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आत्‍मकथा नहीं, संघर्ष और सीख की दास्‍तान है 'भाग मिल्‍खा भाग'

'भाग मिल्‍खा भाग' और 'मिल्‍खा सिंह' इन दोनों ही नाम को परिचय की जरूरत नहीं है. मिल्‍खा सिंह को हम वर्षों से 'फ्लार्इंग सिख' के नाम से जानते हैं. 2013 में आई फिल्‍म 'भाग मिल्‍खा भाग' में हम उनके संघर्ष की कहानी भी जान चुके हैं. लेकिन 152 पन्‍नों की इस आत्‍मकथा में मिल्‍खा सिंह के जीवन से जुड़े कई ऐसे तथ्‍य और घटनाओं का वर्णन है जिससे प्रेरणा मिलती है.

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'भाग मिल्‍खा भाग' का कवर पेज
'भाग मिल्‍खा भाग' का कवर पेज

किताब का नाम- भाग मिल्‍खा भाग
लेखक- मिल्‍खा सिंह
सह लेखन- सोनिया संवाल्‍का
प्रकाशक- प्रभात प्रकाशन
मूल्‍य- 125 रुपये (पेपरबैक)

'भाग मिल्‍खा भाग' और 'मिल्‍खा सिंह' इन दोनों ही नाम को परिचय की जरूरत नहीं है. मिल्‍खा सिंह को हम वर्षों से 'फ्लार्इंग सिख' के नाम से जानते हैं. 2013 में आई फिल्‍म 'भाग मिल्‍खा भाग' में हम उनके संघर्ष की कहानी भी जान चुके हैं. ऐसे में पहला पहला सवाल यह कि जब हम फिल्‍म में मिल्‍खा सिंह की कहानी से रूबरू हो चुके हैं तो फिर यह आत्‍मकथा क्‍यों? 152 पन्‍नों में ऐसा क्‍या है जो हमें इसे पढ़ने पर मजबूर करे और यह कि क्‍या मिल्‍खा सिंह के संघर्ष और सफलता की कहानी महज 152 पन्‍नों में पूरी हो जाती है?

दरअसल, सवाल कई थे और सवालों के जवाब के लिए कि‍ताब को पढ़ना भी जरूरी था. तो किताब के पन्‍नों को पलटने की प्रक्रिया शुरू हुई और जो पहली लाइनें मुझे दिखीं उनमें लिखा था- मिटा दे हस्‍ती को अगर कोई मर्तबा चाहे, कि दाना खाक में मिलकर गुल-ए-गुलजार होता है.

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यह किताब की शुरुआत में भूमिका से भी पहले अंकित की गई पंक्तियां हैं. लेकिन इन पंक्तियों को पुस्‍तक में सबसे पहले प्रकाशित क्‍यों किया गया, इसका जवाब किताब के अंतिम और 152वें पन्‍ने में मिलता है. मिल्‍खा सिंह ने किताब के 20वें अध्‍याय 'उपसंहार' में लिखा है, 'मैं न तो कोई लेखक हूं और न ही रचयिता बल्कि एक जुनूनी खिलाड़ी हूं, जिसने इस किताब में अपना दिल खोलकर रख दिया है.' यकीन मानिए तो किताब को पढ़ने के क्रम आपको भी यही एहसास होता है.

असल में यह किताब मिल्‍खा सिंह के एहसास, उनके विचार और उनके यह विचार कैसे बनें इसी की बानगी है. यह वाकई उनका दिल है, क्‍योंकि इसमें किसी सधे हुए लेखक की दार्शनिक लेखनी नहीं बल्कि एक आम इंसान के सफलता को प्राप्‍त करने की दास्‍तान है. किताब पढ़ने के क्रम में कभी यह नहीं लगता कि आप किसी महान हस्‍ती की आत्‍मकथा पढ़ रहे हैं. पन्‍नों को पलटना ऐसा है जैसे मिल्‍खा सिंह सामने बैठे हैं और विशुद्ध देसी अंदाज में आपको जीवन का फलसफा सुना रहे हैं. अपने दिल का हाल सामने रख रहे हैं.

