हिंदुओं के एक भगवान हैं. इसके साथ उनके 33 करोड़ देवता भी हैं. पुरुष देवता, स्त्री देवता, निजी देवता, पारिवारिक देवता, गृह देवता, ग्राम देवता, समय और जगह के देवता, जाति और पेशे विशेष के देवता, वे देवता जो पेड़ों पर रहते हैं, जानवरों में, खनिजों में, ज्यामितीय आकृतियों में, मानव निर्मित वस्तुओं में रहने वाले देवता. फिर बहुत सारे दानव भी हैं. पर कोई राक्षस नहीं.
नई ज़मीन तलाशती, भारत के सबसे लोकप्रिय मिथकों के जानकार डॉ. देवदत्त पटनायक की किताब 'मिथक=मिथ्या' जीवन और मृत्यु, प्रकृति और संस्कृति, उत्कृष्टता और संभावना के बीच विरोधाभासों के जवाब खोजती है. वे अपनी अनोखी लेखन शैली, दृष्टांतों और चित्रों के जरिए हिंदू कहानियों को प्रस्तुत करते हैं और हिंदू प्रतीकों और रीति-रिवाजों की गुत्थियां सुलझाते हैं. इसके जरिए हम जान सकते हैं कि क्यों कौरव स्वर्ग में पहुंचे और (युधिष्ठिर को छोड़ कर) सभी पांडव नर्क में; सीता का त्याग करने वाले राम क्यों आदर्श राजा समझे गए; रक्त पीने वाली काली दूध देने वाली गौरी का दूसरा रूप कैसे बनीं; और शिव ने ब्रह्म का पांचवां सिर क्यों धड़ से अलग किया.
डॉक्टर देवदत्त पटनायक की चर्चित किताब मिथक बराबर मिथ्या का हिंदी में अनुवाद किया है आलोक कुमार ने. मूलतः अंग्रेजी में प्रकाशित इस किताब की अब तक 70 हजार प्रतियां बिक चुकी हैं. अब पेंगुइन ने इसे हिंदी में प्रकाशित करने का फैसला किया है. इस किताब के कुछ अंश हम खास आपके लिए यहां रख रहे हैं.
अजेय दुर्गा: देवदत्त पटनायक
आदि-माया-शक्ति की प्रतीक दुर्गा अजेय हैं. वह एक ही समय में दुल्हन भी हैं और योद्धा भी. वे एक रूप में घर स्थापित करती हैं, सुख देती हैं, बच्चे पैदा करती हैं और भोजन उपलब्ध कराती हैं. दूसरे रूप में वह रणक्षेत्र में जाती हैं और हत्याएं करती हैं. जो उनकी शरण में आता है उसकी रक्षा करती हैं और जो चुनौती देता है उसका संहार करती हैं. वह शेर को भी शांत कर उसे सवारी बना लेती हैं. वह अपने केश कभी नहीं बांधती.
महिषासुर वध
असुरों के राजा महिषासुर ने ब्रह्मा से एक वरदान लेने में कामयाबी हासिल की थी, जिसके बाद उन्हें पेड़ पौधे, जानवर, आदमी, असुर या भगवान में से कोई भी मार नहीं सकता था. शक्तिशाली महिषासुर ने देवों को नभ मंडल से भगा दिया. वे अपने जनक ब्रह्मा के पास गए. ब्रह्मा ने उन्हें विष्णु और विष्णु ने शिव के पास भेजा. शिव ने निर्देश दिया कि सारे देव अपनी शक्तियां बाहर निकालें और एकत्रित करके शक्ति का निर्माण करें.
