पेशावर में मासूम बच्चों के कत्लेआम के बाद हर कोई ग़मजदा है. ऐसे में हमारे सहयोगी पंकज शर्मा ने इंसानियत के गुनहगारों के नाम यह कविता लिख भेजी है.
तुम हैवान हो ...डरपोक हो ....मक्कार हो
तुम इस्लाम के ही नहीं..नस्ले आदम के गुनहगार हो
तुमने बंदूक उठाके..निशाना जो लगाया होगा
यकीनन अल्लाह-ओ-अकबर का नारा जे़हन में आया होगा
तुमने देखी न होंगी मासूम की आंखें...निशाने पे सर था
तेरी गोली से जो मरा वो कोई अल्लाह का अकबर था
बात मुल्कों की नहीं...सरहद की नहीं...मज़हब की नहीं
बात ईश्वर की नहीं....अल्लाह की नहीं...रब की नहीं
बात इतनी सी है.....ये खून ही अब जागेगा
आज बहता हुआ आंसू......कल हिसाब मांगेगा
लहू सूखेगा नहीं.....मां का दूध माफ ना होगा
अल्लाह के गुनहार बता...तेरा कहां इंसाफ होगा ?
जो देख सकता है तो देख....मासूम जनाज़ों को
जो देख सकता है तो देख....मौत के रिवाजों को
याद रख जिस दिन ....इंसान संभल जाएगा
लहू..लहू का फर्क दिलों से मिट जाएगा
तेरी तंज़ीम का हर हर्फ भी मिट जाएगा
तेरी बंदूक का लोहा भी पिघल जाएगा
तुझपे..तेरी जात पे...लानत हो ....दुत्कार हो

यह कविता हमारे सहयोगी पंकज शर्मा ने लिखी है. अगर आप भी अपनी कोई कविता आज तक पर छपवाना चाहते हैं तो उसे booksaajtak@gmail.com पर भेजें.