देश में ऐसा कई दफा देखा गया है कि कोर्ट द्वारा किसी को जेल से रिहा कर दिया जाता है, लेकिन असल में आरोपी फिर भी सलाखों के पीछे ही रहने को मजबूर रह जाता था. वजह होती है पुलिस स्टेशन तक समय से अंतरिम आदेश की कॉपी का ना पहुंचना. लेकिन अब इसका भी समाधान निकाल लिया गया है. 'FASTER' टेक्नोलॉजी के जरिए अब कैदियों को रिहाई मिलने के बाद लंबे समय तक जेल में नहीं रहना पड़ेगा.
'FASTER' से तेज होगी बेल प्रक्रिया
'FASTER' का मतलब है Fast and Secured Transmission of Electronic Records. इस नए सिस्टम के जरिए जांच एजेंसियों, जेल अथॉरिटीज और हाइकोर्ट्स जैसी जगहों पर समन, कोर्ट के अंतरिम, स्टे, जमानत ऑर्डर, जमानत के परवाने आदि फौरन भेजे जा सकेंगे. उससे कैदियों की रिहाई समय रहते हो सकेगी. देश के 19 राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के जरिए बताया कि उन्होंने अपनी जेलों को इंटरनेट सुविधा से युक्त कर दिया है. बस पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, असम और मिजोरम ने ऐसा नहीं किया है. तर्क दिया गया है कि वहां की जेलों में अब तक इंटरनेट की निरंतर उपलब्धता या बिल्कुल उपलब्धता नहीं हो पाई है. बाकी के सात राज्यों ने इस महत्वपूर्ण परियोजना पर अमल को लेकर हलफनामा ही दाखिल नहीं किया है.
कोर्ट का कड़ा रुख
अब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया है कि अपने यहां की हरेक जेल में समुचित स्पीड वाली इंटरनेट सुविधा सुनिश्चित कराए. जहां जहां ये सुविधा है उसकी जानकारी दे और जहां नहीं है वहां शीघ्र वैकल्पिक इंतजाम भी कराए जाएं. जब तक ये इंतजाम हों तब तक नोडल अधिकारी तैनात किए जाएं जो कोर्ट आर्डर जेल प्रशासन को शीघ्र संप्रेषित करे.
अब फास्टर सिस्टम के तहत राज्य प्रशासन की जिम्मेदारी होगी कि नेशनल इन्फोर्मेशन सेंटर के निदेशक, गृह सचिव के जरिए फास्ट कम्युनिकेशन सुनिश्चित कराए. उसके लिए ये सभी अधिकारी कोर्ट की रजिस्ट्री से संपर्क में भी रहेंगे ताकि कभी किसी संशय या गड़बड़ की कोई गुंजाइश नहीं रहे.