देवों ने आग की लपटों के रूप में अपनी शक्तियां बाहर निकालीं जिनमें से आठ हाथों वाली योद्धा देवी दुर्गा प्रकट हुईं जिनकी सवारी शेर थी. महिष उनके प्यार में फंस गए और उन्हें अपनी पत्नी बनाना चाहते थे. महिष ने अपने दूतों को इस संदेश के साथ उनके पास भेजा. दुर्गा ने जवाब दिया कि लड़ाई में अगर वह उन्हें हरा दे तभी शादी हो पाएगी. महिष ने कई लड़ाके उन्हें लाने के लिए भेजे लेकिन वे नाकाम रहे. देवी ने एक-एक कर सबको मार दिया. अंत में महिष ने उन पर धावा बोल दिया. इसके लिए वह जानवरों के रूप धारण कर रहा था. सिंह, हाथी, भैंस बनकर वह हमला कर रहा था. नौ रातों तक चली भीषण लड़ाई के बाद दुर्गा ने त्रिशूल से मार कर उसकी इहलीला समाप्त कर दी. वह इसलिए सफल रहीं कि महिष ने महिला से जीवन रक्षा का वरदान नहीं लिया था. (मार्कंडेय पुराण)
असुर और देव
महिषासुर की मौत हो या किसी और असुर की मौत, इसके बाद की शांति अधिक अरसे तक नहीं चलती थी. जल्द ही कोई नया असुर उत्पन्न होता था और जीत हार का चक्र चलता रहा. ऐसा लगता है लड़ाई शांति की प्रतिक्रिया थी और इसकी उल्टी प्रक्रिया भी चलती थी.
देवों और असुरों की बदलती किस्मत में एक तरह का लय है. कोई भी हमेशा के लिए पराजित नहीं है. दोनों बराबरी करते दिखते हैं. ये संकेत देता है कि संसार के अस्तित्व के लिए असुर भी आवश्यक हैं. उनके बिना कोई संतुलन नहीं रहेगा.
ईश्वर कभी असुर को नष्ट नहीं करते हैं. असुर को सिर्फ उसकी जगह दिखा दी जाती है. हिंदू जगत में असुर धरती के नीचे पाताल लोक में बने शहर हिरण्यपुर में रहते हैं. देव आकाश के ऊपर बने शहर अमरावती में रहते हैं. दोनों लोकों के बीच की जगह ही लड़ाई का मैदान है. नीचे बालि की कहानी है जो दयालु था पर धरती के ऊपर उसकी उपस्थिति से तीनों लोकों का संतुलन बिगड़ गया. व्यवस्था तभी बहाल हुई जब शिव ने उसे उसकी जगह दिखा दी यानी धरती के नीचे भेज दिया.
असुरों के राजा बालि
विशाल रूप धारण कर तीनों लोकों पर विजय पताका फहराने वाले विष्णु त्रिविक्रम कहलाए. पाताल लोक में भेज दिए गए असुरों के राजा बालि हर साल एक बार फसल कटने समय ऊपर आते हैं. केरल में उनके ऊपर आने को ओणम पर्व के तौर पर मनाया जाता है. वहीं उत्तर भारत में इस अवसर पर दिवाली मनाते हैं. दिलचस्प रूप से फसलों से जुड़े हर पर्व का संबंध असुरों की मौत से है. दशहरा दुर्गा के हाथों महिषासुर वध का प्रतीक है और दिवाली कृष्ण के हाथों नरक और त्रिविक्रम के हाथों बालि की हार से संबंधित है. असुरों की मौत का फसलों की कटाई के पर्वों से संबंध कोई ऐसे ही नहीं है. संजीवनी विद्या के पालक के तौर पर असुर धरती की उर्वरता बहाल करते रहते हैं. और असुर को मारने के बाद और फसल काटने से ही धरा की देन को अपने हिस्से में किया जा सकता है.
पाताल लोक और फसलों की कटाई से असुरों के संबंध, बालि की दयालुता और ये तथ्य कि उसका शहर सोने से बना हुआ है ये संकेत देता है कि असुर धन के संरक्षक हैं. सभी धन चाहे वो पौधा हो या जानवर या खनिज सबकी उत्पत्ति धरती के नीचे से ही है. यहां तक कि लक्ष्मी के बारे में भी कहा जाता है कि वो पाताल में रहती हैं.
देव असुरों के पाताल में रखे धन को जारी करते हैं. सूर्य भगवान अपनी गर्मी और प्रकाश के सहारे पौधों को ऊपर आकाश की ओर बढ़ने में मदद करते हैं. चंद्र भगवान समुद्र की तरंगों पर नियंत्रण रखते हैं जिससे मछली मारने और नमक निकालने में मदद मिलती है. आकाश के देवता इंद्र मानसून के बादल भेजते हैं जिससे बारिश होती है. हवा के देवता वायु पहाड़ों से नदियों को नीचे उतारने में मदद करते हैं. आग के देवता अग्नि पत्थरों को पिघलाते हैं जिससे धातु निकलता है.
