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बुक कैफे में 'अक्स' समय, समाज और साहित्यिकों का अनूठा वृतांत | अखिलेश की पुस्तक पर जय प्रकाश पाण्डेय

अखिलेश हिंदी साहित्य के ऐसे लेखक हैं जिन्हें, जिसने भी पढ़ा, जितनी बार भी पढ़ा, उनका मुरीद हुए बिना नहीं रहा और उनके लेखन में बार-बार डूबता रहा...साहित्य तक के बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' में सुनिए विख्यात कथाकार, संपादक, संस्मरणकार अखिलेश की नयी कृति 'अक्सः समय, समाज और साहित्यिकों का अनूठा वृतांत' पर वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय की राय

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साहित्य तक बुक कैफे में अखिलेश की पुस्तक 'अक्स' की समीक्षा
साहित्य तक बुक कैफे में अखिलेश की पुस्तक 'अक्स' की समीक्षा

विख्यात कथाकार, संपादक, संस्मरणकार अखिलेश की नयी कृति 'अक्स' समय, समाज और साहित्यिकों का अनूठा वृतांत' सेतु प्रकाशन से प्रकाशित है. अखिलेश हिंदी साहित्य के ऐसे लेखक हैं जिन्हें, जिसने भी पढ़ा, जितनी बार भी पढ़ा, उनका मुरीद हुए बिना नहीं रहा और उनके लेखन में बार-बार डूबता रहा. अखिलेश का लेखन साहित्य की विभिन्न विधाओं को स्पर्श करता है. वे बड़ी सहजता से बहुत गहरी बात कह जाते हैं. 
'अक्स' में वे अपनी स्मृतियों को 11 अध्यायों में दर्ज करते हैं, जिनमें उनका लेखकीय कौशल और अनुभव बेहद प्रभावपूर्ण ढंग से अपने समय और साहित्यकारों के साथ सामने आता है. इनमें अखिलेश का बचपन, उनका गांव, जीवन में आये लोग, दोस्त, शिक्षक सभी शामिल हैं. वे यहां प्रतीक, बिंब, भाषा कौशल और चिंतन की जगह बतकही के अंदाज में पाठकों से मुखातिब होते हैं, और इन अध्यायों के साथ सामने आते हैं- 'स्मृतियां काल के घमंड को तोड़ती हैं', 'पिता, मां और मृत्यु', 'जालंधर से दिल्ली वाया इलाहाबाद', 'सूखे ताल मोरनी पिहके', 'अब तक गीत जौन अनगावल', 'भूगोल की कला', 'छठे घर में शनि', 'एक सतत एंग्री मैन', 'जय भीम, लाल सलाम', 'एक तरफ राग था सामने विराग था' और 'समय ही दूसरे समय को मृत्यु देता है'.
मुक्तिबोध की कविता 'अंधेरे में' की इन पंक्तियों -
ओ मेरे आदर्शवादी मन
ओ मेरे सिद्धांतवादी मन
अब तक क्या किया?
जीवन क्या जिया!!! से गुजरने की तरह वे प्रथम अध्याय, जिसका नाम है 'स्मृतियां काल के घमंड को तोड़ती हैं' में 'बड़े होकर क्या बनोगे?' जैसे हर बच्चे के स्कूली दिनों में उठने वाले सवाल के साथ आते हैं और अपने बचपन के सपनों, विचार और कल्पना की उड़ान को वर्तमान से जोड़ देते हैं. और फिर उनका गांव उनसे इस अंदाज में बतियाने लगता है-   
"...और वह देखो, मेरा गांव, सुल्तानपुर जनपद का गांव मलिकपुर नोनरा, मुझसे नाराज हो रहा है: तुमने बिसरा ही दिया मुझको. बचपन में छुट्टियों में तुम आते थे. भूल गये उन आम वृक्षों को; जामुन, बेर, रसभरी, करौन्दे के पेड़ों को. हमारे तालाब और पेड़ों को. तुमने बहुत दिनों तक यहाँ का अन्न खाया है; यहां के कूप का पानी पिया है, खेले-कूदे हो, झूला झूले हो, मेला घूमे हो लेकिन तुम हृदयहीन निकले और मुझको मेरे हाल पर छोड़ गये..."
'जालन्धर से दिल्ली वाया इलाहाबाद' अध्याय में अखिलेश की कथा का ताना-बाना कथाकार, संपादक रवींद्र कालिया और लेखिका ममता कालिया की गाथा के साथ चलता है.
ऐसे ही 'सूखे ताल मोरनी पिंहके' अध्याय में वह सुल्तानपुर जनपद के कवि और अपने शिक्षक मानबहादुर सिंह को समर्पित करते हैं. कविता संग्रह 'बीड़ी बुझने के करीब' का यह रचनाकार कितना मानवीय होता है कि आपस में उन विरोधियों से भी आत्मीय संबंध निभाता चलता है, जिनसे मुकदमा चल रहा हो. देखें यह किस्सा-
