वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) को अपराध की श्रेणी में लाए जाने वाली जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई पूरी कर निर्देश जारी करने के लिए इसे सुरक्षित रख लिया है. सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कहा कि केंद्र सरकार ने फिलहाल अपना कोई भी रुख साफ करने से असमर्थता जताई है, लेकिन केंद्र ने राज्य सरकारों को अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है. उनका जवाब आने के बाद ही केंद्र सरकार अपना जवाब कोर्ट को बताएगी.
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में संवैधानिक चुनौतियों के साथ-साथ सामाजिक और पारिवारिक जीवन पर पड़ने वाले असर का भी अध्ययन करना जरूरी है. जब किसी कानून को चुनौती दी जाती है तो अमूमन केंद्र सरकार अपना रुख साफ करती है जो आपत्ति के बिंदुओं और कानूनी प्रावधानों की व्याख्या पर आधारित होता है. लेकिन कानून, समाज, परिवार और संविधान से संबंधित इस पेचीदा मामले में हमें राज्य सरकारों के विचार जानना जरूरी होगा. इसके बगैर हम अपना कोई रुख नहीं बनाना और बताना चाहते. हमने राज्यों के मुख्य सचिवों और राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयर पर्सन को लिखा है कि वो भी इस विषय में अपने अपने तर्क, दलीलें और सुझाव भेजें.
ये गतिरोध की स्थिति
जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि अगर इस मामले में विधायिका अपना आधिकारिक दखल देना चाहे या फिर मौजूदा कानून कुछ फेरबदल करना चाहे तो हमें उसे भी देखना होगा. हम इसके लिए आपको समुचित समय देंगे. हम समझते हैं कि ये गतिरोध की स्थिति है.
रक्षा के लिए प्रतिबद्ध: केंद्र
इससे पहले हुई सुनवाई के दौरान मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने के मामले में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि सरकार महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. भारत सरकार प्रत्येक महिला की स्वतंत्रता, गरिमा और अधिकारों की पूरी तरह और सार्थक रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. ये एक सभ्य समाज का मौलिक आधार स्तंभ है.
परामर्शी प्रक्रिया शुरू की जाए
केंद्र का कहना है कि कार्यकारी और विधायिका दोनों मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं, हालांकि परामर्शी प्रक्रिया आवश्यक है. कार्यपालिका और विधायिका दोनों इस विषय पर समान रूप से गंभीर हैं. अपने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. हालांकि, केंद्र सरकार ने कहा कि यह सुविचारित राय है. हालांकि, कोर्ट की सहायता तभी की जा सकती है जब केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्य सरकारों सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्शी प्रक्रिया शुरू की जाए.
'यू टर्न' लेने की तैयारी!
मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने के मामले में केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा, वह मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में रखने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर अपने पूर्व के रुख पर ‘पुनर्विचार’ कर रहा है. यानी यू टर्न लेने की तैयारी चल रही है.
समाधान के सिर्फ दो तरीके
हाईकोर्ट की बेंच के अगुआ जज न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने कहा कि केंद्र सरकार को ही इस मुद्दे पर निर्णय लेने की जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मुद्दे का समाधान करने के लिए सिर्फ दो तरीके हैं- अदालत का फैसला या कानून बनाकर. यदि केंद्र अपना रुख स्पष्ट नहीं करता है तो अदालत रिकॉर्ड में उपलब्ध हलफनामे के साथ आगे बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि इस मसले को हल करने का कोई तीसरा तरीका नहीं है.
रुख पर अडिग रहना चाहते हैं या इसे बदलेंगे?
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार इस बारे में निर्णय लेने की जरूरत है कि क्या आप जवाबी हलफनामे में जिक्र किए गए अपने रुख पर अडिग रहना चाहते हैं या आप इसे बदलेंगे! यदि आप इसे बदलना चाहते हैं तो हमें अवश्य बताएं. इस पर सरकार की पैरवी करते हुए एएसजी ने अदालत से केंद्र को याचिकाओं पर अगले हफ्ते दलील पेश करने की अनुमति देने का आग्रह किया.
