बहुमुखी प्रतिभा के धनी मंगलेश डबराल का जन्म 16 मई, 1948 को उत्तराखंड में टिहरी ज़िले के गांव काफलपानी में हुआ था. वह एक अच्छे लेखक, संपादक व कवि रहे हैं. उनकी चर्चित प्रकाशित कृतियों में कविता संग्रह- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, ‘नये युग में शत्रु’; गद्य संग्रह- ‘एक बार आयोवा’, ‘लेखक की रोटी’, ‘कवि का अकेलापन’ और साक्षात्कारों का संकलन शामिल है.
डबराल ने विश्व कवियों बेर्टोल्ट ब्रेश्ट, हांस माग्नुस ऐंत्सेंसबर्गर, यानिस रित्सोस, जि़्बग्नीयेव हेर्बेत, तादेऊष रूज़ेविच, पाब्लो नेरूदा, एर्नेस्तो कार्देनाल, डोरा गाबे आदि की कविताओं का अंग्रेज़ी से अनुवाद तो किया ही बांग्ला कवि नबारुण भट्टाचार्य के संग्रह ‘यह मृत्यु उपत्यका नहीं है मेरा देश’ के सह-अनुवादक भी रहे. इसके अलावा डबराल ने नागार्जुन, निर्मल वर्मा, महाश्वेता देवी, यू आर अनंतमूर्ति, गुरदयाल सिंह, कुर्रतुल-ऐन हैदर जैसे साहित्यकारों पर वृत्तचित्रों के लिए पटकथा लेखन भी किया है. समाज, संगीत, सिनेमा और कला पर समीक्षात्मक लेखन किया और भारतीय भाषाओं के अलावा उनकी कविताओं के अनुवाद अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, फ्रांसीसी, स्पानी, इतालवी, पुर्तगाली, बल्गारी, पोल्स्की आदि विदेशी भाषाओं के कई संकलनों और पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं.
मरिओला ओप्ऱेदी द्वारा उनके कविता-संग्रह ‘आवाज़ भी एक जगह है’ का इतालवी अनुवाद ‘अंके ला वोचे ऐ उन लुओगो’ नाम से प्रकाशित हुआ और अंग्रेज़ी अनुवादों का एक चयन ‘दिस नंबर दज़ नॉट एग्ज़िस्ट’ के नाम से. वह ओम् प्रकाश स्मृति सम्मान, शमशेर सम्मान, पहल सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, हिंदी अकादेमी दिल्ली का साहित्यकार सम्मान और कुमार विकल स्मृति सम्मान से सम्मानित हैं. उन्होंने आयोवा विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय लेखन कार्यक्रम, जर्मनी के लाइपज़िग पुस्तक मेले, रोतरदम के अंतरराष्ट्रीय कविता उत्सव और नेपाल, मॉरिशस और मॉस्को की यात्राओं के दौरान कई जगह कविता पाठ किए.
राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित उनके संकलन 'घर का रास्ता' की भूमिका लिखते हुए प्रयाग शुक्ल ने लिखा था, "मंगलेश डबराल की कविता में रोज-मर्रा जिंदगी के संघर्ष की अनेक अनुगूँजें और घर-गाँव और पुरखों की अनेक ऐसी स्मृतियाँ हैं जो विचलित करती हैं. हमारे समय की तिक्तता और मानवीय संवेदनों के प्रति घनघोर उदासीनता के माहौल से ही उपजा है उनकी कविता का दुख. यह दुख मूल्यवान है क्योंकि इसमें बहुत कुछ बचाने की चेष्टा है. महानगर में रहते हुए मंगलेश का ध्यान जूझती हुई गृहस्थिन की दिनचर्या, बेकार युवकों और चीजों के लिए तरसते बच्चों से लेकर दूर गाँव में इंतजार करते पिता, नदी, खेतों और ‘बर्फ़ झाड़ते पेड़’ तक पर टिका है. मंगलेश की कविता के शब्द करुण संगीत से भरे हुए हैं. इनमें एक पारदर्शी ईमानदारी और आत्मिक चमक है. लेकिन उनकी कविता अगर हमारे समय का एक शोकगीत है तो आदमी की जिजीविषा की टंकार भी हम उसमें सुनते हैं और उसमें स्वयं अपनी निजी स्थिति का एक साक्षात्कार भी है."
'घर का रास्ता' संकलन से कुछ कविताएं
1.
घर का रास्ता****