आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने वाली साहित्यकार और नारीवादी रमणिका गुप्ता का नई दिल्ली में निधन हो गया. वे 89 साल की थीं. रमणिका अंत समय तक समाज कार्य और साहित्य में सक्रिय थीं. वे सामाजिक सरोकारों की पत्रिका 'युद्धरत आम आदमी' का सम्पादन करती थीं. रमणिका गुप्ता के निधन से समाजकर्मी और साहित्यकारों में शोक की लहर है.
22 अप्रैल 1930 को पंजाब में जन्मीं रमणिका के पति सिविल सर्विस में थे. उनके पति का पहले ही निधन हो चुका था. उनकी दो बेटियां और एक बेटा है. रमणिका के करीबी सूत्रों ने बताया कि उनके सभी बच्चे इस वक्त विदेश में हैं.
सामजिक आंदोलनों के लिए विशेष पहचान बनाने वाली रमणिका विधायक भी रहीं. उन्होंने बिहार विधानपरिषद और विधानसभा में विधायक के रूप में कार्य किया. रमणिका ने ट्रेड युनियन लीडर के तौर पर भी काम किया. वे कई आंदोलनों का चेहरा मानी जाती हैं. उन्होंने कई किताबें भी लिखीं. उनकी आत्मकथा हादसे और आपहुदरी काफी मशहूर है.
जाने माने आलोचक मैनेजर पांडे ने आपहुदरी को एक दिलचस्प और दिलकश आत्मकथा बताया था. मैनेजर पांडे ने कहा था कि ये एक स्त्री की आत्मकथा है जिसमें समय का इतिहास, विभाजन और बिहार के राजनेताओं के चेहरे की असलियत दर्ज है.