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BJP को बलिया की ही फिक्र थी या और भी सीटों की – आखिर अमित शाह को मोर्चा क्‍यों संभालना पड़ा?

बलिया की लड़ाई ब्राह्मण बनाम ठाकुर तक सिमटी हुई लग रही थी, लेकिन ऐन मौके पर भूमिहार नेता नारद राय ने एंट्री मार दी है - आखिर दौर की वोटिंग से पहले अखिलेश यादव पर इग्नोर करने का तोहमत जड़ते हुए नारद राय ने अमित शाह से मिलकर बीजेपी का दामन थाम लिया है - सवाल ये है कि कितना फर्क पड़ेगा?

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अमित शाह और नारद राय की ये मुलाकात बलिया में क्या गुल खिलाने वाली है? (फोटो: X/NARADRAIBALLIA)
अमित शाह और नारद राय की ये मुलाकात बलिया में क्या गुल खिलाने वाली है? (फोटो: X/NARADRAIBALLIA)

अमित शाह ने बनारस में डेरा डाल रखा है. बनारस यानी वाराणसी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव क्षेत्र भी है, जहां लोकसभा चुनाव के सातवें चरण में वोटिंग होने जा रही है - लेकिन इसलिए नहीं कि वाराणसी सीट को लेकर उनके मन में किसी तरह की आशंका है, बल्कि वहां से वो पूर्वांचल की 13 सीटों की निगरानी कर रहे हैं जिन पर 1 जून को मतदान होने वाला है.

बनारस पर तो बरसों से बीजेपी का दबदबा रहा है, और अब तो वो मोदी की ही सीट है. 40 साल पहले तक बनारस से कांग्रेस का ही सांसद चुना जाता था, और बीस साल पहले यानी 2004 में आखिरी बार ये सीट कांग्रेस के खाते में गई थी.

ये तीसरा मौका है जब कांग्रेस उम्मीदवार अजय राय मोदी का मुकाबला कर रहे हैं, लेकिन इस बार उनको ये काम मजबूरी में करना पड़ रहा है, क्योंकि समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में कांग्रेस को बलिया लोकसभा सीट नहीं मिल पाई. 

सुनने में आया था कि यूपी कांग्रेस अध्यक्ष बलिया से ही चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन अखिलेश यादव की जिद के चलते राहुल गांधी को कुछ करते नहीं बना. और एक बार फिर अजय राय को मोदी के मुकाबले सियायत की सूली पर चढ़ा दिया. 

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लेकिन, कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव के साथ भी अमित शाह ने बलिया में 'खेला' कर दिया है. और इसमें मददगार बने हैं, अखिलेश यादव से पहले से ही खार खाये पिछड़े वर्ग के नेता ओम प्रकाश राजभर - क्योंकि ओम प्रकाश राजभर का भी अपना स्वार्थ पूरा हो रहा है. 

अव्वल तो अमित शाह ने मोदी के वाराणसी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर तक यूपी 13 सीटों की कमान संभाल रखी है, लेकिन खास दिलचस्पी बलिया में नजर आ रही है - और वोटिंग से ऐन पहले स्थानीय स्तर पर समाजवादी पार्टी के एक कद्दावर नेता नारद राय को अपनी रैली के लिए बलिया पहुंचने से पहले ही अपने पाले में ले लिया है. 
  
'जय मुलायम' से लेकर 'जय जय श्री राम' तक

केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी नेता अमित शाह से मिलने के बाद नारद राय ने सोशल साइट X पर अपने मन की जो बात लिखी है, वो पूरी तरह बदली हुई है. करीब तीन घंटे पहले की पोस्ट में नारद राय 'जय मुलायम' बोल रहे हैं, लेकिन आधी रात होने से ठीक पहले 'जय श्रीराम' बोलने लगते हैं.   

27 मई को शाम के 8.41 पर नारद राय लिखते हैं, 'स्व. नेता जी का सेवक रहा हूं... नेता जी ने कहा था यदि अपने लोगों के सम्मान पर आंच आये, तो किसी से भी बगावत कर जाना... लेकिन झुकना मत! नेता जी आपका दिया गुरु मंत्र अंतिम सांस तक याद रखूंगा... और अपने लोगों के लिए सदैव लड़ूंगा! जय बागी बलिया, जय राजनारायण, जय जनेश्वर, जय मुलायम!'

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और उसके बाद 11.55 पर वो लिखते हैं, 'दुनिया में भारत का डंका बजाने वाले माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के यशस्वी गृह मंत्री, और राजनीति के चाणक्य माननीय अमित शाह के संकल्प कि समाज के अंतिम पंक्ति में बसे गरीब को मजबूत करने वाली सोच, और राष्ट्रवादी विचारधारा को मजबूत करुंगा... जय जय श्री राम.'

