मैं भी किसी और लड़की ही तरह ही थी. बॉलीवुड मूवीज देखते हुए बड़ी हुई और अपने सपने के राजकुमार के बारे में कल्पनाएं करने लगी. मैं सोचती थी कि मैं जिसे प्यार करूंगी, उसी के साथ ही शादी करूंगी. लेकिन एक पारंपरिक सोच वाले परिवार में जन्म लेने के कारण ना तो कभी मुझे किसी को प्रपोज करने की हिम्मत हुई और ना ही किसी के प्रपोजल को स्वीकार करने की. मैं अपने माता-पिता की मर्जी के बिना ऐसे कदम नहीं उठा सकती थी.
मैं एक तमिल ब्राह्मण परिवार से हूं. मैंने जैसे ही अपनी पढ़ाई खत्म की, मेरी शादी तय कर दी गई. मेरी इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म होते ही मेरे पैरेंट्स ने मेरे लिए एक लड़का तलाश कर लिया. हालांकि शादी के बंधन में बंधने से पहले हमें पर्याप्त समय दिया गया. मेरे दोस्त हमेशा मुझसे सवाल पूछते रहते कि मैं इतनी जल्दी शादी क्यों कर रही हूं लेकिन मुझे इसमें कुछ अजीब नहीं लगा.
ना तो मुझे कुकिंग के बारे में कुछ पता था और ना ही रोमांस के ककहरा. मेरी शादी 23 साल में हुई थी. मुझे अपने पति से बस एक ही शिकायत है कि वह बिल्कुल भी रोमांटिक नहीं है. वह मेरे माता-पिता की भी इज्जत नहीं करते हैं. शुरू-शुरू में मुझे ये चीजें बहुत बुरी लग रही थी लेकिन फिर मैंने खुद को समझा लिया कि जिंदगी में सब कुछ परफेक्ट ही नहीं होता है.
सब कुछ सही चल रहा था लेकिन अचानक मेरी मुलाकात एक सहकर्मी से हुई. हम दोनों एक ही प्रोजेक्ट पर साथ काम कर रहे थे. मुझे वह पहली बार में ही बहुत अच्छा लगा. पहले तो उसके लुक की वजह से ही मैं आकर्षित हुई लेकिन फिर उसके तौर-तरीके मुझे और भी ज्यादा पसंद आ गए. हालांकि मैं इतनी शर्मीली थी कि उससे दोस्ती का हाथ भी आगे नहीं बढ़ा पाई. मैं मन ही मन उसको पसंद करने लगी थी. मैंने खुद को समझाने की कोशिश की कि शादी के बावजूद किसी को पसंद करने में कुछ भी गलत नहीं है खासकर जब मुझे अपनी हद पता हो. मुझे पता चला कि उसकी एक गर्लफ्रेंड थी और वह अपनी जिंदगी में बिजी था.
धीरे-धीरे मैं अपने इस क्रश को भूलने लगी और अपने काम में फिर से बिजी हो गई. लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था. एक दिन वह अपने किसी पुराने दोस्त से मिलने मेरे ऑफिस आया. उसने मुझे भी देखा और एक कप कॉफी पीने का ऑफर दिया. मैं एक सेकेंड के लिए भी रुके बिना तुरंत तैयार हो गई क्योंकि कहीं ना कहीं मैं दिल से ऐसा चाहती थी. धीरे-धीरे हमारी दोस्ती बढ़ती गई, हम एक-दूसरे से ढेर सारी बातें करते और लंच कॉफी पर साथ जाते.
मुझे एहसास हुआ कि मैं उसके ज्यादा करीब जा रही हूं. मैंने खुद को रोकना चाहा लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. दिमाग कुछ और कहता और दिल कुछ और. मेरे पति काफी देर से घर आते थे, ऐसे में मुझे उससे बातें करने का ढेर सारा समय मिल जाता था.
सैकड़ों बार मेरे दिमाग में यह ख्याल आयाकि मैं कुछ गलत कर रही हूं लेकिन मैं उससे बात करना नहीं छोड़ पाई.
उसकी गर्लफ्रेंड थी और मैं शादीशुदा थी फिर भी हमारा रिश्ता एक दोस्त से ज्यादा बढ़ चुका था. हमें खुद पता भी नहीं चला कि हम एक-दूसरे से कितना जुड़ गए हैं. कुछ दिनों बाद उसकी शादी हो गई और उसे विदेश जाना था. मैंने बहुत पहले उससे पूछा था कि क्या वह लंबे समय तक मुझसे दोस्ती निभा पाएगा? उसका जवाब हां था औऱ आज तक वह अपने वादे पर कायम है. वह मेरे पैरेंट्स की चिंता अपने पैरेंट्स की तरह करता है, मेरी छोटी-छोटी उपलब्धियों की सराहना करता है और जब भी समय मिलता है, बातें करता है. वह बिना किसी उम्मीद के मुझसे प्रेम करता है. हो सकता है कि मैं गलत कर रही हूं लेकिन मेरी जिंदगी का यह एक ऐसा रिश्ता है जो मेरे लिए बहुत कीमती है और जिसकी मैं सबसे ज्यादा कद्र करती हूं. मैं इस रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चाहती!
(एक महिला ने अपनी निजी जिंदगी का अनुभव शेयर किया है)