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साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10: 'यादें' श्रेणी में कस्तूरबा, बहुगुणा, टाटा, बिरला पर लिखी पुस्तकों के अलावा और किनके नाम

साल 2022 में 'साहित्य तकः बुक कैफे टॉप 10' पुस्तकों की कड़ी में आज 'यादें' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकों की बात. इनमें कस्तूरबा, बहुगुणा, टाटा, बिरला, दीनदयाल उपाध्याय के अलावा और किन पर लिखी पुस्तकें शामिल हैं. देखें, पूरी सूची- पाएं जानकारी

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2022
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भारतीय मीडिया जगत में जब 'पुस्तक' चर्चाओं के लिए जगह छीजती जा रही थी, तब इंडिया टुडे समूह के साहित्य के प्रति समर्पित डिजिटल चैनल 'साहित्य तक' ने हर दिन किताबों के लिए देना शुरू किया. इसके लिए एक खास कार्यक्रम 'बुक कैफे' की शुरुआत की गई...इस कार्यक्रम में 'एक दिन एक किताब' के तहत हर दिन किसी पुस्तक की चर्चा होती है. पूरे साल इस कार्यक्रम में पढ़ी गई पुस्तकों में से 'बुक कैफे टॉप 10' की यह शृंखला वर्ष के अंत में होती है. इसी क्रम में आज 'युवा-कलम' श्रेणी की पुस्तकों की बात की जा रही है.
साल 2021 की जनवरी में शुरू हुए 'बुक कैफे' को दर्शकों का भरपूर प्यार तो मिला ही, भारतीय साहित्य जगत ने भी उसे खूब सराहा. तब हमने कहा था- एक ही जगह बाजार में आई नई किताबों की जानकारी मिल जाए, तो किताबें पढ़ने के शौकीनों के लिए इससे लाजवाब बात क्या हो सकती है? अगर आपको भी है किताबें पढ़ने का शौक, और उनके बारे में है जानने की चाहत, तो आपके लिए सबसे अच्छी जगह है साहित्य तक का 'बुक कैफे'. 
हमारा लक्ष्य इन शब्दों में साफ दिख रहा था- "आखर, जो छपकर हो जाते हैं अमर... जो पहुंचते हैं आपके पास किताबों की शक्ल में...जिन्हें पढ़ आप हमेशा कुछ न कुछ पाते हैं, गुजरते हैं नए भाव लोक, कथा लोक, चिंतन और विचारों के प्रवाह में. पढ़ते हैं, कविता, नज़्म, ग़ज़ल, निबंध, राजनीति, इतिहास, उपन्यास या फिर ज्ञान-विज्ञान... जिनसे पाते हैं जानकारी दुनिया-जहान की और करते हैं छपे आखरों के साथ ही एक यात्रा अपने अंदर की. साहित्य तक के द्वारा 'बुक कैफे' में हम आपकी इसी रुचि में सहायता करने की एक कोशिश कर रहे हैं."
हमें खुशी है कि हमारे इस अभियान में प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों, पुस्तक प्रेमियों का बेपनाह प्यार मिला. इसी वजह से हमने शुरू में पुस्तक चर्चा के इस साप्ताहिक क्रम को 'एक दिन, एक किताब' के तहत दैनिक उत्सव में बदल दिया. साल 2021 में ही हमने 'साहित्य तक बुक कैफे टॉप 10' की शृंखला भी शुरू की. उस साल हमने केवल अनुवाद, कथेतर, कहानी, उपन्यास, कविता श्रेणी में टॉप 10 पुस्तकें चुनी थीं.
साल 2022 में हमें लेखकों, प्रकाशकों और पुस्तक प्रेमियों से हज़ारों की संख्या में पुस्तकें प्राप्त हुईं. पुस्तक प्रेमियों का दबाव अधिक था और हमारे लिए सभी पुस्तकों पर चर्चा मुश्किल थी, इसलिए 2022 की मई में हम 'बुक कैफ़े' की इस कड़ी में 'किताबें मिली' नामक कार्यक्रम जोड़ने के लिए बाध्य हो गए. इस शृंखला में हम पाठकों को प्रकाशकों से प्राप्त पुस्तकों की सूचना देते हैं.