मोदी और शाह का नेतृत्व स्वीकार करने वाली पोस्ट के साथ नारद राय ने दो तस्वीरें भी शेयर की हैं, जिसमें उनके साथ ओम प्रकाश राजभर भी बगल में बैठे हुए नजर आते हैं. ओम प्रकाश राजभर ने 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन किया था, लेकिन बाद में झगड़ा हो गया - और वो बीजेपी के साथ एनडीए में पहुंच गये. 

सवाल ये है कि नारद राय के अखिलेश यादव को छोड़ कर बीजेपी के पाले में चले जाने में ओम प्रकाश राजभर की कितनी बड़ी भूमिका है? क्या ओम प्रकाश राजभर ने ये सब अखिलेश यादव से बदला लेने के किया है?

सवाल ऐसे कई हैं, और जवाब भी अलग अलग मिल रहे हैं. मुलाकात से पहले बनाये गये माहौल और उसके बाद के घटनाक्रम में सबकी भूमिका है, और सभी का अपना अपना स्वार्थ भी है. ओम प्रकाश राजभर की अखिलेश यादव से अदावत अपनी जगह है, लेकिन बीजेपी के लिए भी उनको कुछ न कुछ करना ही है - और नारद राय का भी अपना स्वार्थ है. 

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वैसे नारद राय के साथ बलिया के ही एक और सपा नेता राम इकबाल सिंह ने भी मुलाकात की है - और वो भी बीजेपी के होकर रह गये हैं. 

अमित शाह से मिलने वालों में श्रीकला सिंह भी शामिल हैं, जो बाहुबली नेता धनंजय सिंह की पत्नी हैं. पहले वो बीजेपी के टिकट पर जौनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ रही थीं, लेकिन मायावती ने उनका टिकट काटकर दूसरा उम्मीदवार उतार दिया - और अब पति-पत्नी दोनों ही बीजेपी के साथ खड़े हो गये हैं, जिसके पीछे अमित शाह की रणनीतिक कामयाबी ही मानी जा रही है. ये भी सुनने में आ रहा है कि धनंजय सिंह बलिया जाकर नीरज शेखर के लिए वोट भी मांगने वाले हैं, क्योंकि वहां की लड़ाई ठाकुर बनाम ब्राह्मण के रूप में देखी जा रही है. 

बलिया में मुकाबला बीजेपी के नीरज शेखर और समाजवादी पार्टी उम्मीदवार सनातन पांडेय के बीच है. सनातन पांडेय को दूसरी बार ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पेश किया जा रहा है, लेकिन उनके पक्ष में एक ही बात जा रही है कि वो 2019 के चुनाव में सिर्फ 15 हजार वोटों के अंतर से हारे थे. 

तब भी मुकाबला ठाकुर बनाम ब्राह्मण ही था, लेकिन सनातन पांडेय को बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त से शिकस्त झेलनी पड़ी थी. बीजेपी ने इस बार वीरेंद्र सिंह का टिकट काट कर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को उम्मीदवार बनाया है, जो बलिया से समाजवादी पार्टी के टिकट एक उपचुनाव सहित दो चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन एक बार बीजेपी के भरत सिंह से लड़ते हुए हार का मुंह भी देखना पड़ा है. हार के बाद समाजवादी पार्टी ने नीरज शेखर को राज्यसभा भेज दिया था, और बाद में बीजेपी ने भी वैसा ही किया. अब एक बार फिर वो बलिया लोकसभा के चुनाव मैदान में हैं - नीरज शेखर के साथ प्लस पॉइंट पूर्व प्रधानमंत्री का बेटा होने के साथ साथ बीजेपी का टिकट भी है. 

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नारद राय के पाला बदलने से बलिया और आसपास की सीटों पर कितना फर्क पड़ेगा?

बलिया से तो कई लोकसभा सीटों की सीमा सटी हुई है, लेकिन नारद राय के राजनीतिक प्रभाव की बात करें तो मुख्य तौर पर गाजीपुर और घोसी पर कुछ न कुछ असर जरूर हो सकता है.

घोसी लोकसभा सीट बीजेपी ने ओमप्रकाश राजभर के हिस्से में दे दी है, जहां से उनके बेटे अनिल राजभर चुनाव मैदान में हैं. और गाजीपुर से बीजेपी के टिकट पर पारसनाथ राय चुनाव लड़ रहे हैं - जिन्हें जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का करीबी बताया जाता है. 

मनोज सिन्हा 2019 के आम चुनाव में अफजाल अंसारी से चुनाव हार गये थे. तब अफजाल अंसारी बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन इस बार अखिलेश यादव ने अफजाल अंसारी को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया है - अफजाल अंसारी माफिया डॉन रहा मुख्तार अंसारी के भाई हैं. 

