e-साहित्य आजतक कार्यक्रम में कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने कोरोना पर कविताएं सुनाईं. ये कविताएं उन्होंने लॉकडाउन के दौरान लिखी हैं. अशोक वाजपेयी ने इसके अलावा देश में कोरोना की वजह से पैदा हुए हालातों पर भी बात की.
कोरोना पर अशोक वाजपेयी ने सुनाई कविता
कोरोना वायरस पर पहली कविता जो अशोक वाजपेयी ने सुनाई उसका नाम है- पृथ्वी का मंगल हो.
सुबह की ठंडी हवा में अपनी असंख्य हरी रंगतों में
चमक काट रही है अनार, नींबू, नीम, कुसुम की पत्तियां
धूप उनकी हरितमा पर निश्छल फिसल रही है
मैं सुनता हूं उनकी संवेग प्रार्थना पृथ्वी का मंगल हो...
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लॉकडाउन ने जीवन को बनाया नियमित- अशोक वाजपेयी
उनका कहना है कि लॉकडाउन की वजह से नियमित जीवन हो गया है. खाना-पीना, सोना सब कुछ वक्त पर हो रहा है. हम लोग अनियमितता को देखते आए हैं. अब छोटी छोटी चीजों पर ध्यान जाता है. अब पता चला है खाना बनाने में इतने बर्तन लगते हैं. कभी कभी पढ़ते पढ़ते भी ऊबन होने लगती है. फिर फिल्में देखने लगता हूं अपनी पत्नी के साथ. थोड़ा लिखते-पढ़ते भी हैं. उन्होंने ये भी बताया कि वे लॉकडाउन में बर्तन भी धो रहे हैं. ऐसा करने में उन्हें मजा भी आ रहा है. अशोक वाजपेयी ने ये भी कहा कि हमें अकेले पड़ने से घबराना नहीं चाहिए.
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विपत्ति ने नए नायक बनाए- अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी ने माना कि शब्दों में रोशनी हो तो उम्मीद उधर आ सकती है. विपत्ति ने नए नायक बनाए हैं. इस दौरान काफी कुछ टूटा है. मुक्ति की एक नई आकांक्षा भी इस दौर में फैल सकती है. हालांकि यह कठिन है, पर अज्ञात कुलशील नायक ही असली भारत का नायक बनेगा.