मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जहरीली Coldrif कफ सिरप से जान गंवाने वाले 9 मासूमों में से एक उसैद (3 साल, 11 महीने) के घर मातम पसरा है. 10 अक्टूबर को उसका जन्मदिन आने वाला था, लेकिन उससे पहले ही परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. मृतक बेटे की मां अफसाना ने आजतक के खास इंटरव्यू में अपने दर्द और सिस्टम की विफलता को बयां किया...
सवाल: आपके बेटे को जो कफ सिरप दी गई, क्या वह डॉक्टर के सुझाव पर थी? उस समय आपके बेटे को क्या हुआ था?
जवाब: जी, हमने डॉक्टर के सुझाव पर ही उसे कफ सिरप दी थी.
सवाल: जब आप अपने बेटे को डॉक्टर के पास ले गईं, तब उसे किस तरह की बीमारी थी?
जवाब: जी, मेरे बेटे को कोई गंभीर बीमारी नहीं थी, सिर्फ बुखार था. इसलिए मैं उसे डॉक्टर के पास ले गई थी. डॉक्टर ने Coldrif कफ सिरप दी थी. मैंने उसे तीन-चार दिन तक दी. बुखार तो उतर गया, लेकिन उसके हाथ-पैर में सूजन आ गई और पेशाब रुक गया. डॉक्टर ने कहा कि उसकी हालत गंभीर है और उसे छिंदवाड़ा के सरकारी अस्पताल ले जाने को कहा. सरकारी अस्पताल में इलाज समझ नहीं आया, तो हम उसे नागपुर ले गए.
सवाल: नागपुर में आपने किसी बड़े डॉक्टर को दिखाया? उन्होंने क्या कहा?
जवाब: जी, नागपुर में टेस्ट करवाए गए, जिसमें किडनी का टेस्ट और सोनोग्राफी भी हुई. पता चला कि उसकी दोनों किडनियां खराब हो चुकी हैं. पहले मेरे बेटे को ऐसी कोई बीमारी नहीं थी. वह बहुत स्वस्थ बच्चा था और उसे बुखार भी बहुत कम होता था.
सवाल: छिंदवाड़ा में डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन जिस कंपनी ने यह कफ सिरप बनाई, उस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. आप इस मामले में न्याय के लिए क्या चाहती हैं?
जवाब: जी, सिर्फ मेरा बेटा ही नहीं, 14-16 बच्चों की मौत इस सिरप की वजह से हुई है. मैं चाहती हूं कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले. यह दवा नहीं, जहर था, जो हमने अपने हाथों से अपने बच्चों को दिया.
सवाल: आपका बेटे का जन्मदिन 10 अक्टूबर को था. आप देश और जनता से क्या कहना चाहेंगी, क्योंकि आपने अपने हाथों से उसे सिरप दी, जो जहर निकली?
जवाब: यह जहर ही था. मैं अपने बच्चे को रोज दे रही थी, मुझे नहीं पता था कि यह जहर है. अगर मुझे पता होता, तो मैं शायद न देती. कोई नहीं जानता था कि दवा के नाम पर जहर दिया जा रहा है.
सवाल: आप अपने आप को, डॉक्टर को, दवा कंपनी को या पूरे अस्पताल सिस्टम को दोषी मानती हैं?
जवाब: सभी दोषी हैं. इसमें कोई सफाई नहीं है. सबसे बड़ा दोषी तो दवा बनाने वाली कंपनी है. उन्हें कड़ी सजा मिलनी चाहिए. हमने अपने मासूम बच्चों को इतने जतन से पाला, और यह सब हो गया.
सवाल: क्या आपका सिस्टम पर से विश्वास उठ गया है?
जवाब: जी, बिल्कुल. स्वास्थ्य विभाग क्या कर रहा था? सिस्टम पर से विश्वास उठ गया है.
सवाल: आपके बेटे को पहली बार बुखार कब आया और उसकी मौत तक कितना समय बीता? इस दौरान अस्पतालों के चक्कर में कितने दिन लगे?
जवाब: जी, उसे 25 अगस्त को पहली बार बुखार आया था. 31 अगस्त को हम उसे डॉक्टर के पास ले गए. फिर 6 सितंबर को हम नागपुर ले गए. कुल मिलाकर एक से दो हफ्ते लग गए.
सवाल: क्या कोई डॉक्टर शुरू में यह नहीं बता सका कि आपके बेटे को असल में क्या हुआ? क्या छिंदवाड़ा के डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए?
जवाब: जी, उन्होंने हाथ खड़े कर दिए. रात को बोतल चढ़ाकर बच्चे को बेड पर छोड़ दिया. वह पूरी रात तड़पता रहा. सुबह 12 बजे तक कोई ध्यान नहीं दिया. हमें वहां का इलाज समझ नहीं आया, इसलिए हम उसे नागपुर ले गए.
सवाल: आपकी आवाज सरकार और निर्णय लेने वालों तक पहुंचनी चाहिए. अगर ऐसी जहरीली दवाएं दी जाएंगी, तो क्या होगा? एक मां के तौर पर आपकी पीड़ा को हम समझते हैं. अंत में आप क्या कहना चाहेंगी?
जवाब: लापरवाही हर तरफ से हुई है. हमारे बच्चे चले गए. हमने इतनी मेहनत से इलाज कराया, दौड़-भाग की, फिर भी हमारा बच्चा नहीं बचा. यह पूरे सिस्टम की गलती है.