116 दिन और हर दिन मानो एक सदी जैसा. हर सांस के साथ उम्मीद और हर रात डर. छिंदवाड़ा जिले के जहरीले कफ सिरप कांड में मौत से जंग लड़ने वाला 5 वर्षीय कुणाल यदुवंशी आखिरकार घर लौट आया है. लेकिन यह वापसी अधूरी खुशी लेकर आई है. कुणाल की आंखों की रोशनी जा चुकी है. एक मामूली बुखार के इलाज में दी गई दवा ने मासूम की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी.
यह कहानी सिर्फ कुणाल की नहीं, बल्कि उस लापरवाह सिस्टम की है, जहां जहरीली दवाओं ने कई परिवारों की खुशियां छीन लीं और कई घरों के चिराग बुझा दिए.
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बुखार से शुरू हुआ दर्दनाक सफर
दरअसल, परासिया विकासखंड के ग्राम जाटाछापर निवासी टिंकू यदुवंशी के बेटे कुणाल को 24 अगस्त को बुखार आया था. परिजन उसे परासिया में डॉ. प्रवीण सोनी के पास ले गए, जहां उसे कोल्ड्रिफ कफ सिरप दिया गया. इसके बाद बच्चे की हालत बिगड़ने लगी. बुखार कम होने के बजाय उल्टियां शुरू हो गईं और पेट फूलने लगा.
27 अगस्त को दोबारा डॉक्टर को दिखाया गया, लेकिन तब भी कोई सुधार नहीं हुआ. 30 अगस्त को छिंदवाड़ा में डॉ. नाहर ने जांच के बाद बताया कि बच्चे की किडनी खराब हो चुकी है और तुरंत नागपुर ले जाने की जरूरत है.
नागपुर में जिंदगी और मौत की जंग
कुणाल को नागपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 11–12 दिन तक इलाज चला. इस दौरान उसे 7 से 8 बार डायलिसिस करानी पड़ी. इलाज का खर्च लगातार बढ़ता गया और आर्थिक हालत जवाब देने लगी. मजबूरी में 11 सितंबर को कुणाल को नागपुर एम्स में भर्ती कराया गया.
एम्स में लगभग साढ़े तीन महीने तक इलाज चला. आखिरकार 23 दिसंबर को कुणाल को अस्पताल से छुट्टी मिली. परिवार के लिए यह राहत की खबर थी, लेकिन बच्चे की हालत अब भी पूरी तरह ठीक नहीं है.
दिमाग पर असर, आंखों की रोशनी चली गई
कुणाल के पिता टिंकू यदुवंशी ने बताया कि जहरीले कफ सिरप का असर बच्चे के दिमाग पर पड़ा. डॉक्टरों के अनुसार ब्रेन में अटैक की वजह से आंखों की नसें सिकुड़ गईं और आंखों का पानी सूख गया, जिससे उसकी रोशनी चली गई. पैरों की नसों में भी अभी समस्या बनी हुई है.
टिंकू ने बताया कि एम्स में उनके साथ 7 अन्य बच्चे भर्ती थे. इनमें से 11 दिन के भीतर 6 बच्चों की मौत हो गई. उन्होंने कहा कि हर दिन एक साल जैसा लगता था.
कर्ज, गहने और भैंस बेचकर बचाई जान
इलाज के दौरान परिवार को भारी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा. टिंकू को रिश्तेदारों से कर्ज लेना पड़ा. पत्नी, मां और भाभी के जेवर बिके, यहां तक कि दो भैंस भी बेचनी पड़ीं. करीब 8 लाख रुपये इलाज में खर्च हुए. सरकार की ओर से 4 लाख 25 हजार रुपये की सहायता राशि मिली.
इलाज के चलते टिंकू की निजी नौकरी भी छूट गई. फिलहाल वे खेती-किसानी कर परिवार का गुजारा कर रहे हैं.
गांव में खुशी, लेकिन अधूरी...
कुणाल के घर लौटने से गांव और परिवार में खुशी है. पिता ने कहा कि अगर बेटे की आंखों की रोशनी लौट आती तो यह खुशी कई गुना बढ़ जाती. उन्होंने बेटे के पूरी तरह स्वस्थ होने पर गांव के शिव मंदिर में भंडारे का संकल्प लिया था, जो अभी पूरा नहीं हो सका.
गौरतलब है कि छिंदवाड़ा जिले में जहरीला कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से अब तक 22 बच्चों की मौत हो चुकी है. इस मामले में SIT ने 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया है और जांच अभी जारी है.