… सुल्तानपुर वह सबसे ज़्यादा मुक़दमों के सिलसिले में आते थे. ये मुक़दमे अमूमन उनके गांव के पट्टीदारों, पड़ोसियों से खेतीबाड़ी के छोटे-मोटे विवादों के कारण थे जो दशकों से चल रहे थे. यदाकदा मानबहादुर जी मुझको दीवानी कचहरी लेकर जाते और अपने विरोधी से हंस-हंस कर बातें करने लगते, वह भी बराबर का साथ देता. मानबहादुर जी उससे प्रश्न करते- 'का हो केस की अगली तारीख क्या पड़ी?' विरोधी उत्तर देता- 'चाचा सोलह तारीख.' मानबहादुर जी कहते- 'हम जरा इनके, अखिलेश जी के साथ जा रहे हैं, शाम को बस में पहले पहुंच कर मेरे लिए भी सीट छेकाए रहना.' वादी या प्रतिवादी जो भी रहा हो, आश्वस्त करता- 'चाचा फिकर न करो, तुम बस पहुंचो. हे चाचा लो अमरूद खा लो... 
इस पुस्तक में उन लोगों का जिक्र है जो या तो लेखक के करीबी रहे या जिन्हें लेखक ने करीब से देखा. लोगों को याद करते हुए लेखक ने जितनी रोशनी उन चरित्रों पर डालनी चाही है वह तमाम रोशनी अलग-अलग कोण में बिखरकर खुद लेखक के किरदार को कई शेड्स में सामने लाती है; और मानवीय रूपों और संबंधों का एक ऐसा कोलाज बनता है जिसके सामने होने पर पढ़नेवाला खुद को कई स्मृतियों में आवाजाही करते हुए देख सकता है. 
'अब तक गीत जौन अनगावल' में वे राजनेता, विद्वान, चिंतक देवी प्रसाद त्रिपाठी, जो अपनों के बीच डीपीटी के नाम से लोकप्रिय थे, की स्मृतियों के साथ सामने आते हैं. डीपीटी अपने हर जानने वाले के मन में साहित्यिक जिज्ञासु, बौद्धिक, राजनीतिज्ञ से परे एक मददगार दोस्त के रूप में अब भी जीवंत हैं, अखिलेश यहां अपनी यादों में उनके साथ न्याय करते हैं और उनकी मददगार छवि को कई रूपों, घटनाओं से सामने लाते हैं. 'छठे घर में शनि' अखिलेश के उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान में नौकरी करने, संस्थान की कार्यप्रणाली, 'अतएव' पत्रिका और संस्थान के उपाध्यक्ष, परिपूर्णानन्द से जुड़े संस्मरणों के साथ सामने आती है. 'जय भीम-लाल सलाम' में मुद्राराक्षस उनके स्मृति सहचर हैं, तो 'एक तरफ राग था सामने विराग था' में श्रीलाल शुक्ल सामने आते हैं.
अखिलेश की यह कृति संस्मरण पर आधारित पुस्तक है. जिसे अनेक महत्त्वपूर्ण लेखकों को केंद्र में रखकर लिखा गया है. यह रचनाकार अखिलेश को क़रीब चार दशकों की रचनायात्रा में समय-समय पर मिले अनुभवों के साथ ही उनकी अभिव्यक्ति और शब्द सामर्थ्य का भी 'अक्स' है, जिसमें बीते चालीस साल के साहित्य जगत् का दिलचस्प किस्सा बड़े अनगढ़ अंदाज में सहज ही सामने आता है. जैसा कि आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी लिखते हैं, 'अक्स के संस्मरणों के चरित्र, अखिलेश की जीवनकथा में घुल-मिलकर उजागर होते हैं.अखिलेश का कथाकार इन स्मृति लेखों में मेरे विचार से नयी ऊंचाई पाता है. उनके गद्य में, उनके इन संस्मरणात्मक लेखन के वाक्य में अवधी की रचनात्मकता का जादू भरा है." वाकई अखिलेश की कथेतर गद्य की यह पुस्तक 'अक्स' संस्मरण विधा की  तमाम कसौटियों को बड़ी सहजता और कुशलता से न सिर्फ़ पार करती है बल्कि इस कसौटी के मानकों को भी कुछ ऊपर उठा देती है. 
'अक्स' के पृष्ठ आवरण की यह बात इस पुस्तक के बारे में काफी कुछ कहती है-
...अक्स किसका? लेखक के समय का? समाज का? या उन किरदारों का जिनकी ज़िंदगी की टकसाल में इस किताब के शब्द ढले हैं? ख़ुद अखिलेश के अपने जीवन का अक्स तो नहीं? वास्तव में ये सभी यहां इस कदर घुले-मिले हैं कि अलगाना असम्भव है. एक को छुओ तो अन्य के अर्थ झरने लगते हैं. दरअसल, 'अक्स' में वक़्त की कहानी कुछ यों उभरती है कि लेखक की आत्मकथा के साथ लेखक की रामकहानी में वक़्त भी उभरने लगता है. अखिलेश ने सबको अद्भुत ढंग से आख्यान की तरह रचा है. अतः कोई चाहे, 'अक्स' को उपन्यास की तरह भी पढ़ सकता है. 
आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने अखिलेश की इसी संस्मरण पुस्तक 'अक्स- समय, समाज और साहित्यिकों का अनूठा वृतांत' की चर्चा की है. इस पुस्तक में कुल 312 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य है 399 रुपए.
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# अखिलेश की पुस्तक 'अक्स', समय, समाज और साहित्यिकों का अनूठा वृतांत में कुल 312 पृष्ठ हैं. प्रकाशक हैं सेतु प्रकाशन. मूल्य है 399 रुपए.

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