड हेट क्राइम्स (प्रिवेंशन) बिल, 2025 (जिसे आमतौर पर एंटी-हेट बिल कहा जा रहा है) को लेकर काफी बहस हो रही है. भारतीय जनता पार्टी इसे एक काला कानून बातकर विरोध कर रही है. बीजेपी नेताओं ने इस कानून को दमनकारी, असंवैधानिक या नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला मान रहे हैं. 

कर्नाटक विधानसभा ने 18 दिसंबर 2025 को यह बिल पास किया.कांग्रेस सरकार का कहना है कि मौजूदा कानून (जैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 153A, 295A और आईटी एक्ट) पर्याप्त नहीं हैं.

यह बिल भारत में पहली बार किसी राज्य में हेट स्पीच कानून के रूप में देखा जा रहा है, जो समाज में नफरत और दुश्मनी रोकने का लक्ष्य रखता है. फिलहाल कानून बनने के लिए इस पर अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर की जरूरत होगी. अल्पसंख्यक समुदायों की ओर इसे इस बिल का समर्थन किया गया है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस तरह के कानूनों का इतना दुरुपयोग होता है कि इसे बनाने के पीछे की मूल भावना ही खत्म हो जाती है.

अगर ये कानून बन जाता है तो किस तरह से इसका दुरुपयोग किया जाएगा

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बिल के कानून बन जाने के बाद व्यापक और अस्पष्ट परिभाषाओं, गैर-जमानती प्रावधानों और सामग्री ब्लॉक करने की शक्तियों के कारण दुरुपयोग की काफी संभावनाएं हैं. यह कानून राजनीतिक प्रतिशोध, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और चयनात्मक प्रवर्तन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. 

1-राजनीतिक विरोधियों को चुप कराना: सत्ताधारी पार्टी (जैसे कांग्रेस) विपक्षी नेताओं (जैसे BJP) की सामान्य चुनावी भाषणों या सोशल मीडिया पोस्ट्स को नफरत फैलाने वाली करार देकर FIR दर्ज कर सकती है. उदाहरण के लिए, कोई नेता जो सरकारी नीतियों की आलोचना करते हुए धर्म-आधारित विभाजन का जिक्र करे तो उसे हेट स्पीच माना जा सकता है, भले ही वह वैध बहस हो. इससे चुनावी मौसम में विरोधी पार्टियों को कमजोर किया जा सकता है, जैसा कि BJP ने दावा किया है कि यह बिल पॉलिटिकल वेंडेटा का हथियार बनेगा. 

2-धार्मिक या सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों का दमन: कोई व्यक्ति जो धार्मिक त्योहारों या राष्ट्रीय नारों (जैसे भारत माता की जय) को प्रचारित करे, उसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुश्मनी मानकर गिरफ्तार किया जा सकता है. पहले से ही IPC 153A के तहत ऐसे मामले हुए हैं जहां भारत माता की जय चैंटिंग पर FIR दर्ज हुई थी, जो बाद में हाई कोर्ट ने रद्द की.इस बिल के साथ, पुलिस बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकती है, जिससे बहुसंख्यक समुदाय की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियां दब सकती हैं.

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3-सोशल मीडिया और जर्नलिस्ट्स पर सेंसरशिप: कोई पत्रकार या सोशल मीडिया यूजर जो सरकारी भ्रष्टाचार या सामाजिक मुद्दों (जैसे जाति-आधारित भेदभाव) पर रिपोर्ट करे, उसे समूहों के बीच दुश्मनी पैदा करने का आरोप लगाकर सामग्री ब्लॉक कर दी जा सकती है. बिल की ब्लॉकिंग पावर से, राज्य अधिकारी बिना अदालती आदेश के पोस्ट्स हटा सकते हैं, जिससे फ्री प्रेस जैसी बातों का वजूद खत्म हो सकता है. एक्टिविस्ट्स ने चिंता जताई है कि यह सेंसरशिप का टूल बनेगा, खासकर जांच पत्रकारिता के खिलाफ. 

4-सरकार के लिए अपने समर्थकों के लिए अलग नजरिया होगा: कानून का इस्तेमाल केवल बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ किया जा सकता है, जबकि अल्पसंख्यक समूहों की ओर से की गई हेट स्पीच को नजरअंदाज किया जाए. उदाहरण के लिए, किसी हिंदू समुदाय की आलोचना करने वाली पोस्ट को अनदेखा किया जाए, लेकिन मुस्लिम या ईसाई समुदाय की आलोचना पर तुरंत कार्रवाई हो. यह राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित हो सकता है, जैसा कि आलोचकों ने कहा है कि बिल कांग्रेस की राजनीतिक कमजोरी से निकला है और सेलेक्टिव मिसयूज हो सकता है. 