नारद राय ने समाजवादी पार्टी छोड़ते वक्त खास तौर पर दो बातें कही है. एक तो ये कि अखिलेश यादव ने बलिया दौरे में मंच से नाम न लेकर उनका अपमान किया, और दूसरा उनका ये कहना, 'मैं अंसारी परिवार का दरबारी होकर के राजनीति न कभी किया हूं न करूंगा, मैं किसी का दरबारी नहीं बन सकता... मैं जनता का दरबारी हूं.'

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लेकिन वहां के लोगों का कहना है कि ये तो बहाना भर है. असल बात तो ये है कि नारद राय हों या राम इकबाल सिंह जैसे नेता, सब के सब बीजेपी में जाने के लिए बहाना खोज रहे थे - क्योंकि, समाजवादी पार्टी या इंडिया गठबंधन में उनको अपना भविष्य नही दिखाई दे रहा था. 

बलिया के सीनियर पत्रकार कृष्णकांत पाठक बताते हैं कि जिले के कई नेता अभी कतार में हैं, और मौका मिलते ही बीजेपी का चोला ओढ़ लेंगे. ऐसे लोगों में नगर पालिका के चेयरमैन रह चुके एक नेता का भी नाम लिया जा रहा है. 

नारद राय के बीजेपी में चले जाने से समाजवादी पार्टी की सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा क्या? इस सवाल पर अलग अलग जवाब मिल रहे हैं. बैरिया के सीनियर पत्रकार वीरेंद्रनाथ मिश्र की नजर में नारद राय के बीजेपी में जाने से कोई खास प्रभाव नहीं पड़ने वाला है, लेकिन कृष्णकांत पाठक इस बात से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखते.

कृष्णकांत पाठक का मानना है कि नारद राय के व्यक्तिगत संबंधों का बीजेपी को फायदा मिल सकता है. भूमिहारों के नेता होने के साथ साथ नारद राय के यादव वोटर के बीच भी काफी पैठ है. कृष्णकांत पाठक बताते हैं कि नारद राय के मुलायम सिंह यादव परिवार से गहरे संबंध रहे हैं, और शिवपाल यादव तो उनके यहां विशेष मौकों पर आते भी रहे हैं.

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लेकिन शिवपाल यादव का सपा में प्रभाव खत्म होने के बाद से नारद राय की भी पूछ घट गई थी. जब अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच टकराव चल रहा था, तो नारद राय को मुलायम सिंह का नाम लेते हुए शिवपाल यादव के साथ ही खड़ा देखा गया था. 

बलिया लोकसभा के दो विधानसभा क्षेत्र गाजीपुर जिले में आते हैं. जहूराबाद और मोहम्मदाबाद. जहूराबाद ओमप्रकाश राजभर का इलाका माना जाता है, और मोहम्मदाबाद का गाजीपुर लोकसभा सीट पर सीधा प्रभाव देखा जाता है. 

नारद राय के मुंह से अंसारी परिवार का जिक्र एक तरह से गाजीपुर के भूमिहार वोटर को बीजेपी के साथ खड़े हो जाने का मैसेज है - और ये मैसेज घोसी तक पहुंचाने की कोशिश है. घोसी में समाजवादी पार्टी ने भूमिमार नेता राजीव राय को टिकट दिया है. 

बलिया के लोगों के मन में क्या चल रहा है?

पत्रकार वीरेंद्रनाथ मिश्र का कहना है कि बैरिया और आस पास के इलाकों का हाल तो यही है कि सिर्फ ठाकुर और यादव वोटर मुखर हैं, बाकी चुप हैं. बातचीत में ये भी समझ में आया कि बलिया में साइलेंट वोटर ब्राह्मण बन गया है, भले ही बाकी जगह महिलाओं को ही साइलेंट वोटर माना जाता हो. 

नीरज शेखर या सनातन पांडेय - इस सवाल का जवाब देने से आम वोटर बच रहा है, सिवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के. वीरेंद्रनाथ मिश्रा के मुताबिक, ठाकुर और यादव वोटर खुल कर नाम ले रहे हैं, लेकिन ब्राह्मण चुप हैं. 

ब्राह्मण वोटर का सवाल इसलिए उठ रहा है कि वो सनातन पांडेय के साथ हैं, या नीरज शेखर के साथ. कृष्णकांत पाठक कहते हैं, उम्मीदवार अपनी जगह हैं, लेकिन वोट का फैसला लोग राजनीतिक दलों के प्रति निष्ठा के हिसाब से ले रहे हैं. और ऐसे लोगों के लिए वोट या तो बीजेपी को देना है, या फिर समाजवादी पार्टी को. 

कृष्णकांत पाठक और वीरेंद्र नाथ मिश्र दोनों ही मानते हैं कि ब्राह्मण वोट बंट सकता है, क्योंकि जो ब्राह्मण बीजेपी से नाराज है वो सनातन पांडेय को अपना नेता मान कर चल रहा है, लेकिन जिसकी ऐसी कोई नाराजगी नहीं है, वो सनातन पांडेय में अखिलेश यादव का ही अक्स देख रहा है.

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