असुरों को उस स्थिति में अधिक ताकतवर माना जाता है जब सूर्य दक्षिणायन होकर कर्क राशि से मकर राशि की ओर रुख करता है. तब दिन छोटे और रातें सर्द हो जाती हैं. जब चांद छोटा होने लगता है तब भी असुरों की ताकत बढ़ती है. असुर रात को अधिक शक्तिशाली होते हैं. देवों के साथ असुर दिन, महीने और साल का चक्र पूरा करते हैं.
शिव और शक्ति
मौसम आते हैं, जाते हैं. संस्कृति का उत्थान और पतन होता है. मूल्य बदल जाते हैं. मानक परिवर्तनीय हैं. सांसारिक सत्य शर्तों से जुड़े दिखते हैं. यह स्थान, समय और लोगों के विचारों के सापेक्षिक है. शिव वो भगवान हैं जो इन सांसारिक सत्यताओं में यकीन नहीं रखते. वह उस सच्चाई को खोजते हैं जो स्थायी है, पूर्ण है और बिना शर्त है. इसलिए वह दुनिया की ओर से अपनी आंखें बंद रखते हैं. वह यादों, इच्छाओं, विचारों और अहम को अपने चित्त में स्थान देने से मना करते हैं. चित्त की शुद्धता ही ज्ञानोदय की ओर ले जाती है.
ज्ञानोदय के साथ आता है आनंद, शांतिपूर्ण वरदान. ये वरदान सभी इच्छाओं के ऊपर है. महसूस करने और प्रतिक्रिया देने की कोई ललक नहीं है. शरीर या दुनिया की भी कोई जरूरत नहीं है. कोई क्रिया, प्रतिक्रिया या जवाबदेही नहीं है. कर्म नहीं है, इसलिए संसार नहीं है. विश्व का अस्तित्व नहीं है. जो भी अस्तित्व में है वो है आत्मा जो खुद के लिए सृजित एकांत में है. इसलिए शिव विश्व के संहारक भगवान हैं.
एक, एक ऐसी संख्या है जो निष्प्राण है, ऊसर है. जब सिर्फ एक ही होता है तब न कोई प्यार होता है, न चाहत न संगम. किसी भी रिश्ते को बनाने के लिए कम से कम दो की जरूरत होती है. दूसरे के बिना खुद का कोई वजूद नहीं है. सत या सत्य को महसूस करने के लिए माया की जरूरत है; माया का मतलब शर्तों के साथ सांसारिक सच्चाइयां. आत्मा के मौन को समझने के लिए ऊर्जा की बेचैनी की जरूरत है. देवी माया हैं जो सभी भ्रमों को आत्मसात करती हैं. वह शक्ति हैं, ऊर्जा का व्यक्तिपरक रूप. वह आदि हैं. मतलब उतनी प्राचीन और सीमाहीन जितनी आत्मा.
समय, स्थान और फैसलों के आधार पर वह उतनी ही जंगली और डरावनी हो सकती हैं जितनी काली. पर दूसरी ओर उतनी ही दयालु और प्यारी हो सकती हैं जैसी गौरी हैं. वह दुनिया हैं जिससे शिव ने अपने को दूर रखा है. वह उनके दिल में प्यार लाने की कोशिश करेगी, आंखें खोलने पर मजबूर करेंगी और सांसारिक जीवन में लाने की कोशिश होगी. प्यार दैवीय अंतरतम का संपर्क दैवीय बाहरी दुनिया से कराएगा. ये ललक और संगम सभी चीजों के अस्तित्व को वैधता प्रदान करेगा.
(पेंगुइन हिंदी से प्रकाशित डॉ. देवदत्त पटनायक की किताब मिथक=मिथ्या के कुछ चुने हुए अंश. प्रकाशक की अनुमति से प्रकाशित)
लेखक परिचय
डॉक्टर देवदत्त पटनायक ने मेडिकल साइंस में शिक्षा-दीक्षा हासिल की है. हालांकि पेशे से वो मार्केटिंग मैनेजर हैं और रुचि से पौराणिक कथाकार. आपने मुंबई यूनिवर्सिटी में तुलनात्मक मिथोलॉजी के कोर्स में सर्वश्रेष्ठ स्थान हासिल किया. आधुनिक भारत में धार्मिक कथाओं, चिह्नों और विधि विधानों पर व्याख्यान देने के लिए आप चर्चित हैं.