पहले सरकार का क्या कहना था
केंद्र सरकार ने अपने पहले के हलफनामे में कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित नहीं किया जा सकता है. क्योंकि, इससे 'विवाह नाम की संस्था' खतरे में पड़ सकती है. इसे पतियों के उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन अब सरकार इस मसले से जुड़े कई आयामों पर विचार कर रही है.
रिश्ते बनाने से न कहने के अधिकार से कोई वंचित नहीं कर सकता
दिल्ली उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म यानी मैरिटल रेप के कानूनी प्रावधान के सिलसिले में यौन संबंध बनाने से महिलाओं के मना करने के अधिकार को प्राथमिकता देते हुए यह कहा है कि महिलाओं के ना कहने के अधिकार से किसी भी सूरत में समझौता नहीं किया जा सकता. ऐसे लोगों को पहली नजर में ही सबूत और शिकायत मिलने के बाद सजा मिलनी चाहिए. इसमें संदेह की कोई कोई गुंजाइश ना हो.
दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित प्रावधानों की फिर से व्याख्या करने के लिए दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि महिलाओं की यौन स्वच्छंदता, शारीरिक अखंडता और रिश्ते बनाने से ना कहने के अधिकार से कोई वंचित नहीं कर सकता. अदालत ने कहा कि जहां तक दुष्कर्म का सवाल है तो विवाहित जोड़े और अविवाहित के बीच संबंधों के बीच बुनियादी और गुणात्मक अंतर है.
वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि हम यहां यह निर्णय नहीं करेंगे कि वैवाहिक दुष्कर्म के आरोप सिद्ध होने पर कैसे दंडित किया जाना चाहिए बल्कि हम यह विचार कर रहे हैं कि ऐसी स्थिति में व्यक्ति को दुष्कर्म का दोषी ठहराया जाए या नहीं.
धारा 375 को भी समझने की कोशिश
दिल्ली हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 में वर्णित वैवाहिक दुष्कर्म के प्रावधानों के पीछे कानूनी तर्क को भी जानने की कोशिश की. आईपीसी का यह नियम पति और पत्नी के बीच यौन संबंध को दुष्कर्म के दायरे से बाहर करता है. लेकिन कोर्ट ने कहा कि यदि विधायिका को लगता है कि विवाह संस्था के तौर पर हमें इसे दुष्कर्म के रूप में वर्गीकृत करना चाहिए नहीं, लेकिन हम इस कानून के अपवाद पर विचार कर रहे हैं.
भारतीय संस्कृति में वैवाहिक दुष्कर्म की अवधारणा ही नहीं
पीठ ने कहा कि भारतीय संस्कृति में वैवाहिक दुष्कर्म की अवधारणा ही नहीं है. इसे दुष्कर्म की श्रेणी में लाते ही ये ipc की धारा 375 में आ जाएगा. और 375 में दुष्कर्म साबित हो तो दंड अवश्य मिलेगा.
हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद के प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही सिद्धांत स्थापित कर दिए हैं.
हाईकोर्ट ने कहा यदि विधायिका ने वैवाहिक रिश्ते में गुणात्मक अंतर के कारण इसे दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं रखा, तो हम इस पर सवाल नहीं उठा रहे कि इसे दंडित किया जाए या नहीं. कोर्ट ने कहा कि हमें ब्रिटेन अमेरिका या यूरोप के देशों के न्यायालयों के पूर्व के फैसलों के बारे में बताने की बजाय उन आदर्श स्थितियों के बारे में बताना चाहिए जिनमें इस प्रावधान को रद्द किया गया है. पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से यूके यूएस नेपाल और अन्य कई देशों के न्यायालय के फैसलों और दलीलों को इस मामले में सर्वथा अप्रासंगिक बताया. हाईकोर्ट ने कहा कि हमारा अपना न्याय शास्त्र है और अपने न्याय प्रणाली. हमारा अपना संविधान है और अपने कानून व्यवस्था.