इनके अलावा आपके प्रिय लेखकों और प्रेरक शख्सियतों से उनके जीवन-कर्म पर आधारित संवाद कार्यक्रम 'बातें-मुलाकातें' और किसी चर्चित कृति पर उसके लेखक से चर्चा का कार्यक्रम 'शब्द-रथी' भी 'बुक कैफे' की पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने वाली कड़ी का ही एक हिस्सा है.
साल 2022 के कुछ ही दिन शेष बचे हैं, तब हम एक बार फिर 'साहित्य तक: बुक कैफे टॉप 10' की चर्चा के साथ उपस्थित हैं. इस साल कुल 17 श्रेणियों में टॉप 10 पुस्तकें चुनी गई हैं. साहित्य तक किसी भी रूप में इन्हें कोई रैंकिंग करार नहीं दे रहा. संभव है कुछ बेहतरीन पुस्तकें हम तक पहुंची ही न हों, या कुछ पुस्तकों की चर्चा रह गई हो. पर 'बुक कैफे' में शामिल अपनी विधा की चुनी हुई ये टॉप 10 पुस्तकें अवश्य हैं. 
पुस्तक संस्कृति को बढ़ावा देने की 'साहित्य तक' की कोशिशों के प्रति सहयोग देने के लिए आप सभी का आभार.
साहित्य तक 'बुक कैफे-टॉप 10' साल 2022 की 'यादें' श्रेणी की श्रेष्ठ पुस्तकें हैं ये
* 'The Lost Diary of Kastur, My Ba- Tushar Gandhi', महात्मा गांधी पर न जाने कितने ही लेख लिखे गए, कितनी ही किताबें प्रकाशित हुईं, मगर साए की तरह हर कदम उनके साथ रहने वाली उनकी पत्नी कस्तूरबा पर बहुत कम ही देखने और पढ़ने को मिलता है. बापू के जीवन में इतनी अहम किरदार निभाने वाली कस्तूरबा को फिर क्यों उस तरह याद नहीं किया जाता? ऐसे ही सवालों के उत्तर के साथ प्रपौत्र तुषार गांधी  The Lost Diary of Kastur, My Ba के साथ आते हैं. यह पुस्तक कस्तूरबा की डायरी में दर्ज समय, भावनाओं और व्यक्तियों की वह कहानी दुनिया के सामने रखती है, जिन्हें बा ने अपनी तरह से देखा. इस पुस्तक में तुषार बा पर अब तक प्रचलित धारणाओं से अलग तथ्यों के साथ सामने आते हैं. प्रकाशक: HarperCollins India
* 'हेमवती नन्दन बहुगुणा- भारतीय जनचेतना के संवाहक', रीता बहुगुणा जोशी और डॉ. रामनरेश त्रिपाठी- हेमवती नन्दन बहुगुणा भारतीय राजनीति का ऐसा नाम हैं, जो लगभग पांच दशक तक भारत के राजनीतिक क्षितिज पर छाये रहे. पराजय से कभी हताश न होने वाले बहुगुणा हमेशा सत्य के पथ के राही रहे. यह पुस्तक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी इस राजनेता के जीवन को प्रामाणिकता के साथ दिखाने की कोशिश करती है, ताकि भावी पीढ़ी बहुगुणा के समय की राजनीति, समाज, इतिहास और उनमें व्याप्त अन्तर्विरोधों से अवगत कहो सके. प्रकाशक- वाणी प्रकाशन
* 'रतन टाटा- एक प्रकाश स्तंभ', शांतनु नायडू, भारतीय उद्योग के महानायक रतन टाटा के सामाजिक एवं मानवीय कार्यों की चर्चा हर तरफ़ होती है, लेकिन उन्हें करीब से जानने और समझने का मौका बहुत कम ही लोगों को मिल पाता है. शांतनु को यह मौका मिला. यह पुस्तक एक नौजवान और जीवन के आठ दशक पूरे कर चुके बुज़ुर्ग के बीच अनूठे रिश्ते का ईमानदार, सहज-सरल वृत्तान्त है, जो भारतीयों के दिल में बसे महानायक के जीवन का एक अलहदा पहलू सामने लाता है. यह रतन टाटा की कुत्तों से हमदर्दी की भी दास्तान है तो शांतनु के यादों की भी. मूल रूप से अंग्रेज़ी में  'I come upon a lighthouse' नाम से प्रकाशित इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद अखिलेश अवस्थी ने किया है. इसमें संजना देसाई का चित्रांकन भी है. प्रकाशक- मंजुल पब्लिशिंग हाउस
