रैगिंग के लिए हर साल सरकार की तरफ से गाइडलाइंस बनते हैं, जारी होते हैं, लेकिन इसके बाद भी हर साल रैगिंग का कोई न कोई ऐसा मामला आता है जो सबको चौंका देता है. रैगिंग को रोकने के लिए कड़े कानून बनने से जरूरी है बच्चों को घर में अच्छी शिक्षा दी जाए, अनुशासन सिखाया जाए. हाल ही में सिंधिया स्कूल में रैगिंग के हादसे ने सबको एक बार फिर इस परेशानी की याद दिला दी है.
यूं तो हम सभी जानते हैं कि रैगिंग सीनियर छात्रों द्वारा कॉलेज में आए नए छात्रों के बीच की जान-पहचान बढ़ाने का जरिया है, लेकिन इस रैगिंग ने इतना खतरनाक रूप कब से ले लिया ये कोई नहीं जानता. छात्र खुद भी ये करते वक्त नहीं सोचते कि रैगिंग के ओछे और घटिया तरीकों से उनकी इज्जत दूसरों के सामने घटती ही है और इस तरह से नई दोस्ती की शुरुआत भी नहीं होती है.
कौन करता है क्रूर रैगिंग
अगर गौर किया जाए तो रैगिंग वो शख्स करता है जो कभी न कभी इसका शिकार रहा होता है. उस समय का गुस्सा वो शख्स जब खुद को मौका मिलता है तब निकालता है. इसके अलावा एक औसत व्यक्ति दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी ऐसा करता है, वो भी कॉलेज जैसी जगह में जहां हर किसी में बेहतर होने, बेहतर करने की होड़ लगी होती है.
कुछ ऐसे छात्र होते हैं जो अपने पहनावे से दूसरों को आकर्षित करते हैं, कुछ खेल में अच्छे होते हैं, कुछ की रुचि कला में होती है और उनकी कला से सब उन्हें पहचानते हैं तो कुछ पढ़ाई में बहुत अच्छे होते हैं. इन्हीं के बीच में से कुछ छात्र ऐसे होते हैं जिनके पास कोई स्किल नहीं होता है और न ही वो कुछ अच्छा करना या सीखना चाहते हैं, ऐसे छात्र ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए इस तरह की हरकत करते हैं. इन लोगों को खतरनाक मजाक कभी-कभी किसी की जान पर बन आती है.
एक श्रेष्ठ बनने के प्रयोजन
अच्छा बनने की शुरुआत घर से होती है. टैलेंट की कमी, अच्छी आदतों की कमी से व्यक्तित्व कमजोर होता चला जाता है, इससे इंसान न सिर्फ खुद को कमजोर महसूस करता है बल्कि दूसरों के सामने भी कमजोर बनकर ही पेश होता है. आत्मविश्वास में कमी से उसमें कई और खामियों को जन्म देती है. एक कमजोर इंसान अपनी कमियों को छुपाने के लिए या खुद को उस कमी के साथ संतुष्ट करने के लिए दूसरों की गरिमा का उल्लंघन करता है. उसे दूसरों को तंग करना, गाली देना, छेड़ना अपनी सफलता लगती है और ऐसे में उसे सामने वाला छोटा और कमजोर लगता है.
अगर किसी के अंदर स्किल की कमी है तो उसे अन्य और सकारात्मक तरीकों से भी दूर किया जा सकता है. अकसर घरों में बच्चे पिता को मां को झिड़कते देखते हैं और घर में ऐसे दुर्व्यवहार का प्रभाव बच्चे पर भी पड़ता है. तो ये कहना गलत नहीं होगा कि रैगिंग की शुरुआत बच्चे घर से ही सीखते हैं. इसके अलावा रैगिंग का बेस हिंसक वीडियो गेम, कार्टून से भी तैयार होता है.
अभिभावकों की भूमिका
बच्चों के अनुशासन में अभिभावकों की भूमिका बहुत अहम होती है. उनकी प्रतिभा को तराशना, उन्हें कुछ नया सीखने की ओर अग्रसर करना अभिभावकों का काम होता है. जब बच्चे अपनी हॉबी में व्यस्त होते हैं, नई-नई चीजें सीखते हैं तो उन्हें एक संतुष्टी होती है. जब बच्चे सकारात्मक रूप से खुद से संतुष्ट होते हैं तो उन्हें गलत रास्ते अपनाने नहीं पड़ते हैं.
अभिभावकों को बचपन से ही स्कूल, सोसायटी में बच्चों की गतिविधियों में नजर रखनी चाहिए और छोटी गलती भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. बदमाशी के शिकार बच्चे हीन भावना के शिकार होते हैं और ये हीन भावना बचपन से ही उनके अंदर पलती रहती है जो की बड़े होने तक उनका पीछा नहीं छोड़ती है.
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