आम बीयर प्रेमी भारतीय के लिए यह मुख्यत: दो तरह की ही होती है. एक स्ट्रॉन्ग और दूसरी लाइट. ज्यादा ज़हीन लोग लाइट वाले को लागर बीयर भी कहते हैं. हालांकि, बीयर के इतने प्रकार और फ्लेवर हैं, जिसे चखने, समझने और उनके बीच अंतर कर पाने की काबिलियत पैदा करने में सालों लग सकते हैं. दिखने, सुगंध, जुबान पर स्वाद, एल्कॉहल तीव्रता, इस्तेमाल यीस्ट या अनाज के प्रकार आदि के आधार पर ये अनगिनत प्रकार के हो सकते हैं. बीयर के कुछ मोटा-मोटी प्रकारों की बात करें तो यह लागर, पिल्सनर, स्टाउट, पोर्टर्स, राई, वीट बीयर, एल आदि हो सकते हैं. एल बीयर की भी कई किस्में हैं, जैसे- इंडिया पेल एल, अमेरिकन एल, ब्लॉन्ड एल, इंग्लिश पेल एल वगैरह. बीयर की इन्हीं मशहूर किस्मों में से एक है IPA या इंडिया पेल एल (India Pale Ale). ब्रिटेन, यूरोप से लेकर दुनिया के बहुत सारे देशों में इस बीयर के कद्रदान हैं.
अंग्रेजों को भारत में चाहिए थी बीयर
ब्रिटेन में लोकप्रिय एक बीयर के नाम में इंडिया कैसे जुड़ा, इसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. दरअसल, ब्रिटिश सल्तनत का विस्तार भारत तक हो रहा था. ईस्ट इंडिया कंपनी भारत की धरती पर पांव पसार रही थी. उस वक्त उनकी बड़ी चुनौतियों में से एक यह भी थी कि सैनिकों से लेकर अधिकारियों तक को किस तरह से बीयर मुहैया कराई जाए. भारत में पड़ने वाली गर्मी और उस वक्त की तकनीकी सीमितता की वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भारत में बीयर तैयार करना मुमकिन नहीं था. वहीं, समंदर के रास्ते 6 महीने में ब्रिटेन से भारत पहुंचने के बाद वहां की बीयर खराब हो जाती थी. यानी भारत पहुंचे ब्रिटिश बीयर पीने के लिए तरस रहे थे.
ऐसे बनी IPA
द गार्डियन में छपे एक आर्टिकल में ड्रिंक्स एक्सपर्ट हेनरी जेफरीज ने इंडिया पेल एल की कहानी बताई है. उनके मुताबिक, 1780 के दशक में लंदन में बीयर बनाने वाले एक शख्स हॉजसन ने इसका रास्ता निकाला. उन्होंने एक ऐसी बीयर बनाई, जिसमें बड़ी तादाद में हॉप्स (Hops) का इस्तेमाल होता था. हॉप्स एक किस्म के फल हैं. इन फलों का इस्तेमाल बीयर बनाने में भी होता है. बहुतायत में इस्तेमाल हॉप्स से तैयार इस बीयर को वाइन की तर्ज पर ही कुछ वक्त तक स्टोर करके ऐज (Aged) करना पड़ता था. ऐसे में जब इसे ब्रिटेन से भारत भेजा गया तो सफर के बाद यह बीयर न केवल सुरक्षित रही, बल्कि उसकी क्वॉलिटी भी पहले से काफी बेहतर हो गई.

अमेरिका ने IPA को किया जिंदा
यह इंडिया पेल एल यानी IPA बीयर का पहला प्रोटोटाइप था. तैयार करने के बाद गुजरते वक्त के साथ इसका रंग और सुनहरा होता जाता था और यह भारतीय आबोहवा के हिसाब से बेहद तरोताजा करने वााली बीयर थी. वहीं, हॉजसन की बीयर को कुछ दूसरे लोगों ने भी कॉपी करना शुरू कर दिया. इसकी वजह से इस बीयर के कई दूसरे प्रकार भी बाजार में उपलब्ध होते गए. वहीं, जैसे जैसे फ्रिज और रेफ्रिजरेटर चलन में आते गए, आईपीए बीयर अप्रासंगिक होते गए. हालांकि, 1970 के दशक में अमेरिका में इसे दोबारा नए तरीके से बनाना शुरू कर दिया गया. अमेरिका में यह बीयर कुछ ऐसी लोकप्रिय हुई कि फिर अपने घर ब्रिटेन लौटी.
कैसी होती है IPA?
यानी लब्बोलुआब यह है कि भारत के लिए ब्रिटेन में तैयार एक बीयर जब अपने ही देश में अप्रासंगिक हो गई तो इसे अमेरिकी लोगों ने दोबारा जिंदा कर दिया. आईपीए बीयर के बारे में प्रमुखता से दो दावे किए जाते हैं. एक ये कि ये बेहद कड़वे हो सकते हैं. वहीं, इसमें एल्कॉहल की मात्रा ज्यादा होती है. हालांकि, वाइन एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये दोनों ही बातें पूरी तरह सही नहीं है. सारी आईपीए बीयर कड़वी नहीं होतीं, वहीं सभी में एल्कॉहल पर्सेंटेज ज्यादा नहीं होता.
दरअसल, इसे तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले हॉप्स की दर्जनों प्रजातियां हैं. ऐसे में इसके वैरिएंट भी कई सारे हैं. इस बीयर के अब कई वेरिएंट लोकप्रिय हैं, जिसमें ब्रिटिश आईपीए, वेस्ट कोस्ट आईपीए, न्यू इंग्लैंड स्टाइल आईपीए, ईस्ट कोस्ट आईपीए, बेल्जियन आईपीए, फ्रूटेड आईपीए आदि शामिल हैं.