* 'युगपुरुष घनश्याम दास बिरला', मेधा एम कुदेशिया, यह जीडी बिड़ला पर एक महत्त्वपूर्ण शोधपरक पुस्तक है, जिसकी जानकारी और कथा प्रवाह  इसे एक पठनीय कृति बनाता है. किसी दौर में देश के इस सबसे बड़े औद्योगिक घराने के शुरुआती काल में देश के हालात कैसे थे, व्यवसाय का माहौल, उद्योगों की स्थिति, राजनीति और उद्योगघरानों के संबंध के अलावा उस दौर में क्या कठिनाइयां रही, जैसे तमाम मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है. बीसवीं सदी के भारत के अध्येताओं के लिए भी यह एक अनिवार्य पुस्तक है. चाहे विषय आर्थिक हो या राजनीतिक या फिर सांस्कृतिक, यह पुस्तक इनकी जानकारी के साथ घनश्याम दास बिरला को समझने में सहायक है. प्रकाशक-  वाणी प्रकाशन
* 'स्टीफेन हॉकिंग: अनन्त-यात्री', चंद्रमणि सिंह, यह महान वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग का वैज्ञानिक जीवनवृत्त है, जिसमें उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ-साथ उनके जीवन के छुए-अनछुए पहलुओं की चर्चा की गयी है. हॉकिंग वैज्ञानिक होने के साथ चिंतक भी थे. उनको चिंता थी कि धरती संकट में है, और धरती का सबसे बड़ा दुश्मन खुद मनुष्य है, क्योंकि उसे नाभिकीय युद्ध, कृत्रिम रूप से अनुवांशिक-परिवर्तन से विकसित किये गए वायरसों, वैश्विक तापमान वृद्धि, और कई ऐसे हालातों से जूझना है. हॉकिंग मानते थे कि मानव ही अपनी मुसीबतों का असली ज़िम्मेदार है. प्रकाशक- राजकमल प्रकाशन
* 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय: द्रष्टा, दृष्टि और दर्शन', हृदयनारायण दीक्षित, पंडित दीनदयाल उपाध्याय  ने भारत की प्रकृति और संस्कृति -आधारित राजनीति का अधिष्ठान खड़ा किया है. दीनदयाल उपाध्याय एक हिंदुत्ववादी विचारक और भारतीय राजनितिज्ञ थे. उन्होंने हिन्दू शब्द को धर्म के तौर पर नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति के रूप में परिभाषित किया है. इस दौरान ये भारतीय राजनीति में अहम किरदार निभाते रहे. उनकी इसी प्रासंगिकता पर हृदयनारायण दीक्षित ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर यह ऐसी पुस्तक लिखी है जो उन्हें समझने, जानने और जीने के लिए पर्याप्त है. पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर तमाम पुस्तकें हैं. सभी पुस्तकों में उनका जीवन दर्शन है. इस पुस्तक में अर्थनीति व दर्शन को समझने के लिए ऋग्वेद से लेकर शंकराचार्य तक जारी प्रवाह का विवेचन है. यह पुस्तक पाठकों के लिए गागर में सागर की तरह है. प्रकाशक- अनामिका प्रकाशन
