World Poetry Day 2024: 21 मार्च को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाया जाता है. साल 1999 में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने अपने 30वें जनरल कॉन्फ्रेंस में वर्ल्ड पोएट्री डे की शुरुआत की थी. इसके पीछे का उद्देश्य लोगों के दिमाग के क्रिएटिव हिस्से को सामने लाने के लिए पोएट्री की यूनीक कैपेसिटी की पहचान करना है. वर्ल्ड पोएट्री डे का मकसद दुनिया की तमाम तरह की ज़ुबानों और तहज़ीबों को बचाकर रखना और किसी की क़लम से पोएट्री के रूप में निकले उसके व्यक्तिगत हुनर को अपनाना है. ऐसे मौके पर पढ़िए वो कविताएं, जो हमारी ज़िंदगी को नई राहें दिखाने का काम करती हैं.
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है,
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है.
- वसीम बरेलवी
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा,
इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा.
- अमीर क़ज़लबाश
कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन,
फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर.
- निदा फ़ाज़ली
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया.
- मजरूह सुल्तानपुरी
कश्तियाँ सब की किनारे पे पहुँच जाती हैं,
नाख़ुदा जिन का नहीं उन का ख़ुदा होता है.
- अमीर मीनाई
रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़,
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है.
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
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वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छांह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ.
- हिरवंश राय बच्चन
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है.
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है.
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.
- सोहनलाल द्विवेदी
नहीं विघ्न-बाधाओं को हम, स्वयं बुलाने जाते हैं,
फिर भी यदि वे आ जायें तो, कभी नहीं घबड़ाते हैं.
मेरे मत में तो विपदाएँ, हैं प्राकृतिक परीक्षाएँ,
उनसे वही डरें, कच्ची हों, जिनकी शिक्षा-दीक्षाएं.
- मैथिलीशरण गुप्त
सच है, विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है,
सूरमा नहीं विचलित होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते,
विघ्नों को गले लगाते हैं,
कांटों में राह बनाते हैं.
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोंक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाव उखड़,
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है.
- रामधारी सिंह दिनकर
यह हार एक विराम है,
जीवन महासंग्राम है.
तिल-तिल मिटूंगा पर दया की भीख मैं लूंगा नहीं
वरदान मांगूंगा नहीं.
चाहे हृदय को ताप दो,
चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्त्तव्य पथ से किन्तु भागूंगा नहीं,
वरदान मांगूंगा नहीं.
- शिवमंगल सिंह सुमन