किताब में नया क्‍या है
फिल्‍म 'भाग मिल्‍खा भाग' और आत्‍मकथा 'भाग मिल्‍खा भाग' का आधार भले ही एक हो, लेकिन अंदाज और रूपरेखा अलग-अलग हैं. मसलन किताब में ऐसी कई बातें या कहानियां हैं जो फिल्‍म में नहीं दिखाई गई हैं और किताब पढ़कर यह जानकारी मिलती है कि फिल्‍म में ऐसे कई तथ्‍य थे जो असल में सिर्फ मनोरंजन के पुट के तौर पर इस्‍तेमाल किए गए थे.

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उदाहरण के तौर पर मिल्‍खा सिंह की जो प्रेम कहानी फिल्‍म में दिखाई गई वह पूरी तरह सही नहीं है. फिल्‍म में सिंह की शादी और जीवनसाथी के प्रति विचारों का जिक्र नहीं है. न ही उन घटनाओं का जिक्र है जब वह अपनी जीवनसंगिनी निम्‍मी से मिलते हैं.

इसके अलावा पाकिस्‍तान से भारत और उनका व उनके परिवार खासकर बहन को लेकर जो कुछ फिल्‍म में दिखाया गया है उसमें एक जल्‍दबाजी है, जबकि किताब तथ्‍यात्‍मक ढंग से आपको सच्‍चाई और तब की परिस्थितियों से अवगत करवाती है.

दिल की बात
मिल्‍खा सिंह ने अपने जीवन को 20 अध्‍याय में बांटा है. इनमें कई अध्‍याय ऐसे हैं, जिसमें उन्‍होंने वाकई दिल खोलकर रख दिया है. कहने का अर्थ यह है इनमें उन्‍होंने वह बातें कही हैं जो उन्‍होंने महसूस किया या जो उनके विचार हैं. इसमें खुशी है, गम है, गुस्‍सा है, नाराजगी है और आशा है. फिर बात चाहे नेहरू जी से मुलाकात के पल की हो या खेल प्रशासन और खेल में राजनीति की. मिल्‍खा सिंह ने किताब के जरिए बेबाकी से अपनी राय रखी है. उन्‍होंने किताब में स्‍पष्‍ट लिखा है कि खेल का जिस तरह राजनीतिकरण हो रहा वह खेल और खिलाडि़यों को गलत दिशा में ले जा रहा है. वह लिखते हैं कि कैसे खेल संगठनों की बैठक में उन्‍हें पसंद नहीं किया जाता रहा है और कैसे अध्‍यक्ष जैसे पद पर ऐसे लोग बैठ जाते हैं, जिनका खेल से कभी नाता ही नहीं रहा.

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क्‍यों पढ़ा जाए
अगर आप रूपहले पर्दे से इतर सही मायने में मिल्‍खा सिंह से प्रेरित हैं तो यह किताब आपके लिए है. अगर आपको आत्‍मकथा पढ़ने का शौक है तो यह किताब आपके लिए है. अगर आप एक दार्शनिक आत्‍मकथा की बजाय एक सरल, सपाट लेकिन तथ्‍यात्‍मक लेखन पढ़ना चाहते हैं तो यह किताब आपके लिए है. अगर आपकी खेल में दिलचस्‍पी है तो यह किताब आपको प्रेरित कर सकती है. अगर आपके पास पढ़ने के लिए कम समय है और एक अच्‍छी किताब पढ़ना चाहते हैं तो यह 152 पन्‍ने आपके लिए हैं.

...और अंत में
अंत में किताब की वो अंतिम पंक्तियां लिखना चाहूंगा, जिससे मिल्‍खा सिंह ने अपनी आत्‍म‍कथा को समाप्‍त किया है. वह लिखते हैं- 'एक खिलाड़ी के रूप में जीवन कठिन है. लेकिन निश्चित रूप से ऐसा समय आता है, जब आप इसे छोड़ने या शॉर्टकट्स लेने का प्रयास करने की ओर आकर्षित होते हैं. याद रखें कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता. यदि शीर्ष तक पहुंचना है तो अपने अस्तित्‍व को समाप्‍त कर दो, क्‍योंकि अनाज के दाने को अंकुरित होने के लिए धूल में मिलना होता है और फिर फूल बनकर खिलना होता है.'

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