* 'Scars of 1947: Real Partition Stories', राजीव शुक्ला, भारत की आज़ादी के 75 साल बाद जब हम पीछे झांकते हैं तो काफ़ी कुछ बदला सा लगता है मगर बंटवारे के समय को याद करके कहीं न कहीं आज भी सबकी रूह कांप जाती है. यह एक ऐसा बंटवारा था, जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी. यह ऐसा विस्थापन था, जो सोच से भी परे था. राजीव शुक्ला की यह पुस्तक विभाजन की वास्तविक कहानियों के माध्यम से मानव आत्मा के प्रेम, दया और दृढ़ता की प्रेरक कहानियों को कैद किया है. यह ऐसे लोगों की कहानियां हैं, जो आगे चलकर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उद्योगपति, चिकित्सा शोधकर्ता और बहुत कुछ बने. विभाजन के बाद के दशकों में उन विस्थापित परिवारों ने कैसे अपने जीवन के खरोंच से अपना नवनिर्माण किया और एक तरह के पराये परिवेश में स्वयं को बचाकर एक आदर्श कायम किया, अपना जीवन बनाया, उनकी यह कहानियां याद रखने लायक हैं. और उन्हीं कहानियों पर राजीव ने यह बेहद अहम पुस्तक लिखी है, जो बंटवारों की अनेक परतें खोलती हैं. प्रकाशक- पेंगुइन वाइकिंग
* 'भील विद्रोह', सुभाष चन्द्र कुशवाहा, यह पुस्तक संपूर्ण मध्यभारत, खानदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के भील क्षेत्रों के विद्रोहों को नए दस्तावेजों के आधार पर संग्रहित करने का एक अनूठा प्रयास है. इतना ही नहीं नए दस्तावेजों के आधार पर टंट्या भील एवं उनके सहयोगियों के जीवन संघर्षों को भी सामने लाने का प्रयास किया गया है. महात्मा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी आंदोलनों के प्रारंभ हो जाने के बाद, 1925 तक उन्होंने लगातार संघर्ष किया, अपनी कुर्बानी दी. इस पुस्तक में संपूर्ण मध्यभारत, खानदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के भील क्षेत्रों के विद्रोहों को नए दस्तावेजों के आधार पर संग्रहित करने का यह एक अनोखा प्रयास है. प्रकाशक- हिन्द युग्म
* 'एक सौ दलित आत्मकथाएं', मोहनदास नैमिशराय, यह पुस्तक दलित जीवन का सम्यक् और सर्वांगपूर्ण चित्र प्रस्तुत करती है जिसमें पारिवारिक प्रेम, विशेषकर बच्चों के लिए मां के संघर्ष का ख़ूबसूरत चित्रण है जो कि इस आत्मकथा को दलित साहित्य में विशिष्टता प्रदान करता है. मोहनदास एक ऐसे लेखक हैं जो गहन पीड़ा की अनुभूति को पचाकर समाज को एक दलित की आंखों से देखने का अवसर प्रदान करता है. यह उनका अपना अनुभव रहा है, जिसे पढ़कर पाठकों का मन उद्वेलित होता है. दलित समाज की स्थिति को और करीब से जानने एवं समझने में यह पुस्तक सहायक है. प्रकाशक- वाणी प्रकाशन
* 'लोकराज के लोकनायक', राकेश कुमार, उस दौर में कई जन-आंदोलनों के प्रणेता रहे जय प्रकाश नारायण पर यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण पुस्तक है. यह पुस्तक स्वतंत्रता आंदोलन में जेपी के किरदार को तो बयां करती ही है साथ ही साथ आज़ादी के समय का वो दृश्य भी दिखाती हैं, जिसमें जेपी जन नेता के रूप में सबसे आगे दिखते थे. इससे इतर, यह पुस्तक जय प्रकाश नारायण के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को बारीकी से दिखाती है. प्रकाशक- राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
सभी लेखकों, प्रकाशकों, अनुवादकों को बधाई!

 

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