लोग उन्हें वन मैन राइटिंग फैक्टरी, टाइपराइटर, सूचना मार्तण्ड, इनसाइक्लोपीडिया और न जाने किस-किस नाम से पुकारते थे. जी हां, हम बात कर रहे हैं प्रभाकर माचवे की. 'तार सप्तक' के कवि प्रभाकर माचवे का जन्म 26 दिसंबर 1917 को एक मराठी परिवार में ग्वालियर में हुआ था. विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से स्नातक, दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने 'हिंदी-मराठी निर्गुण संत काव्य' विषय पर आगरा विश्वविद्यालय से शोध पूरा किया. उन्होंने अपने लेखन की यात्रा छात्र जीवन से ही प्रारम्भ कर दी थी.
माचवे विद्यार्थी जीवन से ही कविताएं लिखने लगे थे. उन्होंने कविताएं, उपन्यास, कहानियां, निबंध, संस्मरण, शब्द-चित्र के अलावा लगभग सभी विधाओं में लेखन कार्य किया है. उनकी पहली कविता 1934 में माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा संपादित 'कर्मवीर' में छपी. 1935 में प्रेमचंद ने 'हंस' में उनकी पहली कहानी प्रकाशित की.
इसी तरह निराला द्वारा 1936 में 'सुधा' में उनका पहला लेख छापा. 1937 में उन्होंने जैनेंद्र के दार्शनिक विचारों वाले निबंधों का संपादन किया जो 'जैनेंद्र के विचार' नाम से प्रकाशित हुआ और 1938 में अज्ञेय ने 'विशाल भारत' में उनकी दो इंप्रेशनिस्ट कविताएं छापीं. प्रभाकर माचवे द्वारा लिखित, अनूदित, संपादित पुस्तकों की संख्या सवा सौ से अधिक है. 'स्वप्न भंग', 'अनुक्षण' और 'विश्वकर्मा' उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं. उन्होंने हिंदी, मराठी और अंग्रेज़ी में समान अधिकार से लिखा है.
वह बहुभाषाविद् थे. भारत की बहुत सी भाषाएं समझ और बोल लेते थे. अपने इस भाषा-ज्ञान का उपयोग उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए किया. अपने करियर के प्रारंभिक वर्षों में ही डॉ माचवे 1948-54 से ऑल इंडिया रेडियो के इलाहाबाद और नागपुर केंद्र से जुड़े. उनकी मेधा का ही यह प्रभाव था कि देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन द्वारा उन्हें विशेष तौर पर साहित्य चर्चाओं के लिए आमंत्रित किया गया था. 1954 में द नेशनल एकेडमी ऑफ लेटर्स यानी साहित्य अकादमी की स्थापना के लिए उन्होंने अपने विशाल ज्ञान, कुशाग्र बुद्धि, साहित्यिक अध्ययन का उपयोग किया. इस दिशा में विद्वानों से उनके संबंधों ने अकादमी की बुनियाद इतनी मजबूत की कि यह आज देश की प्रतिनिधि साहित्य संस्था के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठापित है.
माचवे जी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में भारतीय साहित्य, धर्म और संस्कृति, दर्शन और गांधीवाद का न केवल अध्यापन किया बल्कि उसमें निहित विचारों का प्रसार किया. माचवे जी को जर्मनी, रूस, श्रीलंका, मॉरीशस, जापान और थाईलैंड आदि जैसे देशों के लिए अतिथि व्याख्यान के लिए भी आमंत्रित किया गया था.
चित्रकला में भी उनकी रुचि थी और उन्होंने इसकी शिक्षा ली थी. उन्होंने इंदौर जे जे स्कूल में पेंटिंग सीखा था. वह एम.एफ. हुसैन और बेंद्रे के समकालीन थे. वह एक निपुण चित्रकार और स्केचर थे. उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
साहित्य तक के बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने प्रभाकर माचवे पर प्रकाशित महत्त्वपूर्ण कृति 'प्रभाकर माचवे रचना-संचयन' चर्चा की है. इस कृति में माचवे की चुनिंदा कविताओं, कहानियों, निबन्धों का संचयन किया गया है. इन रचनाओं का चयन और संपादन राजेंद्र उपाध्याय ने किया है.
'प्रभाकर माचवे रचना-संचयन' का चयन और संपादन राजेंद्र उपाध्याय ने, प्रकाशन साहित्य अकादमी ने किया है. पुस्तक में कुल 412 पृष्ठ हैं और इस का मूल्य 300 रुपए है.