5-सामान्य बहसों या व्यंग्य को अपराध बनाना: कोई कॉमेडियन, लेखक या डिबेटर जो सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्य करे (जैसे लिंग या जाति पर), उसे इल-विल पैदा करने का आरोप लगाकर सजा दी जा सकती है. बिल की वेग डेफिनिशन से, यहां तक कि साहित्यिक या कलात्मक अभिव्यक्तियां प्रभावित हो सकती हैं, भले ही छूट का प्रावधान हो.  

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ये उदाहरण दिखाते हैं कि कानून के अच्छे इरादों के बावजूद, इसके दुरुपयोग से लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है. अगर दुरुपयोग होता है, तो इसे अदालतों में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन शुरुआती प्रभाव गंभीर हो सकता है.

बिल के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं 

हेट स्पीच की परिभाषा: कोई भी अभिव्यक्ति (मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक या अन्य माध्यम से) जो किसी व्यक्ति, समूह या संगठन के खिलाफ नफरत, दुश्मनी या बीमार इच्छा पैदा करे, और जो धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान, भाषा या विकलांगता जैसे पूर्वाग्रहों पर आधारित हो. यह सार्वजनिक रूप से प्रसारित होनी चाहिए.

दंड: पहली बार अपराध पर 1 से 7 साल की कैद और 50,000 रुपये जुर्माना का प्रावधान रखा गया है. दोबारा अपराध पर 2 से 10 साल की कैद और 1 लाख रुपये जुर्माना. पीड़ित को मुआवजा भी दिया जा सकता है. संज्ञेय और गैर-जमानती, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है. कार्यकारी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी (DSP स्तर से ऊपर) जांच के बाद शांति बनाए रखने के लिए कार्रवाई कर सकते हैं.

राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को ब्लॉक या हटा सकते हैं. हालांकि यह कानून विज्ञान, साहित्य, कला या धार्मिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर लागू नहीं होगा, अगर वह सार्वजनिक हित में हो. यह बिल भारतीय न्याय संहिता 2023 और आईटी एक्ट 2000 के साथ मिलकर काम करेगा, लेकिन अन्य कानूनों को प्रभावित नहीं करेगा.

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क्यों कुछ लोग इसे काला कानून कह रहे हैं?

विपक्षी भाजपा ने बिल को असंवैधानिक बताया है, दावा किया कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. भाजपा नेताओं का कहना है कि हेट स्पीच की व्यापक परिभाषा से सामान्य आलोचना या व्यंग्य को भी अपराध माना जा सकता है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है.

आलोचकों का तर्क है कि गैर-जमानती प्रावधान से दुरुपयोग हो सकता है, जैसे राजनीतिक विरोधियों को चुप कराना. प्रोग्रेसिव ग्रुप्स ने भी चिंता जताई कि यह प्रोग्रेसिव्स पर ही उल्टा पड़ सकता है, क्योंकि कांग्रेस हिंदुत्व ताकतों से समझौता कर रही है. भाजपा विधायकों ने विधानसभा में विरोध प्रदर्शन किया, इसे फ्री स्पीच पर हमला बताया.

विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आर. अशोक ने कहा कि यह विधेयक पुलिस को हिटलर बनाने जैसा है. संविधान निर्माताओं को जिसकी ज़रूरत नहीं लगी, वही बात गृह मंत्री के मन में आई है. मानसिक पीड़ा और घृणा की भावना के सृजन जैसे शब्दों को हेट स्पीच माना गया है. भाजपा नेता सी. टी. रवि ने विधेयक को राजनीतिक प्रतिशोध का ख़तरनाक हथियार बताते हैं. रवि रोमेश थापर (1950), बृज भूषण (1950), सकाल पेपर्स (1961), केशवानंद भारती (1973) जैसे सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसलों का हवाला देते हुए कहते हैं कि बोलने की स्वातंत्रता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है.

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समर्थक क्यों इसे जरूरी मान रहे हैं?

समर्थकों का कहना है कि हेट स्पीच समाज में हिंसा और विभाजन पैदा करती है, और मौजूदा कानूनों में सजा की दर कम है. कांग्रेस ने इसे सामाजिक सद्भाव बनाए रखने का उपकरण बताया.  क्रिश्चियन लीडर्स ने इसे चर्चों पर हमलों के खिलाफ राहत बताया. X पर कुछ पोस्ट्स में इसे धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के रूप में देखा गया, जैसे क्रिसमस पर हमलों के संदर्भ में यह कानून प्रभावी हो सकता है.तेलंगाना सीएम रेवंत रेड्डी ने भी इसी तरह का बिल लाने का संकेत दिया है.

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