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सजा माफी की अर्जी पर फैसले में देरी से सुप्रीम कोर्ट नाराज, यूपी सरकार को लगाई फटकार, CM ऑफिस के कामकाज पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ने कहा कि यह निर्लज्ज कृत्य है. वो अधिकारी दोषियों के मौलिक अधिकारों के साथ खेल रहे हैं. कोर्ट ने आदेश दिया कि इस पूरे प्रकरण में यह देखा गया है कि आचार संहिता समाप्त होने के बाद ही फाइल को यूपी सरकार के पास भेजा गया था.

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 सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट. (फाइल फोटो)

सजा में समय से पहले रिहाई की अर्जियों पर फैसला लेने में देरी किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया है. जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह ने सरकार की दलीलों पर असहमति जताई और कहा, हमारी गाइडलाइन और अर्जियों पर निर्णय लेने की समय-सीमा का पालन नहीं किया जा रहा है. बेंच ने कहा कि आपकी दलीलों को हम दृढ़ता से अस्वीकार करते हैं. जैसा आप कह रहे हैं वैसा नहीं किया जाता है. यूपी हमारे आदेशों का पालन क्यों नहीं कर रहा है? हम आपको इस तरह नहीं छोड़ेंगे. कोर्ट ने मुख्यमंत्री कार्यालय के कामकाज को लेकर भी सवाल किए हैं.

दरअसल, सजा में छूट और रियायत के आवेदनों के निपटान के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य समय-सीमा तय की थी. इसका पालन नहीं किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को कहा कि हमारे आदेश पारित करने के बाद भी आप 2-4 महीने कैसे ले सकते हैं?

'फाइल अस्वीकार करने वाले अधिकारियों के नाम बताएं'

यूपी सरकार के वकील ने दलील दी कि इस मामले में सक्षम प्राधिकारी छुट्टी पर था. उम्मीद है कि वो आज वापस आ जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा, आप एक हलफनामा दायर करें जिसमें कहा गया हो कि सीएम सचिवालय ने फाइल को स्वीकार नहीं किया. फाइल अस्वीकार करने वाले अधिकारियों का नाम भी उसमें हो. हमारे आदेशों के बावजूद ऐसे आचरण करने वाले अधिकारियों को सीएम सचिवालय के आला अधिकरियों को देखना चाहिए.

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'दोषियों के मौलिक अधिकारों से खेल रहे अधिकारी'

जस्टिस ओक ने कहा कि यह निर्लज्ज कृत्य है. वो अधिकारी दोषियों के मौलिक अधिकारों के साथ खेल रहे हैं. कोर्ट ने आदेश दिया कि इस पूरे प्रकरण में यह देखा गया है कि आचार संहिता समाप्त होने के बाद ही फाइल को यूपी सरकार के पास भेजा गया था. हम निर्देश देते हैं कि एडवोकेट राकेश कुमार उन जिम्मेदार लोगों के नाम पेश करें, जिन्होंने फाइल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था.

मामले में अब 20 अगस्त को सुनवाई

उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद राज्य सरकार की तरफ से पेश हुईं. बेंच ने कहा, अपने आदेश की अवमानना पर किसी भी निर्णय से पहले हम निर्देश देते हैं कि सरकार शपथ पत्र यानी हलफनामा 14 अगस्त तक मुख्यमंत्री के कार्यालय में अधिकारियों के साथ हुए आवश्यक पत्राचार और नोटिंग के साथ कोर्ट में जमा किया जाए. अब इस मामले मे आगे की सुनवाई के लिए 20 अगस्त को सूचीबद्ध किया गया है.
 

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