अगर आपका बच्चा जोड़ों में दर्द की शिकायत करे तो उसे उसके खेल की वजह मान कर टालने के बजाय डॉक्टर के पास ले जाएं और जांच कराएं कि कहीं आपका लाड़ला ‘‘जुवेनाइल अर्थराइटिस’’ से पीड़ित तो नहीं है.
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संजीव सूरी ने बताया, ‘अर्थराइटिस केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं है. बच्चे भी इस बीमारी की गिरफ्त में आ सकते हैं. बच्चों को होने वाला अर्थराइटिस ‘जुवेनाइल क्रोनिक अर्थराइटिस’ (जेसीआर) कहलाता है.’
शिशु रोग विशेषज्ञ डा प्रीति ने बताया ‘‘यह एक ‘ऑटोइम्यून डिजीज’ है जिसमे रक्त कोशिकाएं शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं और घातक हमलावरों जैसे बैक्टीरिया और वायरस आदि के बीच अंतर करने की अपनी क्षमता खो चुकी होती हैं, ’ उन्होंने बताया, ‘ऐसी स्थिति में बाहरी हमलावरों से शरीर की रक्षा करने वाली हमारी प्रतिरोधक प्रणाली ऐसा करने के बजाय जिन रसायनों का उत्पादन करती है उनसे स्वस्थ उतक क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और उनकी वजह जलन और दर्द होने लगता है.’
डॉ सूरी ने बताया कि बच्चों को अगर जोड़ों के दर्द की समस्या हो तो इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि समय रहते इलाज होने पर यह बीमारी ठीक हो सकती है अन्यथा इसकी वजह से बच्चा परेशान हो जाता है और उसका जीवन सामान्य बच्चों जैसा नहीं रहता. डॉ प्रीति के अनुसार, समय पर बच्चों को चिकित्सक के पास ले जाने से इसका असर आंशिक तौर पर कम किया जा सकता है, लेकिन एक बार रोग की तीव्रता बढ़ जाने पर इसमें ज्वाइंट रिप्लेसमेंट कराना पड़ता है.
डॉ. सूरी कहते हैं ‘‘अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि प्रतिरोधक तंत्र में समस्या आखिर आती क्यों है. इस बीमारी का इलाज भी थोड़ा कठिन है.’ डॉ. प्रीति ने बताया कि जेसीआर का सबसे सामान्य प्रकार र्यूमैटाइड अर्थराइटिस बच्चों में जोड़ों के अलावा हृदय, फेफड़े और गुर्दों को प्रभावित कर सकता है.
उन्होंने बताया ‘‘जेसीआर दूसरी बीमारियों की तरह किसी खास प्रकार के भोजन या लाइफ स्टाइल के कारण नहीं होता. बच्चों में प्रतिरोधक तंत्र में आनुवांशिक गड़बड़ी के कारण इस रोग के लक्षण दिखते हैं.’